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कहो तो कह दूँ - इस देश में "नवजात शिशु" से लेकर अर्थी पर लेटा "मुर्दा तक  दुखी .....

कहो तो कह दूँ - इस देश में "नवजात शिशु" से लेकर अर्थी पर लेटा "मुर्दा तक  दुखी .....

केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी बातें तो खरी खरी करते हैं l हाल ही में उन्होंने एक कार्यक्रम में बताया कि राजनीति  में सब दुखी हैं l  विधायक  इसलिए दुखी है कि वे मंत्री नहीं बन पाए,  मंत्री इसलिए दुखी  हैं कि उन्हें अच्छा विभाग नहीं मिला, जिन्हें अच्छा विभाग भी मिल गया वे  इसलिए  दुखी हैं  कि मुख्यमंत्री नहीं बन पाए और मुख्यमंत्री इसलिए दुखी है कि पता नहीं कब उन्हें हटा दिया जाए, बात तो गडकरी जी की सौ फीसदी सही है अब  देखों  न एक झटके में गुजरात  में मुख्यमंत्री से  लेकर तमाम  मंत्री  बीजेपी  ने हटा दिए, इधर पंजाब में अमरिंदर सिंह  इसलिए दुखी हैं  कि उन्हें मुख्यमंत्री पद से स्तीफा देना पड़ा, सिद्धू  इसलिए दुखी हैं कि अमरिंदर को हटाने की पूरी कवायद करने के बाद भी वे न तो मुख्यमंत्री बन पाए न उपमुख्यमंत्री, हाथ में आया सिर्फ ,"बाबाजी का ठुल्लू" इधर नए मुख्यमंत्री  "चन्नी साहेब" इसलिए दुखी हैं  कि कुल जमा छह महीने का कार्यकाल मिला है  उसमें वे क्या  उखाड़ लेंगे l ये  तो हुई राजनीति  की बात लेकिन अपना  मानना  है कि आज क़ी  तारीख में हर आदमी दुखी ही हैं l आम  आदमी  पेट्रोल,  डीजल,  घरेलू गैस और बढ़ती मंहगाई  से दुखी है, बेरोजगार युवा रोजगार न मिलने के  कारण दुखी  हैं , बाप बेटे की आवारगर्दी से दुखी है तो बेटा  बाप के उपदेश सुन सुन कर दुखी है, जनता नेताओ के व्यवहार से दुखी है तो नेता लोगों की  मांगों  को लेकर दुखी हैं मुख्यमंत्री प्रदेश का खजाना खाली  होने से दुखी हैं तो जनता टैक्स  पर  टैक्स  लगाए जाने से दुखी है , पति पत्नी की डांट  से दुखी है तो पत्नी पति की घर के काम  में  हाथ न बंटाने  से दुखी है, इधर  जब से उमा भारती  ने प्रदेश में शराब बंदी लागू  करवाने के लिए आंदोलन  की बात कही है पूरे  प्रदेश  के दरुये दुखी  हो गए हैं कि  यदि दारू नहीं मिलेंगी तो वे जियेंगे कैसे l मामा  इस बात के लिए दुखी हो रहे हैं कि यदि दारू बंद हो गयी तो राजस्व किधर  से आएगा, आबकारी विभाग वाले इसलिए दुखी हैं कि शराब बंदी होगी तो खालिस तनख्वाह से घर कैसे चलाएंगे l जैसा हाल नेताओं का है वो ही हाल अफसरों का है कोई अफसर इसलिए दुखी है कि मलाई दार डिपार्टमेंट नहीं मिला जिसको मिला है वो इसलिए दुखी है कि हिस्सा बाँट  करने के  बाद  उसके हाथ में कुछ खास नहीं आ पा रहा है और रिस्क पूरी उसकी है  सरकारी कर्मचारी इसलिए दुखी हैं कि उनको मंहगाई भत्ता नहीं मिला पा रहा हैं, आशिक इसलिए दुखी है कि कोरोना  के कारण माशूका से नहीं  मिल पा रहा है माशूका इसलिए दुखी है कि घर वाले बाहर नहीं जाने दे रहे हैं , इमरान  हाशमी इसलिए दुखी हैं कि किसिंग सीन देने हीरोइन तैयार नहीं हैं निर्माता निर्देशक इसलिए  दुखी हैं कि जब तक ऐसे सीन  नहीं होंगे तो पिक्चर चलेगी कैसे , महिलाये इस बात को लेकर दुखी है की मास्क लगाने के चलते उनकी खूबसूरती लोगों को नहीं  दिखाई  दे रही है, लिपस्टिक बनाने वाली  कंपनियां   इसलिए दुखी है क्योंकि  महिलाओं ने मास्क के कारण  लिपस्टिक लगाना छोड़  दिया हैं, पैदा होने वाला "नवजात शिशु" इसलिए दुखी हैं कि उसका जन्म  "अम्बानी" के घर पर क्यों नहीं हुआ, उधर अर्थी पर लेटा  मुर्दा  इसलिए दुखी हैं कि मैं तो सारी जिंदगी सबकी मिट्टी में जाता रहा और आज  देखो मेरी मिट्टी में कितने  कम लोग आये हैं l कुल मिलाकर हर आदमी दुखी है इसलिए तो फिल्मों में भी  दुःख को लेकर  कई  गीत लिखे गए हैं  जैसे "दुखी मन मेरे, सुन मेरा कहना जंहा नहीं चैना वहां नही रहना"  या "राही मनवा दुख की चिंता क्यों सताती है दुःख तो अपना साथी  है" या फिर "कुदरत" फिल्म का ये गाना "सुख दुःख की हरेक माला कुदरत ही पिरोती है" इधर शायरी में भी दुख  घुला हुआ है  सुनिए एक आशिक क़ी दुःख बाहरी दास्ताँ "दुख इस बात का नहीं कि  तुम मेरी न हुई दुःख इस बात का है की तुम यादों से न गयी" एक और दुखी की  आवाज  "हर रात दुःख से मुलाकात होती है  जब मेरे सपनो में तेरी बात होती है" दुख का कोई अंत नहीं है इसलिए गुरु नानक देव जी के  इस  ज्ञान को अपने दिलो दिमाग में बैठा लेना चाहिए  जब वे कहते है "नानक दुखिया सब  संसारा सोइ सुखिया जेहि नाम आधारा"

