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(कहानी) ख़ामोश मोहब्बत -     

(कहानी) ख़ामोश मोहब्बत -     

चेहरे पर हल्की सी मुस्कुराहट, किसी अदृश्य व्यक्ति से बातें करते रहना, मानो कोई साया हमेशा साथ रहता हो! कोई अपना सा! जिसकी मौजूदगी ही काफी हो समीर के लिए....
कौन जाने समीर किस से बातें करता रहता था? हमेशा...
ज्यादातर लोग उसे पागल कहते थे लेकिन वो पागल था या ख़ामोशी को समेटे अपनी पुरानी ज़िन्दगी भुला बैठा था। "एक मायरा के नाम के सिवा उसे कुछ याद न था"....!!
मायरा का नाम लिखा हुआ कागज़ कोई समीर के आगे डाल देता, तो "समीर उसे उठा कर आंखों से लगा लेता और मुस्कुराते हुए अपनी जेब में रख लेता..."
समीर की माँ ताहिरा ऊपर वाले से दुआ करती, " ऐ अल्लाह मेरे सामने मेरे समीर को अपने पास बुला लेना, न जाने मेरे जाने के बाद क्या होगा मेरे समीर का... न इसका घर बसा न परिवार बना...." क्या होगा इसका मेरे बाद ?
ताहिरा को समीर की चिंता थी, वक़्त का तकाजा है जो आया है उसे जाना है, "उनके जाने के बाद समीर का क्या होगा"? यह बात उन्हें परेशान करती थी।
ताहिरा के छः बच्चों में समीर सबसे बड़ा था। समीर को अच्छी तालीम देने के लिए गांव से दूर लखनऊ भेजा था पढ़ने के लिए। 
समीर भी पढ़ने में बहुत तेज़ दिमाग़ था, मन लगा कर अपनी मेडिकल की पढ़ाई पूरी की और गोल्ड मेडल हासिल कर के डॉक्टर बन गया। घर में सब बहुत खुश थे,  परिवार में पहली बार किसी ने इतनी बड़ी डिग्री हासिल की थी। 
समीर दस दिन की छुट्टी लेकर घर आया। अपनी माँ ताहिरा से उसे कुछ ख़ास बात करनी थी....। 
बात उस समय की है जब आम लोगों के पास फोन नहीं होते थे कि जब मर्ज़ी आये बात कर लो..."लगभग 30 साल पहले की बात होगी"।
समीर एक लड़की से बेइंतहा मोहब्बत करता था। उसने अपनी माँ से कहा-"माँ अब्बा से बात करो ,,एक लड़की है, "मायरा ! हम दोनों एक दूसरे को पसंद करते हैं"... हम शादी करना चाहते हैं....।
"लड़की के पिता चमड़े का कारोबार करते थे।" 
मायरा बैंक मैनेजर थी...।
ताहिरा ने समीर के अब्बा से इस विषय पर बात की लेक़िन समीर के अब्बा ने यह कह कर मना कर दिया कि "लड़की के पिता चमड़े का कारोबार करते हैं... लिहाज़ा ये शादी उन्हें मंज़ूर नहीं" उन लोगों का खानदान हमारे बराबर नहीं।
ताहिरा ने बहुत समझाने की कोशिश की लेकिन बात न बनी।
ताहिरा अपने बेटे की हालत समझ रही थी लेकिन ज्यादा कुछ कर न सकी...। 
रूढ़िवादी सोच कभी कभी कई तूफ़ान खड़े कर देती है। जैसे समीर की ज़िंदगी में आने वाला था।
समीर ने अपनी छुट्टी पूरी होने से पहले ही वापस जाने की तैयारी कर ली और वापस लखनऊ आ गया।
अब वह पहले जैसी खुशमिजाजी से नहीं रह पाता था। लखनऊ में वह अपनी बुआ के घर रहता था, लेकिन बुआ भी ज़्यादा कुछ महसूस नही कर सकीं.,,,।
माँ के कई खत आये लेकिन उनका कोई जवाब नहीं मिला..।
