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देश के संयत्रों में आगजनी से बेमौत मरते मजदूरों का जिम्मेवार कौन ? 

देश के संयत्रों में आगजनी से बेमौत मरते मजदूरों का जिम्मेवार कौन ? 

देश में हर वर्ष मजदूर दबकर व जलकर मारे जा रहे हैं। वीरवार को ताजा दर्दनाक हादसे के  घटनाक्रम में पुणे में वैश्विक महामारी कोरोना वायरस कोबिड 19 की वैक्सीन कोविशील्ड बनाने वाली सीरम इंस्टीटयूट आफ इंडिया की
इमारत में भीषण आग लगने से पांच मजदूरों की दर्दनाक मौत हो गई। 9 मजदूरों को सुरक्षित बचा लिया गया है। मजदूरों ने सपने में भी नही सोचा होगा सीरम  इंस्टीटयूट उनके लिए शमशान बन जाएगा ।पल भर में जिन्दा लोग राख में बदल गए यह बहुत ही त्रासदी है।यह कोई पहला मामला नहीं है।गत वर्षो में गुजरात
के भरुच में एक कैमीकल फैक्टरी में विस्फोट होने से पांच मजदूरों की दर्दनाक मौत हो गई थी और 57 लोग बुरी तरह घायल हो गए थे।अभी गैस लीक हादसे की स्याही भी नही सूखी थी कि पुणे हादसे ने एक नई इवारत लिख दी है।गत साल आंध्रप्रदेश के विशाखापटटनम में भोपाल गैस कांड जैसा हादसा हों गया था।एक प्लांट में स्टाईरिन गैस लीक होने से लोगों को अपनी चपेट में ले लिया था और असमय ही काल का गा्रस बन गए  थे।रिसाव के बाद यह गैस 4 किलोमीटर के दायरे में फैल गई थी ।यह हादसा शहर से 30 दूर वैंकटपुरम गांव में हुआ था यह कंपनी 1961 में बनी थी और लाॅकडाउन की बजह से बंद थी। एनडीआरएफ की टीम द्वारा लोगों को दरवाजे तोड़कर बाहर निकाला था।पल भर में लाशों के ढेर लग गए थे।यह हादसा रात को ढाई बजे घटित हुआ था।सुबह लोग
गहरी निंदा्र में सोए थे लोगों ने सपने में भी नहीं सोचा था कि उनके अपने ऐसी नींद सो जाएगें कि फिर नहीं जागेगें।यह बहुत ही दर्दनाक हादसा था।पुणें में हुए दर्दनाक हादसे से हर भारतीय गमगीन है।हर आंख नम है कि
पल झपकते ही बेकसूर लोग मारे गए ।बीते वर्ष में रायबरेली के उंचाहार में एटीपीसी संयत्र का बायलर फटने से 30 मजदूरों की दर्दनाक मौत हो गई थी तथा 100के लगभग घायल हो गए थे।500 मैगावाट इकाई के बायलर में यह हादसा हुआ था उस समय 200 कामगार मौजूद थे ।गत वर्ष 2019 में दिसंबर में राजघानी दिल्ली में रानी झांसी रोड़ पर स्थिित अनाज मंडी में सुबह चार बजे आग लगने से 43 लोगों की दर्दनाक मौत हो गई थी तथा कई लोग घायल हो गए थे ।एडीआरएफ की टीम ने केवल 56 लोगों की जान बचा ली थी।यह भीषण आग सुबह साढे चार बजे के करीब लगी थी।आग लगने का कारण शार्टसर्किट था।मालिक के खिलाफ गैर इरादतन हत्या का मामला दर्ज कर लिया था।यह मजदूर बिहार के समस्तीपुर के एक ही गांव के थे। अनाज मंडी शमशानघाट बन गई।कैसी विडंबना है कि कभी सुरगों व उद्योगों में बेमौत मारे जा रहे हैं। मगर केन्द्र व राज्य की सरकारों को जरा सा सदमा होता तो मजदूरों के हितों में कदम उठाती लेकिन सरकारें तो तब जागती हैं जब बड़ा हादसा घटित हो जाता है।2019 में उद्योगों में आग के काफी मामले घटित हुए थे। देश में मजदूरों के साथ होने वाले हादसे थमने का नाम नहीं ले रहे हैं।कारखानों में जल कर मजदूर मर रहे हैं।गत वर्ष भी एक ही दिन में दो हादसों में 19 मजदूर मारें गए थे जब राजधानी दिल्ली के बाहरी जिले में स्थित बवाना औद्योगिक क्षेत्र में एक पटाखें की फैक्टरी के गोदाम में भीषण आग लगनें के कारण 17 लोगों की मौत हो गई थी और तीस लोग बुरी तरह झुलस गए थे। मरने वालों में 10 महिलाएं तथा 7 पुरुष थी।लगभग तीन घंटे की मश्क्कत के बाद आग पर काबू पाया जा सका तब तक सब कुछ राख हो चुका था।आग के कारणो का पता नहीं चल पाया है।प्रशासन को चाहिए कि लापरवाही बरतने वालों को सजा दी जाए ताकि फिर एसे हादसे न हो सके।दूसरे हादसे में कानपुर में भी दो मजदूरों की मलबे में दबने से
दर्दनाक मौत हो गई। एक दिन में ही 19 मजदूर मारे गए।यह बहुत ही दुखद है। सरकारों ने मृतकों को मुआवजे की घोषणा करती है मगर मुआवजा इसका हल नहीं है।एक ऐसा ही हादसा जयपुर के पास खातोलाई गांव में घटित हुआ था जहां टाªसफारमर फटने से 14 लोगों की मौत हो गई थी। इन हादसों ने औद्याोगिक क्षेत्रों में मजदूरों की सुरक्षा पर प्रशनचिन्ह लगा दिया है इन हादसों पर संज्ञान लेना होगा तथा मजदूरों की सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम करने होगें ताकि भविष्य में ऐसे हादसों पर रोक लग सके। गत वर्ष जम्मू के उधमपूर से 80 किलोमीटर दूर रामबन जिले के चंद्रकोट में जम्मू-कश्मीर हाईवे पर टनल कर्मचारियों की बैरक में आग लगने से दस श्रमिक जिंदा जल गए थे। यह बैरक लोहे व फाईबर की बनी थी। यह बहुत ही दुखद हादसा था। आग लगने का कारण बिजली का शार्टसर्किट था।इस बैरक में 100 से अधिक लोग रहते थे। मगर छुटटी होने के कारण आसपास के लोग अपने घरों को चले गए थे। गनीमत रही की यह अपने-अपने घरों को गए थे वरना मृतको की संख्या 100 के लगभग होती ।नया वर्ष इन मजदूरों के लिए यमराज बन कर आया था और बेचारे टनल में ही जिन्दा जलकर राख हो गए थे इन अभागों ने सपने मे भी नहीं सोचा होगा की नया साल उनके लिए घातक साबित होगा।मारे गए मजदूरों में एक मजदूर हिमाचल के कांगड़ा का था तथा एक पंजाब का था बाकि बनिहाल-रामबन क्षेत्र के निवासी
थे।सुरगं में घटित इस दर्दनाक हादसे ने कई प्रशन खड़े कर दिए है कि आखिर यह हादसे कब रुकेगें।यह कोई पहला हादसा नहीं है देश में अब तक हजारों मजदूर बेमौत मारे जा चुके है। मुम्बई के अलीबाग में एक पटाखा फैक्ट्री में आग लगने से 9 मजदूर मारे गए थे और 19 घायल हो गए थे। आखिर कब तक
मजदूर  इमारतों में जमीदोज होते रहगें ।यह बहुत ही दर्दनाक हादसा था जिसने एक साथ इतने लोगों को लील लिया था । भले ही प्रशासन मुआवजे का मरहम लगाता है  मगर जो बेमौत मारे गये क्या वे लौट आएगें यह एक यक्ष प्रशन बनता जा रहा है।ऐसे हादसे पहले भी हो चुके है जिसमें सैंकड़ों लोग लापरवाही के
कारण मारे जा चुके हैं। इमारतों के नीचे दबकर मजदूर काल का ग्रास बन रहे है।हादसों को देखकर रौगंटे खडे़ हो जाते हैं देश के राज्यों में चल रहे ईटों के भठठों में मजदूर मारे जा रहे हैं।मजदूरों के पसीने से ही ईटें
पकती हैं मगर भठठा मालिक मजदूरों का शोषण कर रहे हैं मजदूर खून-पसीना बहाकर काम करते है।मगर बदले में मेहनताना नाममात्र दिया जाता है।मालिक मजदूरों के सिर पर करोड़ों रुपया कमा रहे है।आंकडे़ बताते है कि 2001 से 2019 तक हजारों मजदूर मारे जा चुके हैं। इस घटना ने सवाल खड़े कर दिये हैं कि बार-बार हो रहे इन हादसों के कारण क्या है इस घटना ने यह प्रमाणित कर दिया है कि बीती  घटनाओं से न तो सरकार ने सबक सिखा और न ही लोगों ने सीखा। पिछले कई सालों से ऐसे दर्दनाक हादसे हो रहे हैं सरकारें ऐसी घटनाओ के बाद मुआवजों की घोषणा करने तथा जांच के आदेश देने में देरी नहीं करती। देश में प्रतिदिन ऐसे मर्मातंक हादसे होते है मगर प्रकाश में नहीं आते। ।इन हादसों में सैंकड़ों बच्चे अनाथ हो गए और कई मां-बहनों का सिदूर मिट
गया और बहनों के भाई मारे गए।केन्द्र सरकार को इन हादसों के संदर्भ में छानबीन करवानी चाहिए तथा दोषियों को सजा देनी होगी। समय रहते इन घटनाओं को रोकने के लिए कारगर कदम उठाने होगें ताकि भविष्य में ऐसी दर्दनाक हादसों पर विराम लग सके।अगर अब भी सरकार ने लापरवाही बरती तो निदोर्ष लोग व मजदूर बेमौत मरते रहेगें।ऐसे हादसो पर रोक के लिए पुख्ता इंतजाम किए जाए ताकि भविष्य में ऐसे दर्दनाक की पुनरावृति न हो सके।
(लेखक- नरेन्द्र भारती )

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