
नई दिल्ली । यूपी चुनाव से पहले किसानों को बड़ी राहत देते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने शुक्रवार को कृषि के तीनों कानूनों को वापस ले लिया। पीएम मोदी ने माफी मांगते हुए तीनों कानूनों की वापसी का ऐलान किया तो किसानों में खुशी की लहर दौड़ गई। कृषि कानूनों की वापसी के बाद अब सीएए वापसी का मुद्दा फिर से उठने लगा है। कृषि कानूनों की वापसी पर जमीयत उलेमा-ए-हिंद अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने कहा हम उन किसानों को बधाई देते हैं जिन्होंने बहादुरी से अपना विरोध जारी रखा, इसी तरह हम चाहते हैं कि सरकार उस कानून को वापस ले ले जो मुसलमानों को चोट पहुंचाने वाला है। वे भी दूसरों की तरह ही भारत के नागरिक हैं। अगर वे प्रभावित हैं तो सरकार को इसे उसी तरह महसूस करना चाहिए। मौलाना केन्द्र सरकार पर तंज कसते हुए कहा, ऐसा माना जाता है कि चुनाव नजदीक होने के कारण कृषि के तीनों कानून निरस्त कर दिए गए हैं। हमें लगता है कि वह सीएए-एनआरसी राष्ट्रीयता से संबंधित है और इसका खामियाजा मुसलमानों को भुगतना पड़ेगा। जनता की ताकत सबसे मजबूत, इसलिए यह सीएए भी निरस्त किया जाएगा। सहारनपुर में जमीयत उलमा-ए-हिंद के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने कृषि कानूनों को वापस लेने का स्वागत किया था। साथ ही मांग की है कि सरकार नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) को भी कृषि कानूनों की तरह वापस ले। शुक्रवार को मीडिया में जारी बयान में मौलाना अरशद मदनी ने कहा था कि एक बार फिर सच सामने आया है कि अगर किसी जायज मकसद के लिए ईमानदारी और धैर्य के साथ आंदोलन चलाया जाए तो उसमें कामयाबी जरूर मिलती है। सीएए आंदोलन ने किसानों को कृषि कानूनों का विरोध करने के लिए प्रोत्साहित किया। क्योंकि किसानों की तरह सीएए के खिलाफ चले आंदोलन में महिलाएं भी न्याय के लिए दिन रात सड़कों पर बैठी रहीं। जनता के इरादों के आगे आंदोलन को तोड़ा या दबाया नहीं जा सका। उन्होंने कहा था कि पीएम नरेंद्र मोदी को अब उन कानूनों पर भी ध्यान देना चाहिए जो देश के अल्पसंख्यकों के संबंध में लाए गए हैं। कृषि कानूनों की तरह ही सीएए को भी वापस लेना चाहिए। इस फैसले ने यह साबित कर दिया कि लोकतंत्र और जन शक्ति सर्वोपरि है।