ये भी कभी हुआ है क्या
पिछले दिनों मुख्यमंत्री शिवराज सिंह यानी  मामाजी ने एक घोषणा कर डाली कि  मैं भी मोदी जी की तर्ज पर न खाऊंगा न खाने दूंगा l पूरे  प्रदेश  में  सुराज  अभियान चलाया जाएगा इसका मतलब है कि हर आम आदमी  का काम "बिना लिए दिए" हो जाए l मामाजी ने लगता है सरकारी अफ़सरों और कर्मचारियों से  बिना  पूछे  ये घोषणा कर डाली, कम से कम उन लोगों से पूछ तो लेते कि मैं ये घोषणा करने वाला हूँ आप लोगों को कोई "ऑब्जेक्शन" तो नहीं है भगवान् की कसम एक ही झटके में हजारों ऑब्जेक्शन उनके पास पंहुच जाते l  हुजूरे आला सरकारी काम कभी बिना लिए दिए हुआ है क्या आजतक, आप किसी भी दफ्तर में चले जाओ अपना काम बतलाओ इतने नुक्स निकालेंगे  बाबू और अफसर  कि आप को लगेगा कि बहुत बड़ी गलती कर दी है, यहां आकर, लेकिन जैसी ही आँखों आँखों में आप इशारा करोगे चढ़ावा रखोगे एक  हफ्ते  में आपका काम बिना किसी परेशानी कहो  जाएगा l देख नहीं रहे रोज  रिश्वत खोर अधिकारी कर्मचारी पकडे जा रहे हैं,  पेंशन विभाग  का एक चपरासी चार हजार की  रिश्वत  लेते  पकड़  लिया गया सोचो जब चपरासी चार हजार मांग रहा हो तो बाबू और अफसर का रेट क्या होगा , अपनी तो मामाजी से यही इल्तजा है कि आप ऐसी कोई भी घोषणा  जिसमें सरकारी  अफसर और कर्मचारी  "इन्वॉल्व"   हो उनसे  पूछे  बिना मत किया करो आखिर उनके भी  बाल बच्चे  हैं  अकेली "सरकारी तनख्वाह"  से कभी किसी का गुजारा हुआ हैं क्या जो इस  देश  में कभी हुआ नहीं है वो आप कैसे कर दिखाएंगे,  असंभव  को संभव बनाने की कोशिश मत करो मामाजी  जैसा  चल रहा हैं  चलने दो  वरना  पूरी  सरकारी  मशीनरी ही ठप्प पड़ जाएगी l

सुपर  हिट ऑफ़  द वीक  
श्रीमान जी का दरवाजा  खटखटाते हुए वे बोले  "दरवाजा खोलो हम पुलिस वाले हैं" 
"क्या काम हैं" श्रीमान जी ने भीतर से ही पूछा 
"हमें आपसे कुछ बात करनी हैं" 
"तुम कितने लोग हो"  श्रीमान जी ने फिर पूछा 
"हम चार हैं" पुलिस वालों ने जवाब दिया 
"तो  फिर आपस  में बात कर लो मेरे पास टाइम नहीं हैं" श्रीमान जी का उत्तर था।
  (लेखक-चैतन्य भट्ट/)

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