YUV News Logo
YuvNews
Open in the YuvNews app
OPEN

फ़्लैश न्यूज़

वर्ल्ड

औपचारिक चर्चा में दिलचस्पी नही दिखा रहे संयुक्त राष्ट्र संघ के स्थायी सदस्य

औपचारिक चर्चा में दिलचस्पी नही दिखा रहे संयुक्त राष्ट्र संघ के स्थायी सदस्य

नई दिल्ली ।  संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद यूएनएससी में सुधार और विस्तार की चीन खुलकर मुखालफत करता है। लेकिन भारत की दावेदारी का समर्थन करने वाले अन्य स्थायी सदस्य भी संयुक्त राष्ट्र में इस मसले पर औपचारिक चर्चा का दबाव नही बना रहे हैं। इसकी वजह से चीन अपने वीटो से हर बार किसी तरह के सुधार और विस्तार की गुंजाइश को खत्म कर देता है। साथ ही दुनिया के ऐसे देशो की बात अनसुनी कर दी जाती है, जिनसे इनके हितों का टकराव हो। जानकारों का कहना है कि भारत अब संयुक्त राष्ट्र सुधारों को लेकर काफी मुखर है। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मौजूदा वक्त में संयुक्त राष्ट्र की भूमिका पर सवाल खड़े कर चुके हैं। जानकारों का कहना है अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन जैसे जिन देशों का समर्थन भारत की स्थायी दावेदारी को लेकर है उनका रवैया भी संपूर्ण सुधार प्रक्रिया को लेकर ढुलमुल है। इन्हें ज्यादा स्पष्ट रवैया अपनाने की जरूरत है। भारत स्थायी सदस्यता के लिए औपचारिक बातचीत शुरू करने की पेशकश करता रहा है। लेकिन इस मसले पर मौखिक आश्वासनों से ज्यादा आगे बात नहीं बढ़ पा रही है। सूत्रों ने कहा, आईजीएन संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में विस्तार के पक्ष में है। इसीलिए आईजीएन के सुझाव को चीन खारिज कर देता है। अन्य प्रभावी देश चीन का विरोध करने के बजाय तटस्थ रुख अपनाते हैं। सुरक्षा परिषद में पांच स्थाई सदस्य हैं। आमतौर पर चार सदस्य देश रूस, अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटेन भारत को स्थाई सदस्य के तौर पर शामिल करने के लिए सहमत हैं। चीन अकेले इसका विरोध करते हुए वीटो कर देता है। अफ्रीकन देशों का समूह भी यूएनएससी में विस्तार चाहता है, जिसका भारत भी समर्थन करता है। चीन की वजह से यूएनएससी के स्थाई और अस्थायी सदस्यों की संख्या में बढ़ोतरी नहीं की जा सकी है। पिछले दिनों प्रधानमंत्री मोदी ने यूएन में बोलते हुए रेखांकित किया था कि यदि यूएन में सहभागिता बढ़ाकर उसे अधिक लोकतांत्रिक बनाकर परिवर्तन नहीं किया गया तो उसके अप्रासंगिक होने का जोखिम बढ़ेगा। यूएन महासभा में उन्होंने कहा था कि संयुक्त राष्ट्र की स्थापना जिन परिस्थितियों में हुई थी, मौजूदा हालात उनसे भिन्न हैं। अंतरराष्ट्रीय बिरादरी इस पर अवश्य विचार करे कि 1945 में बनी संस्था क्या आज भी प्रासंगिक है? उन्होंने सीधा सवाल उठाया था ‘आखिर कब तक भारत को संयुक्त राष्ट्र की निर्णय प्रक्रिया से बाहर रखा जाएगा?
 

Related Posts