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(योग दिवस पर विशेष) आत्मा को परमात्मा से जोड़ने का नाम है राजयोग! 

(योग दिवस पर विशेष) आत्मा को परमात्मा से जोड़ने का नाम है राजयोग! 

आत्म स्वरूप में रहकर जब परमात्मा की याद की जाती है और आत्मा का कनेक्शन परमात्मा से जुड़ जाता है,उसी स्तिथि को राजयोग कहते है। राज योग एक ऐसी चमत्कारी अध्यात्म साधना है, जो न सिर्फ तन- मन को शुद्ध करती है बल्कि राजयोग के माध्यम से आत्मा को पवित्र कर परमात्मा से मिलन मनाने की एक युक्ति है। जबकि योगाभ्यास के माध्यम से शारिरिक व्यायाम व प्राणायाम कर हम अपने तन- मन को निरोगी बना सकते है।राजयोग तो किसी भी समय किया जा सकता है।लेकिन शारिरिक व्यायाम व योगासन का अनुकूल समय सूर्योदय व  सूर्यास्त काल है। शारिरिक व्यायाम व योगासन हमेेशा खाली पेट करना चाहिए। योग किसी शांत वातावरण और स्वच्छ स्थान में ही योग करें।योग के समय अपना पूरा ध्यान अपने योग अभ्यास पर ही केंद्रित रखें।योग अभ्यास धैर्य और दृढ़ता से करें।अपने शरीर के साथ ज़बरदस्ती बिल्कुल ना करें धीरज रखें।
शारीरिक और मानसिक उपचार योग के सबसे अधिक ज्ञात लाभों में से एक है। यह इतना शक्तिशाली और प्रभावी इसलिए है क्योंकि यह सद्भाव और एकीकरण के सिद्धांतों पर काम करता है।योग अस्थमा, मधुमेह, रक्तचाप, गठिया, पाचन विकार और अन्य बीमारियों में चिकित्सा के एक सफल विकल्प है, ख़ास तौर से वहाँ जहाँ आधुनिक विज्ञान आजतक उपचार देने में सफल नहीं हुआ है। एचआईवी  पर योग के प्रभावों पर अनुसंधान वर्तमान में आशाजनक परिणामों के साथ चल रहा है। चिकित्सा वैज्ञानिकों के अनुसार, योग चिकित्सा तंत्रिका और अंतःस्रावी तंत्र में बनाए गए संतुलन के कारण सफल होती है जो शरीर के अन्य सभी प्रणालियों और अंगों को सीधे प्रभावित करती है।
अधिकांश लोगों के लिए,योग केवल तनावपूर्ण समाज में स्वास्थ्य बनाए रखने का मुख्य साधन हैं। योग बुरी आदतों के प्रभावों को उलट देता है -- जैसे कि सारे दिन कुर्सी पर बैठे रहना, मोबाइल फोन को ज़्यादा इस्तेमाल करना, व्यायाम ना करना, ग़लत ख़ान-पान रखना इत्यादि।इनके अलावा योग के कई आध्यात्मिक लाभ भी हैं।  यह स्वयं योग अभ्यास करके हासिल किया जा सकता है। हर व्यक्ति को योग अलग रूप से लाभ पहुँचाता है। योग को अवश्य अपनायें और अपनी मानसिक, भौतिक, आत्मिक और अध्यात्मिक सेहत में सुधार लायें।योग भारतीय संस्कृति और जीवन शैली का एक अभिन्न अंग  है इसके महत्व और वैज्ञानिकता को पूरे विश्व द्वारा स्वीकार किया जाना देश के लिये एक गर्व की बात है। भारतीय सभ्यता, संस्कृति और जीवन शैली के अभिन्न अंग योग की महत्व तथा वैज्ञानिकता को पूरा विश्व स्वीकार कर चुका है।  ‘योग’  सकारात्मक ऊर्जा के साथ जीवन जीने की सर्वश्रेष्ठ कला है।यह धर्म, आस्था और अंधविश्वास से परे एक विशुद्ध विज्ञान है। योग सम्पूर्ण चिकित्सा पद्धति है । जो हमारे शारीरिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक है।