YUV News Logo
YuvNews
Open in the YuvNews app
OPEN

फ़्लैश न्यूज़

आर्टिकल

भारतीय संस्कृति एवं धर्मों का अद्भुत संगम -- बिलहरी जिला कटनी 

भारतीय संस्कृति एवं धर्मों का अद्भुत संगम -- बिलहरी जिला कटनी 

आगामी २ नवमबर से ७  नवमबर २०२० को परमपूज्य श्री १०८ प्रमाण सागर जी महाराज एवं श्री १०८ अर्ह सागर महाराज जी के सान्निध्य में पंचकल्याणक होने जा रहा हैं।   जिसमे कटनी जैन समाज का सम्पूर्ण दायित्व हैं। वर्तमान में मात्र ५ घर की जैन समाज हैं और मंदिरों की संख्या बहुत हैं
बिलहरी जो कटनी के नजदीक हैं में जैन ,हिन्दू संस्कृति का संगम स्थल हैं ,जहाँ पर जैन मूर्तियां बहुलता से प्राप्त हुई और जो उपलब्ध हैं इन मूर्तियों को देखकर लगता हैं की एक समय यहाँ  जैन समाज की बहुलता थी।
सर्दी का आगमन हो चुका है और हवा में ठंडक घुल गई है। दोपहर की धूप भी अब चुभना बंद हो चुकी है। इसी एक दोपहर में मैं निकल पड़ा जाने पर अनजाने शहर के भ्रमण पर। मैं बात कर रहा हूं “बिलहरी” की जिसका पुराना नाम पुष्पावती था। आज भी यहां उपस्थित मंदिरों, मठों, स्मारकों पर पुष्पावती नगर आसानी से देखने को मिल जाता है। बिलहरी मध्यप्रदेश के कटनी जिले से मात्र 15 किमी दूर स्थित है जो हिन्दु और जैन धर्म से जुड़ा हुआ है। बिलहरी एक ऐतिहासिक स्थल जो विन्ध्याचल पर्वत की पार्श्व श्रृंखला कैमूर श्रेणी के किनारे स्थित है। मेरी यात्रा की शुरुआत कटनी शहर से शुरु हुई जो ज्यादा बड़ी ना थी और जल्द ही मैं बिलहरी में प्रवेश कर गया।
बिलहरी में प्रवेश करते ही एक बड़े से तालाब को देखा जिसकी सीमा एक तरफ मंदिरों से अटी है वही एक तरफ पान के खेत से। इस तालाब को देखना आनांदातिरेक है। इस तालाब का निर्माण कल्चुरी राजा लक्ष्मणराज ने लगभग 945 ईस्वी में करवाया था। तालाब अपनी विशालता के साथ-साथ सिंघाडें और आश्चर्यजनक घटनाओं के लिए प्रसिद्ध है। पुरातन मान्यताओं के अनुसार इस तालाब की गहराई में अथाह सोना है और तालाब के बीचोंबीच एक मंदिर भी है जो केवल भाग्यशाली लोगों को दिखाई देता है। बिलहरी बाहर से बिल्कुल सामान्य गांव की तरह नजर आता है लेकिन जैसे-जैसे हम गांव के अंदर प्रवेश करते है, वैसे-वैसे इसकी ऐतिहासिक विरासत के बारे में पता चलता है। तालाब के किनारे बनी पक्की कांक्रीट रोड़ पर चलते हुए मैं तालाब के उस छोर पर जा पहुंचा जहां मंदिर, मठ, गढ़ी, घाट और यत्र-तत्र फैली मूर्तियों को आसानी से देखा जा सकता है। पुराने सही सलामत घाटों का नए टूटे-फूटे घाटों से मिलन साफ-साफ देखी जा सकता है।
