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(चिंतन-मनन) विचार-निर्विचार, चिंतन-अचिंतन 

(चिंतन-मनन) विचार-निर्विचार, चिंतन-अचिंतन 

पूरा विश्व, विचारों पर चलता है, सारे आविष्कार, युध्द, आतंकवाद, साहित्य सृजन, भाषण, प्रवचन, तू-तू, मैं-मैं सब विचारों की देन है। विचार ही सब कार्यों को अंजाम देता है। भक्ति, प्रार्थना, व्यवहार, सेवा सब विचारों की देन है। हम सोचते हैं तो करते हैं होता है। अब प्रश्न यह है कि विचार कैसे हो, दो श्रेणियों में बांटा गया है उन्हें, सकारात्मक, नकारात्मक, सकारात्मकता निर्माण करती है, नकारात्मकता विध्वंस, मनुष्य ने सभ्यता को ऊंचाई तक पहुंचाया है एक तरफ तो दूसरी तरफ नृशंसता के गर्त में भी। जैसे विचार वैसा वातावरण और वृत्त। विचार करना सुविचार करना कोई किसी को जबरदस्ती नहीं सीखा सकता क्योंकि संस्कार, लालन-पालन, शिक्षा, मनन-चिंतन, संगति, वातावरण से विचारों में परिवर्तन होता है। पता नहीं यह दुनिया कब से बनी है, मनुष्य ने सोचना कब से शुरू किया, उसमें कैसे-कैसे परिवर्तन होते गया यह एक बड़ा गूढ़ विषय है। इस पर शास्त्र रचे जा सकते हैं। विचारों ने ही तो इतना ज्ञान इस विश्व को दिया है विज्ञान, साहित्य, शिक्षा, राजनीति, धर्म, कानून, जैसे-जैसे आवश्यकताएं होती गई या बढ़ती गई सब आविष्कार या रचना होती गई। आतंकवाद, विस्तारवाद, युध्द भी विचारों का खेल है। नेतृत्व के गलत विचारों का खामियाजा पूरे देश को देना होता है, कौम हो देना होता है। धार्मिक उन्माद भी कुछ गलत विचारों की देन है। बुध्दिहीन या कम बुध्दि वाले लोगों को बुध्दिमान चालाक लोग भेड़ों की तरह हांक कर अपने ढंग से उपयोग या दुरुपयोग करते हैं। 
इन्सान का अपना वजूद जब कमजोर होता है तो वह हिप्मोटाइज हो जाता है दूसरों से और पीछे-पीछे चलने लगता है, उसे पता नहीं होता कि वह कुएं में जाएगा या खाई में। हर कर्म के पीछे विचार होता है। सत्कर्म और बुरे कर्म। बिना विचारे कोई कुछ नहीं करता, यह अलग बात है कि कितनी गहराई और गंभीरता से विचार किया जाता है। आदमी हमेशा विचारों के हिंडोले में हिचकोले खाता रहता है, कभी आनंददायक कभी दुख देने वाले विचारों से स्वास्थ्य, विचार से रोग, वीरोचित कार्य कायराना कार्य। इसलिए विचारों को सुधार लीजिए सब कुछ ठीक हो जाएगा। मेडिकल इंसान और रिसर्च में भी यही पाया गया है कि रोग विचारों की देन है नकारात्मक विचारों की। सकारात्मक विचारों से, आशा, विश्वास से लोग निरोग होते देखे गए हैं। गीता में कहा गया है चित्त वृध्दि निरोध की स्थिति में आना याने सब दृष्टि से संतुलन, शांति, आनंद, निर्भयता में जीना। अति प्रसन्न और अति दुखी होना भी गलत है। हमेशा समस्थिति में रहना। भगवान विष्णु की तरह जो शेष नाग की शैया पर (विषमता) में भी शांत और प्रसन्न रहते हैं हमें हमारे पौराणिक दृष्टांतों से बहुत कुछ हासिल हो सकता है पर हम पढ़े सोचे और चलें तब। सोचिए आपको कैसे जीना है।  
 

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