
वाशिंगटन । जलवायु परिवर्तन का दुष्प्रभाव केवल मौसम और इंसानों पर ही नहीं बल्कि जानवरों पर भी पड़ रहा है। ग्लोबल वार्मिंग का असर यूं बहुत सी प्रजातियों पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हो ही रहा है, लेकिन इंटरनेशनल पोलर बियर डे के मौके पर चर्चा पोलर बियर यानी ध्रुवीय भालू पर काफी उपयुक्त है। जलवायु परिवर्तन का सीधा प्रभाव ध्रुवीय बर्फ का पिघलना है। आर्कटिक इलाके में पिघलती बर्फ का असर ध्रुवीय भालू पर कम नहीं हुआ है। ताजा अध्ययन के मुताबिक अब इन भालुओं को शिकार करने में ज्यादा ऊर्जा लगाने की जरूरत पड़ती है। आर्टिक में बर्फ का पिघलाव बहुत तेजी से हो रहा है। पिछले कुछ समय के वैज्ञानिक अध्ययन बताते हैं कि यह स्थिति अब खतरनाक रूप लेने लगी है। इस बहुत ही बड़े बदलाव का कारण ध्रुवीय इलाके के ध्रुवीय भालुओं जैसे शिकारी जीवों को अपने भोजन और बर्ताव की आदतों में बदलाव करना पड़ा। इतना ही नहीं उन्हें यह बदालव ठंडी जलवायु वाले स्तनपायी जीवों की तुलना में ज्यादा तेजी से करना पड़ा है।
उत्तरी ध्रुवों की खास प्रजातियां ग्लोबल वार्मिंग की वजह से अनिश्चित भविष्य का सामना कर रही है। इससे समुद्रों की बर्फ गायब हो रही है, जिससे हाल ही में एक्सपिमेंटल बायोलॉजी में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार पोलर बियर को जमीन की ओर जाना पड़ रहा है। इन बदलावों का ध्रवीय बर्फ पिघलने का यहां की प्रजातियों पर गहरा असर होता दिखाई दे रहा है।
शोध के सहलेखक और सांता क्रूज की यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया में इकोलॉजी एंड इवोल्यूशनरी बायोलॉजी विभाग के प्रमुख का कहना है कि आर्कटिक की दुनिया अब ध्रुवीय भालू जैसे जानवरों के लिए बहुत ही अप्रत्याशित हो गई है। शोधकर्ताओं के मुताबिक सीमित मात्रा में ऑक्सीजन के साथ ध्रुवीय भालुओं के पास समुद्री स्तनपायी शिकार कम हो गए और उनके भूखे रहने का जोखिम पैदा हो गया। पहले के शोध बता चुके हैं कि ध्रुवीय भालू सील के रूप में भोजन पर बहुत अधिक निर्भर करते हैं जिसमें उन्हें बहुत अधिक मात्रा में कैलोरी वाला आहार मिलता है।अपनी ऊर्जा बचाने के लिए ये भालू अब भी घंटों तक सील का शिकार करने के मौके का इंतजार करते हैं। सील समुद्र बर्फ में सांस लेने वाले शंकु के आकार के छेद से सांस लेते थे। इसी मौके पर सतह पर भालू उन पर झपटकर उन्हें बाहर निकालते हैं।लेकिन बर्फ पिघलने से इन हालात की नौबत ही नहीं पाती है।