योगाभ्यास से संयम, धर्य और सहिष्णुता जैसे मानवीय गुण पोषित होते हैं. यह मानसिक भटकाव तथा तनाव से मुक्ति का सबसे कारगर उपाय है। योग में ‘संभावनाओं को संभव’ में परिवर्तित करने की जादुई शक्ति निहित है। विज्ञान व तकनीकि के इस युग में इंसान कई तरह के मानसिक दबाव के बीच जीने को मजबूर होकर तरह-तरह की बीमारियों का शिकार हो रहा है । ऐसे में योग ही एक ऐसा निर्विवादित और शुद्ध उपाय है जो सहज व स्वस्थ जीवन जीने की शक्ति दे सकता है।  योग क्रिया का पूरा फायदा मिले ,इसके लिए जरूरी है कि योग सही तरीके से किया जाए।सुबह-शाम कभी भी आसन कर सकते हैं लेकिन भरपेट खाना खाने के 3-4 घंटे बाद, हल्के स्नैक्स के घंटे भर बाद, चाय, छाछ या तरल चीजें लेने के आधे घंटे बाद और पानी पीने के 10-15 मिनट बाद आसन करना अच्छा रहता है।
3 वर्ष से अधिक आयु का  कोई भी व्यक्ति योग कर सकता है।  12 साल तक के बच्चों को हल्के योगासन और प्राणायाम करना चाहिए। महिलाओं को गर्भावस्था  में कठिन आसन व कपालभांति आदि नही  करना चाहिए। महिलाएं मासिक धर्म के समय, नॉर्मल डिलिवरी के 3 महीने बाद तक और ऑपरेशन के 6 महीने बाद तक योग नही करना चाहिए। इसके अलावा कमर दर्द हो तो आगे न झुकें, अगर हर्निया हो तो पीछे न झुकें। दिल से जुड़ी बीमारी वालों को योगासन शुरू करने से पहले डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए।खुले में ताजा हवा में योग करना बेहतर है।जरूरी है कि योग के समय वातावरण शांत रहे, मन को शांत देने वाला संगीत हल्की आवाज में बजा सकते हैं।
जमीन पर मैट, दरी या कालीन बिछाकर योग करना चाहिए। थोड़े ढीले कॉटन के कपड़े पहनना बेहतर रहता है। टी-शर्ट व ट्रैक पैंट आदि में भी कर सकते हैं।योगासन आंखें बंद करके करना चाहिए। इससे योग और भी प्रभावशाली हो जाता है।लेकिन राजयोग आंखे खोलकर करना चाहिए। ध्यान योग में शरीर के उन हिस्सों पर ध्यान लगाएं, जहां आसन का असर हो रहा है, जहां दबाव पड़ रहा है। भाव से करेंगे तो प्रभाव जल्दी और ज्यादा होगा।योग में सांस लेने और छोड़ने की बहुत अहमियत है। जब भी शरीर फैलाएं, पीछे की तरफ जाएं, सांस भरते हुए करें और जब भी शरीर सिकुड़े या आगे की ओर झुकें, सांस छोड़ते हुए झुकें। सांस नाक से लें, मुंह से नहीं।योग करते हुए शरीर को शिथिल रखें और झटके से बचाएं। झटके से आसन न करें। उतना ही करें, जितना आसानी से कर पाएं। धीरे-धीरे अभ्यास बढ़ाएं।योग तत्‍वत: बहुत सूक्ष्‍म विज्ञान पर आधारित एक आध्‍यात्मि विषय है जो मन एवं शरीर के बीच सामंजस्‍य स्‍थापित करने पर ध्‍यान देता है। यह स्‍वस्‍थ जीवन - यापन की कला एवं विज्ञान है। योग शब्‍द संस्‍कृत की युज धातु से बना है जिसका अर्थ जुड़ना या एकजुट होना या शामिल होना है। योग से जुड़े ग्रंथों के अनुसार योग करने से व्‍यक्ति की चेतना ब्रह्मांड की चेतना से जुड़ जाती है जो मन एवं शरीर, मानव एवं प्रकृति के बीच परिपूर्ण सामंजस्‍य का द्योतक है। आधुनिक वैज्ञानिकों के अनुसार ब्रह्मांड की हर चीज उसी परिमाण नभ की अभिव्‍यक्ति मात्र है। जो भी अस्तित्‍व की इस एकता को महसूस कर लेता है उसे योग में स्थित कहा जाता है और उसे योगी के रूप में पुकारा जाता है जिसने मुक्‍त अवस्‍था प्राप्‍त कर ली है जिसे मुक्ति, निर्वाण या मोक्ष कहा जाता है। इस प्रकार, योग का लक्ष्‍य आत्‍म-अनुभूति, सभी प्रकार के कष्‍टों से निजात पाना है जिससे मोक्ष की अवस्‍था