तालाब के किनारे अनेकों मूर्तियां बिखरी पड़ी हुई है इनमें गणेश, विष्णु, देवी, शिवलिंग को आसानी से देखा जा सकता है। इन सभी को देखकर अपने गौरवशाली इतिहास पर मुझे गर्व तो होता है साथ ही साथ थोड़ी मायूसी। पुराने घाट के नजदीक ही छोटी-सी गढ़ी बनी हुई है जिसका प्रयोग संभवतः रानी के स्नानादि के लिए किया जाता होगा। तालाब के समीप ही बिलहरी उपथाना के बगल से ही एक मठ बना है। इस मठ का निर्माण कल्चुरीकालीन है। इस मठ के ऊपरी हिस्से का निर्माण 15-16 शताब्दी का है जो गौंड राजाओं ने करवाया था और इस मठ के चारों ओर दीवार बनवाने का कार्य भी किया। ज्ञात होता है कि एक समय था जब यहां एक मंदिर परिसर हुआ करता था। इस मठ पर एक लेख भी नजर आता है जो इस प्रकार है ‘श्री गणेशाय नम: गोप्प दासदेव’ , संभवतः यह मठाधीश का नाम हो सकता है।
मठ से थोड़ी ही दूरी पर एक मंदिर नजर आता है जिसे स्थानीय लोग अज्ञातदेव का मंदिर कहते है। असलियत यह शिव मंदिर है जिसमें अब कोई शिवलिंग नहीं है। तीन मंजिला यह मंदिर कला का एक अद्भुत नमूना है जो अलग-अलग स्थापत्य कला का श्रेष्ठ उदाहरण है। यह मंदिर गौंड शैली में बना हुआ है जिसकी विशेषता है कार्निस। यह मंदिर एक चबूतरे पर बना हुआ है जिसमें हिंदु-मुस्लिम स्थापत्य कला का दर्शन होता है। मंदिर का निर्माण बलुआ पत्थर से किया गया है जो कि 17वीं शताब्दी का प्रतीत होता है। इस मंदिर के ऊपरी हिस्से में एक विशाल गुंबद है जिसके चारों कोने पर छोटी-छोटी छतरियां बनी है। मंदिर में महराब गवाक्ष दिखाई देते है, इनके अलावा गज, सिंह, शार्दूल आदि की आकृतियां नजर आता है। मंदिर के मुख्य द्वार के बाई ओर हनुमान और दाईं ओर भैरव की प्रतिमा बनाई गई है तथा द्वार के ललाटबिम्ब पर गणेश प्रतिमा दिखाई देती है। इस मंदिर को देखने के बाद सचमुच अपने आप पर गर्व होता है कि मैं भारत देश का वासी हूं।
बिलहरी आज भले ही एक छोटा-सा गांव हो लेकिन एक समय था जब इस गांव की सीमा 24 मील तक फैली हुई थी। मान्यताओं के अनुसार इस जगह की स्थापना अंगराज कर्ण ने पुष्पावती नगर के नाम से की थी। पुष्पावती नगरी अपनी संपन्नता के कारण जाना जाता था। कामकंदला और माधवानल की प्रेम गाथाएं आज भी यहां के रह वासियों के मुख से सुनी जा सकती है। पुष्पावती नगरी में कल्चुरी राजाओं ने कई वर्षों तक शासन किया फिर इनके पतन के बाद चंदेल और फिर गौंड राजाओं ने शासन किया। यह नगर अपने विशाल ऐतिहासिक समृद्ध विरासत के लिए जाना जाता है। आज भी यहां खुदाई करने पर ऐतिहासिक महत्व की मूर्तियां प्राप्त होती है।
शिव मंदिर के दर्शन के बाद मैं गांव के अंदर स्थित विष्णु वराह मंदिर को देखने चल दिया । पतली तंग गलियों से गुजरते हुए आखिरकार मैं विष्णु वराह मंदिर पहुंच ही गया। इस मंदिर का निर्माण मूल रुप से चेदि राजाओं ने 11वीं शताब्दी में करवाया था तथा उत्तरोतर इसका जीर्णोद्धार आगे के राजाओं ने किया। इसका निर्माण बलुआ पत्थर से हुआ है जिसे बाद के राजाओं ने ईंट की दीवार से ढ़ंक दिया है जिसके ऊपरी एक गुंबद भी नजर आता है जो साफ-साफ मुस्लिम स्थापत्य कला का उदाहरण दिखाई देता है। इस मंदिर में विष्णु प्रतिमा के अतिरिक्त मंदिर के सामने बने मंडप के नीचे मुख्य द्वार के दोनों किनारों पर गंगा, यमुना की प्रतिमा दिखाई देती है। यह मंदिर
