
नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि किसी वित्तीय सौदे में बतौर 'सिक्यूरिटी' जारी किए गए चेक को बेकार कागज का टुकड़ा नहीं माना जा सकता। शीर्ष कोर्ट ने कहा कि 'सिक्यूरिटी' अपने सही मायने में सुरक्षा के लिए है और कर्ज के लिए सुरक्षा भुगतान की प्रतिज्ञा के रूप में दी जाती है। साथ ही कहा कि सिर्फ चेक बाउंस होने को धोखाधड़ी के इरादे से किया गया कार्य नहीं माना जा सकता है। जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस एएस बोपन्ना की पीठ ने कहा कि चेक यह सुनिश्चित करने के लिए दिया जाता है, जमा किया जाता है या गिरवी रखा जाता है कि लेन-देन करने वाले पक्ष बाध्य हों। पीठ ने कहा कि यदि कर्ज के मामले में कर्जदार एक तय समय सीमा में राशि चुकाने पर सहमत है और इस तरह के पुनर्भुगतान को सुरक्षित करने के लिए सिक्यूरिटी के रूप में चेक जारी करता है तो ऐसे चेक को भुगतान के लिए लगाया जा सकता है और चेक लगाने वाला भुगतान का हकदार होगा। कोर्ट ने आगे कहा कि यदि इस तरह चेक लगाने पर बाउंस होता है तो धारा-138 और नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट के अन्य प्रविधानों के तहत कार्रवाई की जा सकती है। शीर्ष कोर्ट ने झारखंड के एक मामले में सुनवाई करते हुए यह फैसला दिया।