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 रुस भारत के लिए बना रहा घातक परमाणु पनडुब्बी, 2025 तक मिलेगी नौसेना को  2019 में मोदी सरकार ने की थी सीक्रेट डील 

 रुस भारत के लिए बना रहा घातक परमाणु पनडुब्बी, 2025 तक मिलेगी नौसेना को  2019 में मोदी सरकार ने की थी सीक्रेट डील 

नई दिल्ली । भारतीय नौसेना की एकमात्र ऑपरेशन परमाणु पनडुब्बी आईएनएस चक्र के वापस रूस लौटने के बाद अटकलों को दौर शुरु हो गया हैं। कुछ लोगों का मानना है,कि इससे भारतीय नौसेना की ऑपरेशन क्षमता प्रभावित होगी, वहीं कुछ इसतरह के भी हैं,जिन्हें लगता है कि इससे भारत की न्यूक्लियर ट्रायड कमजोर पड़ जाएगा। जल, थल और नभ से परमाणु मिसाइलों को फायर करने की क्षमता को न्यूक्लियर ट्रायड कहा जाता है।लेकिन भारतीय नौसेना की ताकत को लेकर आपको चिंतित होने की जरूरत नहीं है। भारत ने 2019 में रूस के साथ दूसरी नई और घातक परमाणु पनडुब्बी के लिए एक डील की थी। अगले चार साल के अंदर रूस वह पनडुब्बी भारत को सौंप देगा। इस बीच समुद्र में भारत के परमाणु शक्ति की अगुवाई स्वदेशी आईएनएस अरिहंत पनडुब्बी करेगी।
रिपोर्ट्स के अनुसार, भारत ने रूस के साथ परमाणु पनडुब्बियों की खरीद को लेकर एक सीक्रेट डील की थी। इस डील की कुल लागत तब 3 बिलियन डॉलर कही गई थी। इसके तहत 2025 में भारत को रूस से एक परमाणु पनडुब्बी मिलेगी, जिस आईएनएस चक्र तीन के नाम से जाना जाएगा। यह पनडुब्बी भी आईएनएस चक्र की तरह भारतीय नौसेना में अगले 10 साल तक सेवा देगी। भारत को जो पनडुब्बी मिलने वाली है, वह रूस की अकूला सेंकड क्लास की के 322 कैसोहालोट है। इसमें इंट्रीग्रेडेड सोनार सिस्टम लगा हुआ है, जो काफी दूर से बिना किसी हलचल के दुश्मन की लोकेशन के बारे में पता लगा लेता है। भारत के आईएनएस अरिहंत में भी ऐसा ही सिस्टम लगाया गया है।
रूसी नौसेना की के 322 कैसोहालोट पनडुब्बी को भारत को सौंपने के पहले ओवरहॉल किया जाएगा। इससे पनडुब्बी की सर्विस लाइफ बढ़ेगी। इतना ही नहीं, इस पनडुब्बी को भारतीय उपमहाद्वीप के लायक भी बनाया जाएगा। बताया जा रहा है कि ओवरहॉलिंग का काम सेवेरोडविंस्क में स्थित एक रूसी नौसैनिक शिपयार्ड में किया जाएगा। दावा यह भी किया जा रहा है कि पनडुब्बी में भारतीय नौसेना की कई स्वदेशी तकनीकियों को भी शामिल किया जाएगा। इसमें भारत में बनी हुई कम्यूनिकेशन सिस्टम लगाया जाएगा, जिससे किसी भी दूसरे देश को इसकी बातचीत इंटरसेप्ट करने में आसानी नहीं होगी। दरअसल पनडुब्बियों की सबसे बड़ी ताकत उनके पानी के नीचे छिपे रहने की होती है। अगर कोई भी बातचीत पकड़ी जाती है,तब इससे पनडुब्बी की लोकेशन का आसानी से पता चल सकता है।
रूस की अकूला सेंकड क्लास की पनडुब्बियां बेहद शक्तिशाली मानी जाती हैं। इस क्लास की पनडुब्बियां 8,140 टन वजनी होती हैं। इसकारण माना जा रहा है कि आईएनएस चक्र तीन का वजन भी इतना ही होगा। यह पनडुब्बी समुद्र में 530 मीटर की गहराई में 30 समुद्री मील (55 किमी) प्रति घंटे की रफ्तार से चलने में सक्षम है। इस परमाणु पनडुब्बी में चार 650-मिलीमीटर और चार 533-मिलीमीटर की मिसाइल लांच ट्यूब्स लगे हुए हैं। इससे रूसी-निर्मित टाइप 65 और टाइप 53 टॉरपीडो को फायर किया जा सकता है। प्रपल्शन या ताकत के लिए पनडुब्बी में 190 मेगावाट के परमाणु रिएक्टर को लगाया गया है। परमाणु क्षमता से संपन्न पहली पनडुब्बी का नाम भी चक्र था। यह पनडुब्बी तत्कालीन सोवियत संघ से 1988 में 3 साल के पट्टे पर ली गई थी। यह पनडुब्बी रूस के प्रोजेक्ट 670 स्काट-क्लास की थी। इसके बाद अकुला-2 क्लास सबमरीन आईएनएस चक्र-सेंकड को 4 अप्रैल 2012 को इंडियन नेवी में शामिल किया गया था। यह पनडुब्बी भी अकूला क्लास नेरपा थी जिसको प्रोजेक्ट 971 के तहत बनाया गया था। इसे पूर्वी नौसेना कमान के साथ तैनात किया गया था। भारत और रूस इस पनडुब्बी की लीज को पांच साल और बढ़ाने पर भी बातचीत कर रहे थे, लेकिन ऐसा हो नहीं सका।
 

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