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पैसे की नहीं, रेत की कमी की वजह से अगले दिनों में प्रभावित हो सकती है कोरोना वैक्सीन की आपूर्ति  

पैसे की नहीं, रेत की कमी की वजह से अगले दिनों में प्रभावित हो सकती है कोरोना वैक्सीन की आपूर्ति  

लंदन । अगले दो साल तक दुनिया के हर कोने में कोरोना वायरस वैक्सीन पहुंचाने की कोशिश की जाएगी, लेकिन इसमें ब्रेक लग सकता है। दरअसल, विशेषज्ञों को चिंता है कि दुनिया में रेत की कमी हो रही है, जिसका इस्तेमाल कांच बनाने में किया जाता है। इसी कांच से वैक्सीन की शीशियां बनती हैं और अगले दो साल में सामान्य हालात के मुकाबले दो अरब ज्यादा शीशियों की जरूरत पड़ने वाली है। रेत की कमी का असर वैक्सीन सप्लाई पर पड़ सकता है। रेत की कमी से सिर्फ वैक्सीन ही नहीं स्मार्टफोन से लेकर इमारतें बनाने तक में दिक्कत आएगी। पानी के बाद रेत सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाना वाला कच्चा माल है। कांच के अलावा कॉन्क्रीट, आस्फाल्ट और सिलिकॉन माइक्रोचिप बनाने में इसका इस्तेमाल किया जाता है। इमारतों के विकास और स्मार्टफोन्स की बढ़ती मांग की वजह से रेत, ग्रैवेल और चट्टानी बुरादे की कमी आ गई है।
संयुक्त राष्ट्र के एन्वायरनमेंट प्रोग्राम (यूएनईपी) से जुड़े क्लाइमेट साइंटिस्ट पास्कल पेडूजी का कहना है कि हमें लगता है कि रेत हर जगह है। कभी नहीं लगा कि रेत की कमी हो सकती है, लेकिन कुछ जगहों पर यह हो रहा है। पास्कल का कहना है यह देखना होगा कि अगले 10 साल में क्या होने वाला है, क्योंकि अगर ऐसा नहीं हुआ तो रेत की सप्लाई के साथ-साथ जमीन से जुड़ी प्लानिंग में भी दिक्कत होगी।
यूएनईपी के मुताबिक हर साल 40-50 अरब मीट्रिक टन रेत का इस्तेमाल सिर्फ निर्माण के क्षेत्र में किया जा रहा है। यह 20 साल पहले के मुकाबले 300 फीसदी ज्यादा है और हर धरती को इसे दोबारा बनाने में दो साल लग जाएंगे। शहरीकरण, आबादी और ढांचागत विकासकार्य के साथ इस ट्रेंड के बढ़ते रहने की संभावना है। रेत के खनन से पर्यावरण को होने वाले नुकसान के चलते अब वैज्ञानिक ज्वालामुखी की राख, कृषि कचरे, कोयले से निकलने वाली फ्लाई ऐश और क्वॉर्ट्ज से बनी सिलिका सैंड के इस्तेमाल पर रिसर्च भी की जा रही है।
 

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