या कैवल्‍य की अवस्‍था प्राप्‍त होती है। जीवन के हर क्षेत्र में आजादी के साथ जीवन - यापन करना, स्‍वास्‍थ्‍य एवं सामंजस्‍य योग करने के प्रमुख उद्देश्‍य होंगे। योग का अभिप्राय एक आंतरिक विज्ञान से भी है जिसमें कई तरह की विधियां शामिल होती हैं जिनके माध्‍यम से मानव इस एकता को साकार कर सकता है और अपनी नियति को अपने वश में कर सकता है। चूंकि योग को बड़े पैमाने पर सिंधु - सरस्‍वती घाटी सभ्‍यता, जिसका इतिहास 2700 ईसा पूर्व से है, के अमर सांस्‍कृतिक परिणाम के रूप में  माना जाता है, इसलिए इसने सिद्ध किया है कि यह मानवता के भौतिक एवं आध्‍यात्मिक दोनों तरह के उत्‍थान को संभव बनाता है। बुनियादी मानवीय मूल्‍य योग साधना की पहचान हैं। इसीलिए अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर सभी को योग कर संस्कृति की इस विरासत को आगे बढ़ाना चाहिए
योग हमारी भारतीय संस्कृति की प्राचीनतम पहचान है। संसार की प्रथम पुस्तक ऋग्वेद में कई स्थानों पर यौगिक क्रियाओं के विषय में उल्लेख मिलता है। भगवान शंकर के बाद वैदिक ऋषि-मुनियों से ही योग का प्रारम्भ माना जाता है। बाद में भगवान कृष्ण, महावीर और बुद्ध ने इसे अपनी तरह से विस्तार दिया। इसके पश्चात महर्षि पतंजलि ने इसे सुव्यवस्थित रूप दिया।योग धर्म, आस्था और अंधविश्वास से परे एक सीधा विज्ञान है, जीवन जीने की एक कला है। आज के परिवेश में हमारे जीवन को स्वस्थ और खुशहाल बना सकते हैं। आज के प्रदूषित वातावरण में योग एक ऐसी औषधि है जिसका कोई साइड इफेक्ट नहीं है, बल्कि योग के अनेक आसन शवसन हाई ब्लड प्रेशर को सामान्य करता है, जीवन के लिए संजीवनी है कपालभाति प्राणायाम, भ्रामरी प्राणायाम मन को शांत करता है, वक्रासन हमें अनेक बीमारियों से बचाता है।
लोक परंपराओं, सिंधु घाटी सभ्‍यता, वैदिक एवं उपनिषद की विरासत, बौद्ध एवं जैन परंपराओं, दर्शनों, महाभारत एवं रामायण नामक महाकाव्‍यों, शैवों, वैष्‍णवों की आस्तिक परंपराओं एवं तांत्रिक परंपराओं में योग की मौजूदगी है। इसके अलावा, एक आदि या शुद्ध योग था जो दक्षिण एशिया की रहस्‍यवादी परंपराओं में अभिव्‍यक्‍त हुआ है। यह समय ऐसा था जब योग गुरू के सीधे मार्गदर्शन में किया जाता था तथा इसके आध्‍यात्मिक मूल्‍य को विशेष महत्‍व दिया जाता था। यह उपासना का अंग था तथा योग साधना उनके संस्‍कारों में रचा-बसा था। वैदिक काल के दौरान सूर्य को सबसे अधिक महत्‍व दिया गया। हो सकता है कि इस प्रभाव की वजह से आगे चलकर 'सूर्य नमस्‍कार' की प्रथा का आविष्‍कार किया गया हो। प्राणायाम दैनिक संस्‍कार का हिस्‍सा था तथा यह समर्पण के लिए किया जाता था। हालांकि पूर्व वैदिक काल में योग किया जाता था, महान संत महर्षि पतंजलि ने अपने योग सूत्रों के माध्‍यम से उस समय विद्यमान योग की प्रथाओं, इसके आशय एवं इससे संबंधित ज्ञान को व्‍यवस्थित एवं कूटबद्ध किया। पतंजलि के बाद, अनेक ऋषियों एवं योगाचार्यों ने अच्‍छी तरह प्रलेखित अपनी प्रथाओं एवं साहित्‍य के माध्‍यम से योग के परिरक्षण एवं विकास में काफी योगदान दिया।  कंप्यूटर की दुनिया में दिनभर उसके सामने बैठ-बैठे काम करने से अनेक लोगों को कमर दर्द एवं गर्दन दर्द की शिकायत एक आम बात हो गई है। ऐसे में शलभासन तथा ताड़ासन हमें दर्द निवारक दवा से मुक्ति दिलाता है।