
नई दिल्ली । देश की सर्वोच्च अदालत ने कोरोना वैक्सीनेशन से हुई मौतों की जांच वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए स्पष्ट शब्दों में कहा कि टीके पर संदेह नहीं कर सकते हैं। शीर्ष कोर्ट की तरफ से कहा गया कि असंतुष्ट हमेशा रहेंगे, लेकिन नीति उनके अनुसार नहीं बनाई जा सकती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने इसे मंजूरी दी है, लाखों लोग इसे लगवा रहे हैं। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एएस बोपन्ना की पीठ ने कहा, 'हम यह संदेश नहीं भेज सकते कि टीकाकरण में कुछ समस्या है। हम इस पर संदेह नहीं कर सकते।'
अजय कुमार गुप्ता की तरफ से एक जनहित याचिका दायर कर टीकाकरण के बाद होने वाली सभी मौतों की जांच की मांग की गई थी। याचिकाकर्ता ने बढ़ती मौतों और कोविड वैक्सीनेशन के बाद 30 दिनों के भीतर होने वाली मौतों के मामलों की जांच के निर्देश देने को याचिका दाखिल की है। याचिकाकर्ता के वकील कॉलिन गोंजाल्विस ने कहा कि वैक्सीनेशन के बाद प्रतिकूल घटनाएं हुई हैं। अन्य देशों के विपरीत भारत में इसे रिपोर्ट किया गया। उन्होंने भारत में कोविड के खिलाफ टीकाकरण शुरू होने के बाद से 9,000 से अधिक आंकी थी। जबकि आरोप लगाया था कि यदि वैक्सीन लेने के बाद किसी की मौत हो जाती है, तो कोई उचित जांच या शव परीक्षण नहीं किया जाता है।
पीठ ने कहा कि सरकार द्वारा बनाई गई किसी भी प्रकार की नीति के लिए हमेशा असहमति होगी। हमेशा असहमत होने के कारण होते हैं लेकिन हम उनके अनुसार अपनी नीति नहीं बना सकते। कोविड के खिलाफ प्रत्येक भारतीय का टीकाकरण करने का निर्णय डब्ल्यूएचओ के दिशानिर्देशों के अनुरूप है। अमेरिका जैसे विकसित देशों द्वारा भी ऐले कदम उठाए गए हैं। हम उस दिशा में अच्छी तरह से आगे बढ़ रहे हैं और पूरी आबादी को टीका लगाने की प्रक्रिया एक महत्वपूर्ण चरण में है। हम इस प्रक्रिया को रोकना नहीं चाहते हैं।