
पुराणों,वेदों और उपनिषदों की माने तो अधर्म पर धर्म की विजय का प्रतीक महाभारत कुरुक्षेत्र की भूमि पर हुआ था,लेकिन अपनो का अपनो के ही विरुद्ध युद्ध कैसे धर्म युद्ध कहा जा सकता है?
महाभारत के सूत्रधार योगीराज श्रीकृष्ण क्यो अपनो से ही अपनो को युद्ध के लिए प्रेरित करते ?और उनके मुख से परमात्मा ही क्यो गीता का उपदेश देकर उक्त युद्ध होने देते?सच यह है कि जो परमात्मा हमारा पिता है,जो परमात्मा हमारा सद्गुरु है ,जो परमात्मा हमारा हमारा शिक्षक है,वह हमें क्यो अपनो के ही विरुद्ध करने करने के लिए आत्मा के अजर अमर होने का रहस्य समझाएंगे?वास्तविकता यह कि यह युद्ध अपनो ने अपनो के विरूद्ध किया ही नही,बल्कि अपने अंदर छिपे विकारो के विरुद्ध यह युद्ध लड़ने की सीख दी गई।यानि हमारे अंदर जो रावण रूपी,जो कंस रूपी, जो दुर्योधन रूपी ,जो दुशासन रूपी काम,क्रोध, अहंकार, मोह,लोभ छिपे है, उनका खात्मा करने और हमे मानव से देवता बनाने के लिए गीता रूपी ज्ञान स्वयं परमात्मा ने दिया ।जिसके निमित्त बने थे श्रीकृष्ण।परमात्मा के इसी ज्ञान की आज फिर से आवश्यकता है।तभी तो परमात्मा शिव प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय जैसी संस्थाओं के माध्यम से कलियुग का अंत और सतयुग के आगमन का यज्ञ रचा रहे है।जिसमे दुनियाभर से 140 से अधिक देश परमात्मा के इस मिशन को पूरा करने में लगे है। श्रीमद्भागवत गीता मात्र परमात्मा का उपदेश नही है, अपितु यह जीवन पद्धति का सार भी है।यह मानव में व्याप्त विभिन्न रोगों के उपचार की पद्धति भी है तो जीवन जीने की अदभुत कला का सूत्र भी।श्रीमदभागवत के अठारह अध्यायों में ज्ञान योग,कर्म योग,भक्ति योग का समावेश है। जिससे लगता है मां सरस्वती स्वयं प्रकट होकर अज्ञान रूपी तमस को समाप्त कर ज्ञान रूपी सूर्य का उदय करती है।गीता ज्ञान केवल भारतीय जनमानस के लिए ही हो ऐसा भी कदापि नही है, बल्कि यह सम्पूर्ण संसार का एक ऐसा दिव्य व भव्य ज्ञान ग्रन्थ है जिसे स्वयं परमात्मा ने रचा है।तभी तो श्रीमद्भागवत गीता के श्लोकों में बार बार 'परमात्मा उवाच' आता है । जिसका अर्थ है 'परमात्मा कहते है'।स्वयं योगीराज श्रीकृष्ण के मुखारबिंद से निकले श्लोकों में भी 'परमात्मा उवाच 'पढ़ने व सुनने को मिलता है।जिससे स्पष्ट है कि श्रीमद्भागवत गीता के रचयिता स्वयं परमात्मा है और योगीराज श्रीकृष्ण ,परमात्मा के इस पुनीत यज्ञ के लिए निमित्त बने थे। ब्रह्माकुमारीज द्वारा सन 2019 में आयोजित किये गए गीता सम्मेलन में हिंदी विद्वान डॉ योगेंद्र नाथ शर्मा 'अरुण' व पतंजलि विश्वविद्यालय के प्रतिकुलपति डॉ महावीर अग्रवाल इस सम्मेलन में बतौर वक्ता शामिल रहे थे।इस सम्मेलन में ही वरिष्ठ राजयोगी बीके बृजमोहन भाई की प्रेरणा व देहरादून ब्रह्माकुमारीज सेवा केन्द्र से जुड़े राजयोगी बीके सुशील भाई के सुझाव पर इस लेखक ने ईश्वरीय सेवा के निमित्त होकर श्रीमद्भागवत गीता जैसे गूढ़ लेकिन जिज्ञासा पूर्ण विषय पर पुस्तक लिखने का संकल्प लिया था।जो शीघ्र ही पाठको के बीच होगी।श्रीमद्भागवत गीता पर फ़िल्म निर्देशक डॉ सुभाष अग्रवाल और श्रीमद्भागवत गीता प्रचार न्यास रुड़की के अध्यक्ष नरेश त्यागी ने ऐतिहासिक कार्य किया है।उनके द्वारा श्रीमद्भागवत गीता पर विशेष कर युवाओं को लेकर धारावाहिक फ़िल्म का निर्माण किया गया। श्रीमद्भागवत गीता को लेकर विद्वजनों की भिन्न भिन्न सोच को लेकर भी श्रीमद्भागवत गीता विभिन्न दृष्टियों में सार रूप में सामने आती रही है। मूल्यपरक शिक्षा के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रचनात्मक सेवा कर रहे ब्रह्माकुमारीज के कार्यकारी सचिव बीके मृत्युंजय भाई व राजयोगी बीके शिवकुमार भाई श्रीमद्भागवत पर अच्छा विवेचन करते है।
(लेखक- डॉ श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट)