
कहते है कि प्राकृतिक आपदाओं को रोक तो नहीं सकते परन्तु अपने विवेक व ज्ञान से अपने आप को सुरक्षित कर सकते है। उतराखंड में प्रकृति का रौद्र तांडव , एक त्रासदी है।प्रलय में असमय व अकाल ही निर्दोष लोग मारे गए।कुछ बच गए कुछ लापता हो गए।सर्च आपरेशन जारी है।कैसा विडंबना है कि एक तरफ जहां पूरा देश कोरोना महामारी के दंश को बुरी तरह झेल रहा है।दूसरी तरफ प्रकृति रौद्र रुप दिखकर तांडव मचा रही है।रविवार को उतराखंड में प्रकृति ने प्रलय की इबारत लिख दी।रविवार को सुबह साढे दस बजे राज्य के चमोली जिला के तपोवन में ग्लेशियर टूटकर ऋषिगंगा नदी में गिरा और तबाही का मंजर पल भर में लोगों को लील गया। ऋषिगंगा नदी के किनारे रैणी गांव में ऋषिगंगा पावर प्रोजेक्ट तहस नहस हो गया और दर्जनों लोगों की लील गया। 16 लोगों को एडीआरएफ ने बचा लिया है।204 लोग लापता है और 34 शव बरामद कर लिए है।यह बहुत ही त्रासदी है।पल भर में लोग बह गए और लापता हो गए।चमेाली में लापता लोगां की तलाश के लिए अब जियांेग्राफीकल स्कैनिंग की जा रही है।प्रकृति समय≤ पर आगाह करती रहती है मगर फितरती हो चुका मानव खुद केा समझकार समझता है मगर प्रकृति ने एक छोटे से झटके से उसको औकात दिख दी है।सरकारो ने मुआवजे की घोषणा कर दी है मगर मुआवजा इसका हल नहीं है।प्रकृति से खेलना बंद करना होगा।यह प्रलय निरंतर होते रहेगें। बीते साल 2020 में अम्फान चक्रवात ने पश्चिम बंगाल और उड़ीसा में तबाही मचा दी थी ।80 लोग अकाल बेमौत मारे गए थे। लाखों लोग बेघर हो गए थे ।पुल क्षतिग्रस्त हो गए थे।इलाके जल्मगन हो गए थे। देश में कभी भूकंप, कभी सुनामी, जैसीे प्राकृतिक आपदाएं अपना जलवा दिखाती है तो कभी बाढ़ का रौद्र रुप जिदंगियां लीलता है। लाखोंझारों लोग मारे जाते है। मानव भी प्रकृति से छेड़छाड़ करने से बाज नहीं आते जब प्रकृति अपना बदला लेती है तब लोगों को होश आता समय≤ पर भीषण त्रासदियां होती रहती है मगर हम आपदाओं से कोई सबक नहीं सीखते।हर त्रासदी के बाद बचाव पर चर्चा होती है मगर कुछ दिनो बाद जब जीवन पटरी पर चलने लग जाता है तो इन बातों को भूला दिया जाता है। अगर बीती त्रासदियों से सबक सीखा जाए तो आने वाले भविष्य को सुरक्षित कर लिया जा सकता है। मगर हादसों व आपदाओं से न तो लोग सबक सीखते है और न ही सरकारें सबक सीखती हैं।कुछ दिन सरकारी अमला औपचारिकता निभाता है और उसके बाद अगली घटना तक कोई कारगर उपाय नहीं किए जाते। सरकारो को इस आपदाओं पर मंथन करना चाहिए तथा शिविर लगाकर महानगरों, शहरों व गांवो के लोगों को जागरुक किया जाए। तभी तबाही से बचा सकता है।देश में प्राकृतिक आपदाओं का कहर थमने का नाम नहीं ले रहा है। प्रकृति का कहर अनमोल जिन्दगीयां लील रहा है। देश के हर राज्य में बरसात से त्रासदीयां हो रही है। इस विनाशकारी प्रकृति के कहर से जनमानस खौफजदा है। अक्तूबर 1999 में भी उड़ीसा में तूफान ने काफी तबाही मचाई थी। प्रकृति की इस विभिषिका में हजारों लोग अपंग हो गए थंे।