
जब से सृष्टि का उदय हुआ और मानव युगल में हुए तब से अपराध /पाप आदि शुरू हुए कारण मानव में मन होने से वह सबसे अधिक समाज में विकृतियां फैलाई हैं जिस कारण पुराण ,शास्त्रों ,वेदों में और तो और कानून की किताबें लिखी गयी। आज विश्व में जितने भी क़ानून बने हैं वे मात्र पांच पापों के लिए बनाये गए हैं छठवा कोई पाप नहीं होता। हिंसा ,झूठ, चोरी ,कुशील ,परिग्रह और इनका इलाज़ मात्र पंच व्रतों में निहित हैं वे हैं अहिंसा ,सत्य ,अचौर्य ,ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह।
इन पंच पापों और चार कषायों ( क्रोध ,मान माया लोभ ) यानी संक्षेप में तो मोह के वशीभूत होकर, राग द्वेष से लिप्त होने के कारण संसार में परिभ्रमण करते हैं /कर रहे हैं और किया था ,इसी कारण संसार में हिंसा, व्यभिचार परिग्रह ,चोरी और असत्य का वातावरण फैला हुआ हैं। कानूनों की अपनी सीमायें होती हैं। उसमे बहुत पोल होती हैं उसमे से अपराधी निकल भागते हैं।
जीवित इतिहास में तो रावण ने सीता अपहरण किया था ।सुभद्रा ने अर्जुन का। इस देश को इस स्थिति में लाने का श्रेय यदि किसी को हैं तो वह पृथ्वीराज चौहान को जिन्होंने संयोगिता का अपहरण किया और जयचंद ने मोहम्मद गौरी को बुलाया और हम आज इस स्थिति में हैं।
यानी हमें पांच पापों से मुक्त होना हैं तो हमें अपने जीवन में पांच व्रतों का पालन करना ही होगा ,इसके बिना कल्याण नहीं हैं। आज हमारे व्यक्तिगत ,पारिवारिक ,सामाजिक ,राजनैतिक धार्मिक क्षेत्रों में पापों की बहुलता होने से विश्व में विषम स्थितियां निर्मित हो रही हैं। इनको जानना आवश्यक है।
रागालोककथात्यागः सर्वस्त्रीस्थापनादिषु।
मातानुजा तनुजेति,मत्या ब्रह्मव्रतम मतम।।
मनुष्य, त्रियंच और देवगति सम्बन्धी सर्व प्रकार की स्त्रियों में और काष्ठ,पुस्तक ,भित्ति आदि पर चित्रामआदि से अंकित या स्थापित स्त्री चित्रों में यह मेरी माता हैं ,यह बहिन हैं ,यह लड़की हैं ,इस प्रकार अवस्था के अनुसार कल्पना करके उनमे रागभाव का ,उनके देखने का और उनकी कथाओं के करने का त्याग करना ब्रह्मचर्य महाव्रत माना गया हैं।
परविवाहकरणेत्वरिका -परिग्रहीतापरिग्रहीता -गमनानांगक्रीड़ाकामतीव्राभीनिवेशा ।
१ वाग्दत्ता ,अल्पवयस्क या अवयस्क तथा रखैल के साथ मर्यादा के विपरीत आचरण इस अतिचार के अंतर्गतआता हैं । वर्तमान
सन्दर्भों में इस प्रकार के संबंधों को शारीरिक ,सामाजिक और कानूनी दृष्टियों से वर्जनीय तथा हेय माना जाता हैं
२ किसी भी प्रकार की पराई स्त्री या पर पुरुष के साथ समागम करणे की ओर बढ़नाहैं जिसका व्रत के द्वारा निषेध हैं।
३ स्वाभाविक रूप से कामवासना की बजाय अप्राकृतिक तरीकों और कृत्रिम साधनों से काम क्रीड़ा करना अनंग क्रीड़ा अतिचार हैं। इस अतिचार के माध्यम से समलैंगिक कामक्रीडाओं से कोसों दूर रहने की पावन प्रेरणा भी मिलती हैं।