माँ ने लखनऊ जाकर बात की, कि समीर कोर्ट में शादी कर ले, लेकिन समीर को अपने पिता की रजामंदी जरूरी थी लिहाज़ा मना कर दिया।
"अब मायरा से भी उसकी दूरी बनने लगी"। 
समीर का मानसिक तनाव लगातार बढ़ रहा था, 
कहते है न कि चिंता और चिता में एक बिंदु का फर्क है, कुछ ऐसे ही हालात समीर के बने हुए थे।
समीर की खामोशी में एक साल गुजर गया.....।
एक साल बाद, "समीर अचानक अपना सामान लेकर घर वापस चला आया"...।
बिना कुछ बोले...।
घर पहुँच कर माँ से बोला," मैंने नौकरी छोड़ दी"। 
माँ ने पूछा क्यो??
आख़िर क्या हुआ समीर??
यह सवाल घर में सब ने अपने तरीके से पूछना चाहा लेकिन किसी को समीर का जवाब नहीं मिला...।
"समीर मानसिक तनाव की कई हदें पार कर चुका था" लेक़िन घर में अभी भी लोग उसे सामान्य समझने की भूल कर रहे थे।
समीर ने खुद को कमरे में बंद कर लिया...,,
अगली सुबह कुछ रद्दी के ढ़ेर में समीर आग लगा रहा था, पास जाकर देखने में पता चला,, ये रद्दी के ढ़ेर समीर के जीवन भर की पूंजी थी,,,ये उसकी डिग्रियां थीं...साथ में गोल्ड मेडल का प्रमाणपत्र भी.....।
समीर ने सब कुछ जला दिया.....और वह अब भी ख़ामोश था...।
घर वालो ने समीर पर किसी साये के होने की आशंका जताई, जैसा आमतौर पर हमारे समाज में होता है। लोग मानसिक तनाव को हल्के में लेते हैं, उसे केवल जादू-टोना, झाड़-फूक करा कर संतुष्ट हो लेते हैं। अपनी सोच का दायरा यहाँ तक नहीं पहुँचाते की यह मानसिक बीमारी है न कि किसी जादू टोने का असर!!
खैर ! झाड़-फूक का सिलसिला चलता रहा और एक दिन समीर घर छोड़ कर चला गया। बहुत ढूंढा, दुआएँ मांगी लेकिन समीर का कोई पता न चला...
अचानक आठ माह बाद समीर वही पुराने गंदे कपड़ों में बड़ी हुई दाढ़ी के साथ, पहले जैसी बदहवासी में घर के बाहर खड़ा था.…..।
समीर की छोटी बहन ज़िया ने ज़ोर से चिल्ला कर कहा,"अम्मा भाई आ गए"!
बहुत पूछने पर भी समीर ने कोई जवाब न दिया की वह इतने दिनों कहाँ था...?
फिर तावीज़ गंडो से समीर को बाँधा गया, लेकिन अफ़सोस किसी का ध्यान उसके मानसिक स्वास्थ्य पर गया ही नहीं....।
जिसका मलाल ताहिरा को अपने जीवन भर रहा...।
कई सालों बाद अपने एक पारिवारिक मित्र के कहने पर समीर का इलाज़ कराने की कोशिस की लेक़िन तब तक बहुत देर हो चुकी थी...
समीर में कोई खास परिवर्तन न आया। 
हां बस, समीर घर के कामों में हांथ बटाने लगा, वह भी जब उसकी मर्जी होती, किसी और कि मर्ज़ी उस पर असर न करती, वो अपनी एक अलग दुनिया में गुम रहता,,,,,
कभी किसी अदृश्य व्यक्ति से बातें करता...
कभी अपने आपसे हँसता, मुस्कुराता, कभी रोने लगता...। 
चिंता,डिप्रेशन, मानसिक तनाव ने समीर को अपनी गिरफ्त में ले लिया, जिसने उसे मानसिक रोगी बना दिया और समाज ने उसे पागल घोषित कर दिया....।
ताहिरा की दुआ ऊपर वाले ने सुन ली 2018 में समीर ने अंतिम सांस ली...उसके कुछ महीने बाद ताहिरा का भी इंतेक़ाल हो गया...।
(लेखिका- नाज परवीन )

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