भारतीय पुरातत्व विभाग के अंतर्गत आता है। यह सचमुच प्राचीन काल के इतिहास का नगीना है।
बिलहरी की गलियों में घूमते हुए और कई साै साल पुराने मंदिरों को देखते हुए मैं पतली संकरी गली से गुजरते हुए मैं पहुंचा तपसी मठ। तपसी मठ को कामकंदला किला के नाम से भी जाना जाता है। इस मठ का निर्माण 14 वीं शताब्दी में किया गया था। इस मठ के अंदर फांसी घर, फोर्ट, मठ, बाबडी और शिव मंदिर है। यह मठ भारतीय पुरातत्व विभाग के अंतर्गत आता है। मुख्य प्रवेश द्वार के बिल्कुल बाएं एक बाबड़ी बनी हुई है जिसके बारे में यह कहा जाता है कि इसका पानी कभी खत्म नहीं होता है। इस बाबड़ी की गहराई लगभग 50 फीट है । यह बाबड़ी कल्चुरी शैली में बनाई गई है। मुख्य द्वार से अंदर प्रवेश करते ही बाईं ओर संरचना बनी हुई है तथा दाईं ओर नोहलेश्वर मंदिर । मंदिर की स्थापना काल ब्रिटिश काल की प्रतीत होती है जिसमें रेत, ईंट आदि का प्रयोग कर मंदिर को आधुनिक रुप प्रदान किया है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है जिसमें केवल अब योनि ही शेष बची है लिंग चोरी हो चुका है। मंदिर की अंदरुनी छत पर कलात्मक पेंटिंग की जिसमें तरह-तरह की फूल, पत्ती, मछली को दर्शाया गया है। इस मंदिर के अंदर के द्वार के दोनों ओर हनुमान जी की पेंटिंग दिखाई देती है परंतु अब रंग फीके पड़ चुके है। परिक्रमा पथ में गर्भगृह के दो ओर पत्थर से बनी हुई जाली दिखाई देती है। इस मंदिर में प्राचीन का और आधुनिकता से मेल आसानी से देखा जा सकता है। इस मंदिर के समीप एपरिसर दिखाई पड़ता है जिसमें लगभग 450 मूर्तियां रखी हुई है, जिसमें जैन और हिंदु धर्म से संबंधित देवी-देवताओं की मूर्तियां है। इस समृद्ध विरासत को देखकर लगता है कि बघेलखंड को सभी तक पहुंचने में देर हुई है। यहां उपस्थित विरासत भारत के लिए खजाने जैसा है।
तपसी मठ को देखने के बाद मैं तरण-तारण की जन्मभूमि की ओर चल पड़ा। बिलहरी केवल हिंदु महत्व का स्थल नहीं यह जैन धर्म के तारण संप्रदाय का जन्म स्थल भी है। तरण-तारण जैन तीर्थ धार्मिक महत्व के साथ-साथ ऐतिहासिक महत्व का स्थल भी है। संत तारण ने जहां पाखंड को दूर करने के लिए तरण-तारण संप्रदाय की स्थापना की वही जन्मस्थली के सिंह द्वार के सामने हिंदु मंदिर स्थापित है। बिलहरी की यही वास्तविकता लोगों को अपना ओर खींचती है।
बिलहरी में इसके अलावा अनेकों मंदिर, बाबड़ी देखने को मिल जाएगी जो आप को हमारे इतिहास को बयां करते हुए नजर आएंगे। इस बघेलखंड की शान को एक बार जरूर देखने आए।
कैसे पहुंचेः- एयरपोर्ट- सबसे नजदीकी एयरपोर्ट जबलपुर है जो बिलहरी से 85 किमी है।
रेल्वे स्टेशन- सबसे नजदीकी रेल्वे स्टेशन कटनी है जो बिलहरी से मात्र 15किमी दूर है।
बस स्टेण्ड- बिलहरी में बस स्टेण्ड है। कटनी एक बड़ा बस स्टेण्ड है जहां अन्य शहरों के लिए आसानी से बस उपलब्ध है।
(लेखक-वैद्य अरविन्द प्रेमचंद जैन )

Related Posts