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हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा देने पर 3 महीने में रिपोर्ट जमा करे: सुप्रीम कोर्ट

हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा देने पर 3 महीने में रिपोर्ट जमा करे: सुप्रीम कोर्ट

 सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे राज्य जहां हिंदुओं की संख्या बहुत कम है, उन्हें अल्पसंख्यक का दर्जा देने के संबंध में महत्वपूर्ण निर्देश दिया। सुप्रीम कोर्ट ने पैनल से इस पर अध्ययन कर रिपोर्ट देने का निर्देश दिया। कोर्ट ने कहा, जिन राज्यों में संख्या को लेकर  हिंदू कम हैं, क्या उन्हें अल्पसंख्यकों को मिलनेवाले सरकारी फायदे दिए जा सकते हैं? क्या राज्य विशेष में इस आधार पर अल्पसंख्यक का दर्जा केंद्रीय स्तर से अलग तय किया जा सकता है। 
सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (एनसीएम) को 3 महीने में इससे संबंधित रिपोर्ट जमा करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने उन सभी राज्यों में जहां हिंदुओं की संख्या कम है और वहां दूसरे धर्म की बहुसंख्यक आबादी है, वहां हिंदुओं की स्थिति का जायजा लेकर उन्हें अल्पसंख्यक का दर्जा देने या नहीं देने के लिए रिपोर्ट जमा करने का आदेश दिया है। भाजपा नेता और वरिष्ठ वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय की याचिका पर सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस संजीव खन्ना ने यह निर्देश दिया। जजों की बेंच ने कहा, 'सर्वप्रथम एनसीएम को इस पर विचार करना है कि हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा दिया जाए या नहीं। इस पर हमने विचार करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए हुए कहा, रिट पिटिशन पर विचार करने के स्थान पर, याचिकाकर्ता की अपील पर सुनवाई करते हुए हमें यह उचित लग रहा है कि एनसीएम इसे देखे। एनसीएम को नवंबर 2017 के आंकड़ों के आधार पर इस मुद्दे पर अपनी रिपोर्ट तैयार करनी चाहिए और इसे जितनी जल्दी संभव हो जमा करें, अच्छा होगा कि यह तीन महीने में ही जमा कर दी जाए।' 
2011 के जनगणना आंकड़ों के अनुसार हिंदू 8 राज्यों में कम संख्या में हैं। ये राज्य हैं लक्षद्वीप (2.5%), मिजोरम (2.75%), नगालैंड (8.75%), मेघालय (11.53%), जम्मू और कश्मीर (28.44%), अरुणाचल प्रदेश (29%), मणिपुर (31.39%) और पंजाब (38.40%)। याचिकाकर्ता ने इन 8 राज्यों का उदाहरण देते हुए कहा कि इन राज्यों में संख्या के ‎लिहाज से कम होने के बाद भी अल्पसंख्यकों के अधिकारों से इन्हें वंचित किया जा रहा है। इन्हें नैशनल कमिशन फॉर माइनॉरिटी ऐक्ट के तहत केंद्र और राज्य से मिलनेवाली सुविधाओं से वंचित किया जाता है। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने उपाध्याय की याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया था और उन्हें एनसीएम के पास जाने का सुझाव दिया था। याचिकाकर्ता का कहना है कि आयोग की तरफ से कोई जवाब नहीं मिलने के बाद उन्होंने फिर से सर्वोच्च अदालत में गुहार लगाई।

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