
लंदन । यह गलत नहीं है कि कोरोना वायरस के यूके वैरिएंट (बी.1.1.7) और साउथ अफ्रीका स्ट्रेन (बी.1.351) को कुछ ही हफ्तों पहले खोजा गया है, लेकिन इनके बारे में लगातार हो रहे अध्ययनों में कुछ गंभीर बातें सामने आ रही हैं। अध्ययन से पता चल चुका है कि ये वैरिएंट्स ज़्यादा तेज़ी से फैलने वाले हैं। यह भी देखा गया कि इन स्ट्रेनों के संक्रमण के बाद कुछ लक्षण भी अलग हैं और ये उन लोगों को चपेट में ले रहे हैं, जिन्हें पहले तुलनात्मक रूप से ज़्यादा सुरक्षित माना जा रहा था।
सवाल यह है कि क्या ये वैरिएंट जानलेवा भी पाए गए हैं? रिपोर्ट्स की मानें तो जिन एज समूहों को पहले हेल्दी मानकर कोरोना का खतरा कम होने की बात कही गई थी, नए वैरिएंट्स उस एज ग्रुप के लिए भी जोखिम बन गए हैं। यही नहीं, कुछ ताज़ा रिपोर्टों के अनुसार कई मामलों में इन स्ट्रेनों के चलते मृत्यु दर में इज़ाफा हो सकता है। भारत में इन स्ट्रेनों के केस पाए जा चुके हैं, ऐसे में यह समझना अहम है कि ये स्ट्रेन कितने गंभीर हैं और क्यों।
ब्रिटेन के कुछ हिस्सों में तेज़ी से फैले इस वैरिएंट के बारे में ताज़ा रिसर्च लंदन स्कूल ऑफ हाईजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन में हुई। इसमें पाया गया है कि यह वैरिएंट पहले के वायरस की तुलना में 33 फीसदी ज़्यादा जानलेवा साबित हो सकता है। इस तरह के अध्ययनों के बीच लंदन के वैज्ञानिक नवंबर 2020 से जनवरी 2021 के बीच पॉज़िटिव पाए गए 8,50,000 से ज़्यादा लोगों के नमूनों को देख रहे हैं कि वो किस वैरिएंट से संक्रमित हुए हैं। इसके अलावा और भी कुछ अध्ययनों में यह बताया गया है कि नया वैरिएंट संक्रमित लोगों में खतरा बढ़ा देता है।
ऑस्ट्रेलिया में किए गए एक अध्ययन में कहा गया है कि अगर कोई मरीज़ नए वैरिएंट से संक्रमित है, तो एज फैक्टर बढ़ने के साथ मौत का खतरा भी बढ़ जाता है। यही नहीं, इसी तरह की बात इंपीरियल कॉलेज लंदन के अध्ययन में भी कहा गया है कि यह वैरिएंट ज़्यादा प्राणघातक दिख रहा है। कौन ज़्यादा जोखिम में है? इसका जवाब वही है, जो पहले के वायरस के बारे में बताया गया यानी बीमार, कमज़ोर इम्युनिटी और ज़्यादा उम्र के लोग इस वैरिएंट की चपेट में जल्दी आ सकते हैं। 70 से 84 साल की उम्र के वर्ग में इस वैरिएंट से संक्रमण होने पर मृत्यु दर 5 फीसदी तो 85 से ज़्यादा उम्र वर्ग में 7 फीसदी तक बढ़ जाती है। यही नहीं, नया वैरिएंट कम उम्र और सेहतमंद लोगों को भी पिछले वायरस की तुलना में ज़्यादा और जल्दी चपेट में ले सकता है।
ऐसा क्यों है? यह पाया जा चुका था कि बी.1.1.7 वैरिएंट ओरिजनल वायरस की तुलना में सभी उम्र, कल्चर और जेंडर वालों के लिए ज़्यादा घातक है, अब एक और ताज़ा रिसर्च यह भी कह रही है कि नया स्ट्रेन 20 साल से कम उम्र के युवाओं और खासकर बढ़ते बच्चों के लिए जोखिम का सौदा है। चूंकि यह स्ट्रेन ज़्यादा बड़ी आबादी को टारगेट कर सकता है इसलिए भी संक्रमण के मामले ज़्यादा बढ़ रहे हैं। कई अध्ययन चल रहे हैं, अब तक की रिसर्च में सामने आया है कि इस वैरिएंट की सतह पर स्पाइक प्रोटीन मौजूद है, जो एंटीबॉडी को जल्दी पार कर लेता है इसलिए जल्दी संक्रमित करता है। इसी वजह से यह भी कहा जा रहा है कि इस वैरिएंट के खिलाफ मौजूदा वैक्सीनों के स्ट्रॉंग डोज़ देने होंगे। दूसरी बात यह है कि कोरोना वायरस की मौजूदगी तो आप सामान्य पीसीआर टेस्ट से जांच सकते हैं। इस वैरिएंट की जांच जेनेटिक सीक्वेंस से होती है, जो फिलहाल कठिन है। क्या कोई और भी खतरा है?