नई दिल्ली। एक छोटे से अध्ययन का हवाला देते हुए पिछले कुछ दिनों से आयुर्वेद और विशेष रूप से आयुष मंत्रालय के खिलाफ मीडिया के एक वर्ग द्वारा एक दुर्भावनापूर्ण रिपोर्टिंग की जा रही है। मीडिया की ओर से जिस रिसर्च रिपोर्ट का हवाला दिया जा रहा है, वह अभी शुरुआती चरण में है (अभी तक उसकी समीक्षा नहीं की गई है)। मीडिया के एक खास वर्ग द्वारा गलत रिपोर्टिंग आयुष-64 पर केंद्रित है, जो एक हर्बल फॉर्म्यूलैशन है। वहीं, कई बड़े अध्ययनों और एक बहु-केंद्रित नैदानिक परीक्षण के आधार पर पाया गया है कि आयुष-64 कोविड-19 के संक्रमण को रोकने और उपचार में प्रभावी रूप से काम करता है। अखबार में प्रकाशित लेख में केवल एक रिसर्च पेपर का हवाला दिया गया है और यह स्वीकार किया गया है कि रिसर्च पेपर एक छोटा, शुरुआती अध्ययन है। मीडिया के एक खास वर्ग द्वारा आयुष मंत्रालय और टास्क फोर्स (कोविड -19 के लिए आयुष अंतर अनुशासनात्मक आरएंडडी टास्क फोर्स) के एक ईमानदार और ठोस प्रयास को बदनाम करने के लिए किया गया है जबकि किया गया रिसर्च एलोपैथी के साथ-साथ आयुर्वेद दोनों के कुशल शोधकर्ताओं ने किया है। शुरुआती चरण का रिसर्च राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान, जयपुर और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, जोधपुर के बीच एक सहयोगी रिसर्च परियोजना द्वारा किया गया है। दोनों संस्थान रिसर्च के क्षेत्र में बड़ा नाम हैं और रोगी देखभाल के साथ-साथ अनुसंधान की एक लंबी और समृद्ध विरासत के साथ संबंधित क्षेत्रों में सीखने और अनुसंधान के शीर्ष केंद्र हैं। उनके अध्ययन के परिणाम पर गलत रिपोर्टिंग की हम निंदा करते हैं।
मंत्रालय डॉ. जयकरन चरण को भी उद्धृत करना चाहेगा जिन्हें मीडिया में गलत तरीके से कोट किया गया है। उन्होंने साफतौर पर इंकार करते हुए कहा है, ''मैंने कभी नहीं कहा कि आयुष 64 अप्रभावी या बेकार है। इसके विपरीत विचाराधीन दवा आयुष-64 ने प्राथमिक उपचार में प्रभावी परिणाम दिखाया है। रोगियों पर दवा के परीक्षण से प्राप्त परिणाम स्पष्ट रूप से बताता है कि आयुष-64 एक सुरिक्षत दवा है। 'नोडिफरेंस' का मतलब अप्रभावी या बेकार नहीं है, इसका मतलब समकक्ष है।"
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आयुष मंत्रालय को पसंद नहीं आया मीडिया का काम, गलत रिपोर्टिंग की कड़ी निंदा की