
नई दिल्ली । 13 महीनों से दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन कर रहे किसानों ने गुरुवार को इसे खत्म करने का ऐलान किया। सरकार की ओर से पांच मांगों पर भेजे गए प्रस्ताव को संयुक्त किसान मोर्चा ने सहमति दे दी।दिल्ली की सीमाओं पर बीते 13 महीने से अधिक समय से आंदोलन कर रहे किसानों ने गुरुवार को आंदोलन खत्म करने का ऐलान किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा तीन कृषि कानूनों को निरस्त करने की घोषणा के तीन सप्ताह बाद और संसद द्वारा आधिकारिक रूप से उन्हें वापस करने के कुछ दिनों बाद, आंदोलनकारी किसानों ने इसे खत्म कर दिया। विरोध ने एनडीए सरकार के लिए एक अभूतपूर्व राजनीतिक संकट खड़ा कर दिया था। आंदोलन के कारण बीजेपी की प्रमुख सहयोगी अकाली दल ने साथ छोड़ दिया। मामला देश के सर्वोच्च अदालत तक जा पहुंचा था। किसान संगठनों का दावा था कि आंदोलन के दौरान 700 से अधिक किसानों की मौत भी हो गई। हालांकि सरकार का कहना है कि आंदोलन में कितने किसान मरे उसे आधिकारिक संख्या नहीं पता। केंद्र सरकार की तरफ से किसानों की पांच मांगों पर भेजे गए प्रस्ताव पर संयुक्त किसान मोर्चा ने सहमति दे दी। प्रस्ताव पर गुरुवार को किसान नेताओं की बैठक हुई थी। बैठक के बाद किसान नेताओं ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर आंदोलन को स्थगित करने की घोषणा की। किसान नेता राकेश टिकैत के मुताबिक 11 दिसंबर से किसान दिल्ली की सीमाओं को छोड़कर अपने-अपने घरों को लौटने लगेंगे। किसान नेताओं ने इसे अपनी "ऐतिहासिक जीत" करार दिया है और 11 दिसंबर को विजय दिवस मनाने का फैसला किया है। दरअसल केंद्र की ओर से दोबारा भेजे गए मसौदा प्रस्ताव पर किसानों ने अपनी सहमति जाहिर कर दी थी, उसी प्रस्ताव पर सरकार ने किसानों को अब लिखित में दे दिया है। 15 जनवरी को किसानों की समीक्षा बैठक होगी और इस बैठक में नेता इस बात की समीक्षा करेंगे सरकार सहमत प्रस्तावों को लागू करती है या नहीं। इस बीच, सिंघु बॉर्डर पर किसानों ने टेंट हटाना शुरू भी कर दिया है। संयुक्त किसान मोर्चा के प्रतिनिधि बलबीर सिंह राजेवाल ने मीडिया से कहा, "आज हम तानाशाह सरकार को हराकर जा रहे हैं। 15 जनवरी को एसकेएम फिर से बैठक करेगा और समीक्षा करेगा कि क्या सरकार प्रदर्शनकारियों पर लगाए गए मामलों को वापस लेती है और वह अन्य मांगों पर कार्रवाई करती है या नहीं" गुरुवार से ही कई किसानों ने दिल्ली की तीन सीमाओं सिंघु, टीकरी और गाजीपुर बॉर्डर पर बने टेंट हटाने शुरू कर दिए थे। साल भर से अधिक समय से हाईवे पर चले आंदोलन की वजह से आम लोगों को भी काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा था।