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करगिल में पराजय देख अमेरिकी राजदूत के सामने जब पाक राजदूत गिड़गिड़ाए

करगिल में पराजय देख अमेरिकी राजदूत के सामने जब पाक राजदूत गिड़गिड़ाए

नई दिल्ली । पाकिस्तान की भारत के सामने कितनी औकात है इसका ताजा मामला भारत में अमेरिका के राजदूत रहे रिचर्ड सेलेस्टे ने अपनी नई किताब में किया है दरअसल, करगिल युद्ध के दौरान भारत में पाकिस्तानी राजदूत के साथ बातचीत का जिक्र किया है। रिचर्ड ने अपनी किताब 'लाइफ इन अमेरिकन पॉलिटिक्स एंड डिप्लोमेटिक इयर्स इन इंडिया' में लिखा है कि भारत में पाकिस्तान के राजदूत रहे अशरफ काजी से उनकी करगिल युद्ध के दौरान मुलाकात हुई थी। अमेरिकी राजदूत की यह किताब ऑफिशियली सितंबर में लॉन्च होगी।
एक अंग्रेजी अखबार की रिपोर्ट में किताब के हवाले से बताया गया है कि इस मुलाकात में काजी ने करगिल में भारत के आक्रामक रवैये को देखते हुए अमेरिका की मदद मांगी थी। काजी चाहते थे कि भारत करगिल में अपनी कार्रवाई रोक दे। वहीं, पाकिस्तान का कहना था कि करगिल में लड़ने वाले सिविलियन फ्रीडम फाइटर्स हैं। इस पर रिचर्ड ने कहा था कि मुझे पता है सच्चाई क्या है लेकिन मैं तुम्हारे लिए शर्मिंदगी भी उठाने को तैयार हूं। उन्होंने कहा था कि तुम बताओ आखिर पाकिस्तानी सरकार क्या चाहती है। रिचर्ड ने कहा था कि हमें पता है कि उन लड़ाकों को किसने ट्रेनिंग और हथियार मुहैया कराए हैं। ऐसे में हमारी सरकार तुम्हारी बात नहीं मान सकती है।
इस घटना के तुरंत बाद अमेरिकी राष्ट्रपति ने पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को करगिल से सैनिकों को वापस बुलाने को कहा था। क्लिंटन ने इसके बाद तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को भी फोन किया था। पूर्व अमेरिकी राजदूत ने लिखा कि भारत और अमेरिका के संबंधों को देखते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति का फोन करना बिल्कुल अप्रत्याशित था। जानकारों के अनुसार यह घटना भारत और अमेरिका के संबंधों में टर्निंग प्वाइंट साबित हुई। रिचर्ड सेलेस्टे ने अपनी किताब में जिक्र किया है कि किस तरह से भारत के न्यूक्लियर टेस्ट के कारण उनकी भारत यात्रा कभी नहीं हो सकी। रिचर्ड आगे लिखते हैं कि 1998 में अमेरिका के विशेष दूत बिल रिचर्डसन ने तत्कालीन विदेश मंत्री जसवंत सिंह से मुलाकात की। उन्होंने न्यूक्लियर टेस्ट को लेकर अमेरिकी प्रशासन की चिंताओं के बारे में भारत को अवगत कराया। रिचर्ड लिखते हैं कि जसवंत सिंह, जो मेरे एक प्रिय मित्र थे, विशेष दूत की बातों को ध्यान से सुना और बेबाकी से जवाब दिया। उनकी भाषा को समझने के बाद हमने निष्कर्ष निकाला कि निकट भविष्य में न्यूक्लियर टेस्ट नहीं होगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ। एक महीने से कम समय के बाद ही भारत ने न्यूक्लियर टेस्ट कर दिया।
 

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