नई दिल्ली । जनजातीय कार्य मंत्रालय के अधीन ट्राइफेड ने जनजातीय आबादी की आजीविका में सुधार और वंचित व कमजोर जनजातियों का जीवन बेहतर बनाने का मिशन शुरू किया है। इसे ध्यान में रखकर ट्राइफेड ने कई पहलें की हैं, जो प्रधानमंत्री के आत्मनिर्भर भारत के आह्वान के अनुरूप हैं। विभिन्न पहलों द्वारा जनजातियों को आर्थिक तंगी से निजात मिली है। इन पहलों में वनधन जनजातीय स्टार्ट-अप और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के आधार पर लघु वनोत्पाद (एमएफपी) को बेचने की प्रणाली शामिल है। इसके अलावा एमएफपी योजना के लिये मूल्य-श्रृंखला के विकास को भी इसमें रखा गया है, जिसके जरिये वनोत्पाद को इकट्ठा करने वाली जनजातियों को उनके उत्पाद पर न्यूनतम समर्थन मूल्य मिलता है। इन उत्पादों की बिक्री जनजातीय समूहों द्वारा की जाती है।
इन कार्यक्रमों को देशभर में स्वीकृति मिली है। खासतौर से वनधन जनजातीय स्टार्ट-अप को बहुत सफलता मिली है। 18 महीने से भी कम समय में, 37259 वनधन विकास केंद्रों (वीडीवीके) को 2224 वनधन विकास केंद्र समूहों (वीडीवीकेसी) में शामिल किया गया। प्रत्येक समूह में 333 वनवासी हैं। ट्राइफेड अब तक इतने समूहों को स्वीकृति दे चुका है। एक वनधन विकास केंद्र में आमतौर से 20 जनजातीय सदस्य होते हैं। ऐसे 15 वनधन विकास केंद्रों को मिलाकर एक वनधन विकास केंद्र समूह बनता है। वनधन विकास केंद्र समूह वनधन केंद्र विकास केंद्रों को आर्थिक, आजीविका सम्बंधी और बाजार से जुड़ने में मदद करेगा। साथ ही 23 राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों के 6.67 लाख जंगलों के उत्पाद जमा करने वाली जनजातियों को उद्यम अवसर भी प्रदान करेगा। ट्राइफेड के अनुसार, अब तक वनधन स्टार्ट-अप कार्यक्रमों से 50 लाख जनजाति के लोग लाभान्वित हुये हैं।
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जनजातीय भारत द्वारा खुदरा दुकानों और जनजातीय वेबसाइट के जरिये उत्पादों की बिक्री