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चुनाव जीताऊ चेहरा साबित हो सकते हैं सिंधिया...   . केन्द्रीय नेतृत्व के आदेश के पालन में खाटी कार्यकर्ता भी भिड़े सत्कार में 2023 के विधानसभा चुनाव की रिहर्सल है ये जन आशीर्वाद यात्रा

चुनाव जीताऊ चेहरा साबित हो सकते हैं सिंधिया...   . केन्द्रीय नेतृत्व के आदेश के पालन में खाटी कार्यकर्ता भी भिड़े सत्कार में 2023 के विधानसभा चुनाव की रिहर्सल है ये जन आशीर्वाद यात्रा

भोपाल । केन्द्रीय नेतृत्व ने अपने नवागत मंत्रियों की जन आशीर्वाद यात्राएं धूमधाम से निकलवाई है, जिसके चलते नागरिक उड्डयन मंत्री बनाए गए ज्योतिरादित्य सिंधिया की जन आशीर्वाद यात्रा का आयोजन भी प्रदेश में किया गया। 584 किलोमीटर की इस यात्रा का इंदौर में समापन हुआ। दिनभर 500 से अधिक मंचों के जरिए सिंधिया का भव्य स्वागत भाजपा के हर गुट ने किया। राजनीति के जानकारों का कहना है कि 2023 के विधानसभा चुनाव से पहले इस यात्रा के जरिए रिहर्सल भी हो गई और आगामी विधानसभा चुनाव के चेहरे श्री सिंधिया हो सकते हैं।
मध्यप्रदेश में अच्छी-भली बनी कांग्रेस की सरकार को गिराने भाजपा की सरकार बनाने का पूरा सेहरा सिंधिया के माथे ही बंधा और इसके चलते प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह का पूरा वरदहस्र उन पर रहा। इसके चलते सिंधिया समर्थकों को जहां उपचुनावों में टिकट मिली, वहीं अब सत्ता, संगठन से लेकर निगम, मंडल, प्राधिकरण में भी प्रवेश मिलेगा। इसका सबूत है जन आशीर्वाद यात्रा की सफलता। यह पहला मौका है जब भाजपा के सारे गुटों ने एकजुटता दिखाई और बड़े नेता-पदाधिकारियों से लेकर खाटी कार्यकर्ता भी सड़क पर उतरकर स्वागत-सत्कार में पीछे नहीं रहा। सिंधिया खुद अपने इस स्वागत समारोह से अभिभूत नजर आए और उन्होंने इस संबंध में ट्वीट भी किया। राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा लम्बे समय से चलती रही है कि सिंधिया को आगामी चुनावों की बागडोर सौंपी जा सकती है और वे मप्र के अगले मुख्यमंत्री भी हो सकते हैं। दरअसल, सभी गुटों में उनकी स्वीकार्यता भी है और पब्लिक फेस तो वे पहले से हैं ही। युवाओं, महिलाओं से लेकर शहरी और ग्रामीण जनता में भी उनकी अच्छी पैठ है। पार्टी नेतृत्व को यह स्पष्ट लगता है कि 2023 का विधानसभा चुनाव मौजूदा मुख्यमंत्री के चेहरे पर नहीं लड़ा जा सकता। क्योंकि पिछले चुनावों में भाजपा को इसीलिए हार का मुंह देखना पड़ा और सत्ता से भी बाहर हो गई और अभी उपचुनावों में भी पराजय का सामना करना पड़ा। वहीं गुटबाजी भी पहले की तुलना में बढ़ गई। इसके चलते संभव है कि सिंधिया को ही विधानसभा चुनाव के पहले प्रदेश की बागडोर सौंपी जाए और जन आशीर्वाद यात्रा उसकी रिहर्सल है, जिसमें किसी तरह की गुटबाजी भी नजर नहीं आई, क्योंकि केन्द्रीय नेतृत्व की मंशा को प्रदेश भाजपा के सभी दिग्गजों ने महसूस कर लिया और यही संदेश अंतिम पंक्ति के कार्यकर्ताओं तक पहुंचाया गया, जिसके चलते यात्रा अत्यंत साबित हुई।
पुराने कांग्रेसी और भाजपाइयों में खूब दिखा तालमेल भी
जन आशीर्वाद यात्रा के बहाने अभी तक जो एक अदृश्य दूरी पुराने कांग्रेसी और भाजपाइयों के बीच थी वह भी लगभग खत्म हो गई। दरअसल,  सिंधिया के साथ उनके समर्थक भी भाजपा आ गए, जिनमें इंदौर के कई नेताओं के साथ उनके कार्यकर्ता भी शामिल रहे। यह पहला मौका था जब भाजपा में शामिल हुए पुराने कांग्रेसी और लम्बे समय से पार्टी में मौजूद नेताओं-कार्यकर्ताओं के बीच बेहतर तालमेल नजर आया।
महाराज की छवि से निकलने लगे बाहर
ज्योरादित्य सिंधिया जब कांग्रेस में थे तब उनकी आलोचना इस बात को लेकर होती रही कि वे महाराज की छवि से बाहर नहीं आ पाते और सबसे मेल-मुलाकात भी नहीं करते। लेकिन भाजपा में आने के बाद उन्होंने यह मिथक तोड़ा और जब भी इंदौर आए वे हर विधायक से लेकर पदाधिकारियों के घर मिलने गए और कल भी उन्होंने पत्रकारों से चर्चा करते हुए स्पष्ट कहा कि महाराज होना मेरा अतीत था, अब मैं जनता का सेवक हूं।
 

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