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राष्ट्रीय विज्ञान संचार एवं सूचना स्रोत संस्थान ने अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस 2021 मनाया - योग गुरुओं ने स्वास्थ तन और मन के लिये योगाभ्यास पर बल दिया

राष्ट्रीय विज्ञान संचार एवं सूचना स्रोत संस्थान ने अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस 2021 मनाया - योग गुरुओं ने स्वास्थ तन और मन के लिये योगाभ्यास पर बल दिया

नई दिल्ली । वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद-राष्ट्रीय विज्ञान संचार एवं सूचना स्रोत संस्थान (सीएसआईआर-एनआईएससीपीआर),नई दिल्ली ने 21 जून को सातवां अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाया। इस आयोजन में देश भर के वैज्ञानिकों, स्टाफ, हितधारकों, छात्रों, विज्ञान-प्रेमियों और संचारकर्ताओं ने पूरे हर्षोल्लास से भाग लिया। इस कार्यक्रम को फेसबुक-लाइव की वर्चुअल प्रणाली के जरिये आयोजित किया गया था। सीएसआईआर-एनआईएससीपीआर की निदेशक प्रो. रंजना अग्रवाल ने आरंभिक वक्तव्य दिया। उन्होंने कहा कि योग कई तरह से मनुष्य के लिये महत्त्वपूर्ण है। भारतीय ज्ञान प्रणाली हमारे शरीर को हमारे मन और आत्मा से जोड़ती है। आयुर्वेद, योग, प्राकृतिक चिकित्सा और पोषण हमारी समृद्ध ज्ञान प्रणाली की छत्र-छाया में विकसित हुये हैं। कोविड महामारी के संकट के दौरान, सबको भय, चिन्ता, मनोवैज्ञानिक संकट, दबाव, अवसाद सहित कोविड रोग का सामना करना पड़ा। ऐसी संकट की घड़ी में दुनिया ने देखा कि योग और आयुर्वेद महामारी से लड़ने के ताकतवर तरीके हैं। यहां तक कि संयुक्त राष्ट्र ने भी मानसिक स्वास्थ्य के लिये योग के महत्त्व को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि योग के जरिये स्वस्थ समाज और राष्ट्र का निर्माण हो सकता है। नादयोग के विशेषज्ञ, योग और प्राकृतिक चिकित्सा में अनुसंधान के लिए केंद्रीय परिषद, आयुष मंत्रालय के स्थायी वित्त समिति के सदस्य डॉ. नवदीप जोशी ने कार्यक्रम में अपने विचारों को साझा किया। डॉ. नवदीप ने कहा कि योग सबको मन और आत्मा से युवा बना देता है। योग हमें अपने अंतस से मिलवाता है। उन्होंने ध्यान और योग के महत्त्व पर बल देते हुये कहा कि इन दोनों से बौद्धिक शरीर, यानी “मस्तिष्क” को नियंत्रित किया जा सकता है। उन्होंने योग को विज्ञान से जोड़ते हुये कहा कि कंपन, ध्वनि, ऊर्जा और प्रमात्रा यांत्रिकी (क्वॉनटम मैकेनिक्स) का बहुत महत्त्व होता है। “ओ,” “उ”  और “म्” की ध्वनियां हमारे मस्तिष्क में कंपन पैदा करती हैं तथा पूरे नाड़ी-तंत्र और शरीर को शुद्ध करती हैं। डॉ. नवदीप ने संक्षेप में ‘नाद’ योग पद्धति के बारे में तथा हमारे जीवन और अस्तित्व में उसके महत्त्व पर चर्चा की। योग की यह विशेष पद्धति प्रकृति की ध्वनियों से सामन्जस्य बनाती है। उन्होंने नाद योग को ‘अनहद’ (आंतरिक ध्वनि) और ‘अहद’ (बाह्य ध्वनि) के रूप में वर्गीकृत किया, जिनका आधार ध्वनि होता है। ध्वनियों का यह अंतर दुनिया की विभिन्न भाषाओं की बुनियाद है। उन्होंने अपने वक्तव्य का समापन करते हुये कहा कि योग हमें चेतना की यात्रा पर ले जाता है।
 

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