४ सदगृहस्थ को चाहिए की वह एक विवाह के पश्चात दूसरा विवाह न करे वर्तमान में जहाँ सम्बन्ध जुड़ना कठिनतर हो रहा हैं ,विलम्बित विवाह और अविवाह की स्थितियां समाज में पैदा हो रही हैं। वहां इस सहयोग का मूल्य और बढ़ जाता हैं ब्रह्मचर्य व्रत का मुख्य लक्ष्य भोगासक्ति घटाना और समाज में सदाचार की स्थापना करना हैं। विवाह इन्हीं उच्चतर लक्ष्यों से जुड़ा हैं।
५ व्रती को कामोत्तजना को बढ़ाने वाली औषधियों व मादक चीज़ों का सेवन नहीं करना चाहिए। तीव्र भोगेच्छा से बचने वाला अपनी जीवन -शक्ति ,दीर्घजीविता ,रचनात्मकता और आध्यात्मिकता को बढ़ाता हैं।
यदि यह दृष्टिकोण व्यक्ति ,परिवार, समाज, देश और विश्व में स्थापित हो जाय और इसे मान्य किया जाय तो अपराध बहुत कम हो सकते हैं पर वर्तमान में जितनी अधिक शिक्षा और उच्च पद की नौकरियाँ और उसके पहले स्कूली कॉलेज की पढ़ाई में चारित्र की गिरावट शुरू होने लगती हैं। जब नौकरी में जाते हैं तो माँ बाप उनकी देखरेख को कभी नहीं जाते। इसके लिए कभी कभी अचानक निरिक्षण करना चाहिए। जिससे उनके क्रियाकलाप पता चल जाता हैं।
जैसे आज लव जिहाद के सम्बन्ध में यदि व्यस्क लड़के लड़की को इतना जानकारी होती हैं की कौन किस जाति का हैं और वर्षों से मिल जुल रहे हैं और सब कुछ हो जाता हैं जैसे आकर्षण में शारीरिक सम्बन्ध का होना और उसके बाद अलग अलग कहानियां प्रताड़ना मिलना और कभी कभी मौतों का होना।अपराध बनना। कहावत हैं --
भूख न देखें जूठा भात ,प्यार न देखे जात पात और नींद न देखे टूटी टाट।
वर्षों से प्यार मोहब्बत चलता रहता हैं और माँ बाप परिवार जन्य बेफिक्र। और जब सर से पानी निकलने लगता हैं तब आँख खुलती हैं। इसमें कौन दोषी हैं कहना मुश्किल पर प्रभाव प्रभावित होने वालों पर होता हैं। कानून और सामाजिक संस्थाएं कितना बचाव और योगदान दे सकते हैं मालूम नहीं पर हम अपने परिवार में ऐसी बातों की शंका होने पर बच्चों को समझाया जाय और उसके बाद के क्या क्या परेशानियां उठानी पड़ती हैं। कभी कभी गर्भवती होने पर विषम स्थिति बनती हैं। आजकल एकल परिवार में सीमित संख्या होने से अधिकतर समझौता करते हैं। इसमें समाज मामला बनाने की जगह बिगाड़ते हैं। प्रभावित परिवार को दो चार दिन संवेदनाएं मिलती हैं उसके बाद कोई को कोई मतलब नहीं होता हैं। मनुष्य की स्मृतिशक्ति अस्थायी होती हैं।
लिव इन रिलेशन को कानूनी मान्यता मिलने के कारण इसका चलन बहुत हैं। इसमें कानूनी रूप से वयस्क होते हैं और इसका दुष्परिणाम शुरुआत में नहीं मिलते पर अंत सुखद नहीं होते हैं। समलैंगिकता के कारण समाज में जो विकृतियां हो रही हैं उससे मानसिक तनाव के कारन सामाजिक जीवन सुखद नहीं होता। समाज उन्हें हिकारत से देखती हैं। उन्हें कोई भी सामाजिक प्रतिष्ठा नहीं मिलती। वे अपने आप में मस्त रह सकते हैं पर उसके बहुत दुष्परिणाम भोगना पड़ते हैं। इसमें सबसे पहले मनोरोग और मानसिक रोग की अधिकता होती हैं।