पवनमुक्तासन अपने नाम के अनुरूप पेट से गैस की समस्या को दूर करता है। गठिया की समस्या को मेरूदंडासन दूर करता है। योग में ऐसे अनेक आसन हैं जिनको जीवन में अपनाने से कई बीमारियां समाप्त हो जाती हैं और खतरनाक बीमारियों का असर भी कम हो जाता है। 24 घंटे में से महज कुछ मिनट का ही प्रयोग यदि योग में उपयोग करते हैं तो अपनी सेहत को हम चुस्त-दुरुस्त रख सकते हैं। फिट रहने के साथ ही योग हमें पॉजिटिव एनर्जी भी देता है। योग से शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है। 
जब से सभ्‍यता शुरू हुई है तभी से योग किया जा रहा है। योग के विज्ञान की उत्‍पत्ति हजारों साल पहले हुई थी, पहले धर्मों या आस्‍था के जन्‍म लेने से काफी पहले हुई थी। योग विद्या में शिव को पहले योगी या आदि योगी तथा पहले गुरू या आदि गुरू के रूप में माना जाता है।
कई हजार वर्ष पहले, हिमालय में कांति सरोवर झील के तटों पर आदि योगी ने अपने प्रबुद्ध ज्ञान को अपने प्रसिद्ध सप्‍तऋषि को प्रदान किया था। सत्‍पऋषियों ने योग के इस ताकतवर विज्ञान को एशिया, मध्‍य पूर्व, उत्‍तरी अफ्रीका एवं दक्षिण अमरीका सहित विश्‍व के भिन्‍न - भिन्‍न भागों में पहुंचाया। रोचक बात यह है कि आधुनिक विद्वानों ने पूरी दुनिया में प्राचीन संस्‍कृतियों के बीच पाए गए घनिष्‍ठ समानांतर को नोट किया है। तथापि, भारत में ही योग ने अपनी सबसे पूर्ण अभिव्‍यक्ति प्राप्‍त की। अगस्‍त नामक सप्‍तऋषि, जिन्‍होंने पूरे भारतीय उप महाद्वीप का दौरा किया, ने यौगिक तरीके से जीवन जीने के इर्द-गिर्द इस संस्‍कृति को गढ़ा। आओ चलो सब मिलकर भारतीय संस्कृति की इस हमले विरासत को आगे बढ़ाए। स्वच्छ वातावरण में इंसान के समक्ष बीमारियां भी नजदीक नहीं पहुंचती।  भगवान ने सब जीवों से श्रेष्ठ इंसान को बनाया है, लेकिन इंसान वर्तमान के इस आपाधापी युग में अपने तन-मन के विकास के लिए समय नहीं निकाल पा रहा है। प्रत्येक व्यक्ति को योग को अपना दिनचर्या का हिस्सा बनाना चाहिए, तभी बीमारियों पर जीत हासिल की जा सकती है। उन्होंने कहा कि योग करने के बाद दवा दारू की जरूरत ही नहीं पड़ती है। उन्होंने सभी आज अपने गांव के लोगों से स्वदेशी अपनाने, सुबह उठते ही मातृभूमि को नमन करने, माता-पिता के पैर छूने, गाय को पालकर उसका दूध पीने का संकल्प दिलाया। योग परंपरा एक-दूसरे को जोड़ने का कार्य करती है। योग परमात्मा से मिलन का सबसे सरल उपाय कहा जा सकता है।
परमात्मा शिव पहले योगी है जो हमेराजयोग सिखलाते है
स्वयं की इंद्रियां वश में रहे वे
ऐसा पाठ  हमे पढाते है
योग सिर्फ एक दिन का नही है यह तो नियमित पाठशाला है
माता पिता ,शिक्षक और गुरु  रूप में परमात्मा शिव हमे रोज़ योग की परिणति के रूप में ईश्वरीय ज्ञान का पाठ पढाते है।शारिरिक अभ्यास को योग न कहे, योग तो तन मन से जुड़ता है,निराकारी परमात्मा शिव से आत्मा का सम्बंध बनता है।तभी तो आत्मा पतित से पावन बन जाती है और शरीर भी स्वस्थ व निरोगी बन जाता है।
(लेखक- डॉ श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट )

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