
नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा है कि मजिस्ट्रेट द्वारा मुकदमा चलाने का मामला सत्र अदालत नहीं ले सकती। ज्ञात रहे कि विशेष अदालत की स्थापना पर इसके पहले के निर्देश को इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा "गलत व्याख्या" और "गलत" माना गया था, जिसने केवल विशेष सत्र न्यायालय की स्थापना की थी, इस पर मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना की अध्यक्षता वाली एक विशेष पीठ ने उक्त व्यवस्था दी है।
कोर्ट ने कहा क़ि उत्तरप्रदेश जैसे कुछ राज्यों में छोटे अपराधों के लिए विशेष सत्र अदालतों द्वारा कानून बनाने वालों की कानूनी "समस्या" को हल करने के लिए वह उच्च न्यायालयों को विशेष मजिस्ट्रेट अदालतें स्थापित करने का निर्देश देगा जहां चल रहे मामलों को स्थानांतरित किया जाएगा और परीक्षणों को आगे बढ़ाया जाएगा।
शीर्ष अदालत इस मुद्दे को हल कर रही थी कि क्या विशेष अदालत "अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश के रैंक के एक अधिकारी की अध्यक्षता में उन मामलों की सुनवाई कर सकती है जो सीआरपीसी के तहत मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय हैं।"
समाजवादी पार्टी के नेता आजम खान के राजनेता बेटे अब्दुल्ला आजम खान की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने यह कहते हुए याचिका दायर की कि उनके मुवक्किल पर एक सत्र न्यायाधीश द्वारा संचालित विशेष अदालत द्वारा मुकदमा चलाया गया है। जिन मामलों में मजिस्ट्रेटों द्वारा विचारण किया जाना चाहिए था क्योंकि वे छोटे अपराधों के हैं।
इस तथ्य से नाराज़ कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने विशेष मजिस्ट्रेट अदालत का गठन नहीं किया, पीठ ने कहा कि शीर्ष अदालत ने राज्य में स्थापित होने वाली विशेष अदालतों की संख्या के संबंध में स्वतंत्रता दी थी और उसने यह नहीं कहा कि कोई विशेष अदालत नहीं है, मजिस्ट्रियल कोर्ट का गठन किया जाना था।