बलात्कार यानी जबरदस्ती यौन सुखकी प्राप्ति ,जबकि यौन सुख आपसी प्रेम के कारण होता हैं। यह एक मानसिक रोग हैं। इसमें रुग्ण व्यक्ति अपनी कामेच्छा की पुर्ति के लिए जबरन यौनाचार करता हैं। इसके लिए बहुत नियम कानून बने हैं और सुधार किये जा रहे हैं पर जितने अधिक कानून उससे अधिक अपराध। बलात्कार सड़क और घर में ,निजियों से। नजदीकी रिश्तेदारों द्वारा ,पिता भाई चचेरे ममेरे मित्र आदि के द्वारा किया जा रहा हैं। इससे सिद्ध होता हैं की सामाजिक मूल्य समाप्त हो चुके या हो रहे हैं। अब प्रश्न आ रहा हैं की इस पर विश्वास /भरोसा करे।
अपहरण भी एक प्रकार की मानसिक ,सामाजिक बीमारी हैं ,इसके दो लक्ष्य होते हैं पहला यौनाचार और कभी कभी अर्थ के मांग की पूर्ती। इसमें अपहरण कर्ताओं के मान की पूर्ती न होने पर मौत के घाट पर उतार देते हैं।
कुल मिला कर इसमें कई घटक कार्य करते हैं --पहला परिवार जनो का बहुत अधिक नियंत्रण रखना या बहुत अधिक छूट देना ,परिवार में स्वच्छ वातावरण न होना ,परिवार में नैतिकता न होना ,बहुत अधिक गरीबी या धनवान होना कम उम्र में मोबाइल ,पिक्चर ,टी वी में जो नहीं देखना वो देखना ,कम आकर्षण में आकर्षित होना ,छोटे छोटे प्रलोभन में फंसना ,गलत सोहबत ,सत्संग में रहना ,नशा का सेवन करना ,अनियंत्रित जीवन शैली अपनाना ,देर रात तक घूमना ,होटल बाज़ी करना ,अकेले रहने के दुष्परिणाम भी इसमें योगदान देता हैं। अपनी आय से अधिक खर्च के कारण अन्य- आय से अपने शौक की पूर्ती करना।
इन सबसे बचने का सुगम उपाय अपने जीवन में अच्छी बातें सीखना ,धर्म की बातों को अंगीकार करना ,अच्छा साहित्य पढ़ना ,माँ बाप को अपनी संतान को मित्रवत व्यवहार कर क्या अच्छा और क्या बुरा होता हैं समझाना। बच्चों को भी अपने साथ हुई घटना को तुरंत बताना। किसी गुरु से कुछ नियम लेना। अपने द्वारा किये गए कर्मों का फल यहाँ पर तुरंत भोगना पड़ता हैं। दूसरी बात इस संसार में कोई भी बात गुप्त नहीं होती। सात कमरों के भीतर किया गया यौनाचार नौ माह के बाद बाहर दिखाई देने लगता हैं।
यह सब व्यक्ति के साथ परिजन की जिम्मेदारी हैं ,शासन मात्र दंड देने के लिए अधिकृत हैं पर किये गए कर्म का फल स्वयं को भोगना पड़ता हैं। आजकल कुशील पाप की बहुतायत का इलाज़ मात्र ब्रह्मचर्य व्रत से ही सम्भव हैं। इसको समझने की जरुरत हैं।
वैसे एक क्षण का अपराध ,जीवन भर के लिए गुनाहगार बना देती हैं।
वैसे हम इस सुन्दर शरीर के आकर्षण के वशीभूत होकर एक दूसरे के पार्टी आकर्षित होते है जबकि इस शरीर की यदि चमड़ी हटा दी जाय तो स्वयं इससे घृणा करेंगे।
कूरे तियाके अशुचि तन में , काम -रोगी रति करें।
बहु मृतक सडहिं मसान माहीं ,काग ज्यों चोंचें भरें।
शासन के नियम के अलावा यदि सब लोग अपनी पत्नी को छोड़कर अन्य स्त्री को माता ,बहिन ,पुत्री माने तो यह अपराध बहुत सीमा तक नियंत्रित हो सकता हैं। यह पाप सर्व व्यापी रोग हैं जैसा की कोरोना। इसमें स्वयं वचाब की जरुरत हैं।
विषय बहुत विस्तृत हैं।
(लेखक-वैद्य अरविन्द प्रेमचंद जैन )