बच्चे अनाथ हो थे लाशे मलवे में दफन हो थी। सरकार को चाहिए की प्रत्येक गांव से लेकर शहरो तक आपदा प्रबंधन कमेटियां गठित करनी चाहिए जिसमें डाक्टर नर्स व अन्य प्रशिक्षित स्टाफ रखना चाहिए ताकि व त्वरित कारवाई करके लोगों केा मौत के मुंह से बचा सके ।अक्सर देखा गया है कि जब तक आपदा प्रबंधन की टीमें घटना स्थनों पर पहुचती है तब तक बची हुई सासंे उखड़ जाती है लाशों के ढेर लग जाते है।अगर समय पर आपदा ग्रस्त लोगों को प्राथमिक सहायता मिल जाए तो हजारों जिदंगियां बचाई जा सकती हैं। प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए सरकार को कालेजों व स्कूलों में भी माकड्रिल जैसे आयोजन करने चाहिए ताकि अचानक होने वाली आपदाओं से अपना व अन्य का बचाव किया जा सके।स्कूलो व कालेजों मे चल रहे राष्ट्रªªीय सेवा योजना व स्काउट एंड गाइड के स्वंयसेवियों को आपदा से निपटने के लिए पारगंत किया जाए।अगर यही स्वयसेवी अपने घर व गांवों में लोगों को आपदा से बचने के तरीके बताए तो काफी हद तक नुक्सान को कम किया जा सकता है। सरकार को चाहिए कि आपदा से बचाव के लिए प्रत्येक विभाग के कर्मचारियों को पूर्वाभ्यास करवाया जाए ताकि समय पर काम आ सके।पुलिस व अग्शिमन के
कर्मचारियों को भी समय ≤ पर ऐसे आयोजन करते रहना चाहिए।अगर सभी लोग आपदा से बचाव के तरीके समझ जाएगें तो तबाही कम हो सकती है।प्रकृति एक ऐसी देवी है जो भेदभाव नहीं करती प्रकृति के बिना मानव प्रगति नहीं कर सकता,प्रत्येक मानव को बराबर धूप व हवा व पानी दे रही है।मानव कृतध्न बनता जा रहा है।मानव ने स्वार्थो की पूर्ति के लिए प्रकृति को लहूलुहान किया है।आज प्रकृति ने अपना बदला ले लिया है। तबाही की इबारत लिख दी है ।मानव का अहम मिटाकर रख दिया है।गलतफहमियों में जी रहे मानव आज प्रकृति
के आगे नतमस्तक हो चुकें है।अतीत में की गए कुकर्मो का पश्चाताप कर रहे है।प्रकृति ने मानव को समय≤ पर आगाह किया मगर इंटरनैट की दुनिया के जाल में फंसा मानव खुद को प्रकृति से बड़ा माने लगा था उसे यह आभास नहीं था कि प्रकृति सबसे बड़ी गुरु है।प्रकृति ने बहुत कुछ सहा है चारों तरफ गंदगी है वातावरण अशुद्ध हो गया है।वातवरण कि शुद्धि के लिए प्रकृति मजबूर हो गई और मगरुर हो चुके इंसान का गुरुर तोड़ कर रख दिया है। अनजाने में हुई भूल को माफ किया जा सकता है मगर जानबूझकर की गई गलतियों की सजा प्रकृति ने
मानव को दे दी है। मानव को जीवन और मौत की परिभाषा सिखा दी है।यह प्रलय की आहट है। कुदरत ने भटक चुके मानव को पाप और पुण्य का अंतर समझा दिया है।प्रकृति का एक संदेश है भटक चुके व अहंकारी इंसान के लिए जो कुदरत से खिलवाड़ करता था।प्रकृति के प्रकोप से बचना है तो हमें अपनी जीवन शैली बदलनी होगी,छेड़छाड़ बंद करनी होगी।अगर अब भी मानव ने प्रकृति पर अत्याचार बंद नहीं किया तो प्रकृति अपना बदला लेती रहेगी और मानव को सबक सीखाती रहेगी। कुदरत का कहर बरपता रहेगा।यह प्रकृति का एक टरेलर ही है अगर अब भी मानव ने प्रकृकि से छेड़छाड़ बंद नहीं की तो प्रकृति पूरी पिक्चर दिखएगी तब होश् आएगा वक्त अभी संभलने का है।
(लेखक-नरेन्द्र भारती )