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अमर जवान ज्योति अब अपने सही स्थान पर 

अमर जवान ज्योति अब अपने सही स्थान पर 

1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध के बलिदानियों  की स्मृति में  अमर जवान ज्योति जो , अंग्रेजो द्वारा बनाई गई गुलामी की निशानी  इंडिया गेट पर कांग्रेस सरकार द्वारा लगाई गई थी , वह अब  इंडिया गेट से 400 मीटर दूर राष्ट्रीय युद्ध स्मारक या नेशनल वॉर मेमोरियल पर प्रज्ज्वलित ज्योति के साथ प्रज्ज्वलित होगी। तथा इंडिया गेट पर अमर जवान ज्योति के स्थान पर नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की प्रतिमा लगेगी।
विदित हो कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 25 फरवरी 2019 को राष्ट्रीय युद्ध स्मारक का उद्घाटन किया था, जहां भारत की रक्षा में प्राण देने वाले 25,942 वीर सैनिकों के नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखे गए हैं. इस युद्ध स्मारक में 1947-48 के युद्ध से लेकर गलवान घाटी में चीनी सैनिकों के साथ संघर्ष तक बलिदान हुए सैनिकों के नाम अंकित हैं. इनमें आतंकवादी विरोधी अभियान में जान गंवाने वाले सैनिकों के नाम भी हैं. सशस्त्र सेनाओं के सैनिकों के बलिदान  पर इससे पहले कोई राष्ट्रीय स्मारक नहीं था.
अब से पहले  अमर जवान ज्योति इंडिया गेट पर प्रज्ज्वलित थी ,उस इंडिया  गेट पर जिस को अंग्रेज एडविन लुटियन ने डिजाइन किया था. इसकी आधारशिला 10 फरवरी 1921 को रखी गई थी. ये 10 साल में बनकर तैयार हुआ था. 12 फरवरी 1931 को तत्कालीन वायसराय लॉर्ड इर्विन ने इंडिया गेट का उद्घाटन किया था. 
इंडिया गेट को अंग्रेजों ने 1914 से 1918 तक प्रथम विश्व युद्ध में और 1919 में तीसरे एंग्लो-अफगान युद्ध में ,जिसमे 80 हजार से ज्यादा अंग्रेजी सेना के भारतीय सैनिक  मारे गए थे उन्हें ही श्रद्धांजलि देने के लिए बनाया गया था.
दिसंबर 1971 में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध हुआ था. ये युद्ध 3 से 16 दिसंबर तक चला था. इस युद्ध में पाकिस्तान को घुटने टेकने पड़े थे. हालांकि, इसमें कई भारतीय जवान भी वीर गति को प्राप्त हुए थे. 
1971 के युद्ध में भारतीय सेना के 3,843 जवान वीर गति को प्राप्त हुए थे. इन्हीं बलिदानियों की याद में अमर जवान ज्योति जलाने का फैसला हुआ. तब अंग्रेजो के बनाई इस गुलामी की निशानी यानी इंडिया गेट के नीचे एक काले रंग का स्मारक बनाया गया, जिस पर अमर जवान लिखा था. इस पर L1A1 सेल्फ लोडिंग राइफल भी रखी हुई थी. इसी राइफल पर एक सैनिक हेलमेट भी लगा था।  यही पर आ।र जवान ज्योति जला दी गयी थी ,  जिसका उद्घाटन 26 जनवरी 1972 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने किया था. लेकिन 1971 के युद्ध मे बलिदान हुए एक भी सैनिक का न तो यहां नाम था न ही विवरण ।
इंडिया गेट पर अमर जवान ज्योति गांधी खानदान के निकम्मेपन और सेना के जवानों के बलिदान के प्रति लापरवाही एवम अपमान  का प्रतीक था. यह जनचर्चा थी कि खुद के लिए बड़ी बड़ी समाधियां और भारत के लिए प्राण देने वाले सेना के बलिदानियों के लिए  अंग्रेजो के बनाए इंडिया गेट के नीचे मात्र एक छोटी सी ज्योति रख कर काम चलाना.वैसे यह देशभक्तो को भी खटकता था।
अब अंग्रेजो की इस निशानी पर अंग्रेजो के विरुद्ध लड़ने वाले आजाद हिंद फौज के सेनानायक सुभाष चन्द्र बोस गर्व से खड़े होकर मुस्करायेंगे ।
आने वाली पीढ़ियां अंग्रेजी सेना की ओर से लड़ने वालों के साथ साथ आजाद हिंद सेना की ओर से अंग्रेजो से  लड़ने वालें रणबांकुरों को भी गर्व से याद करेगीं ओर सम्मान देंगी ...गांधी परिवार देशभक्तो को सही स्थान मिलने से शायद खुश नही है ,यह तथ्य राहुल गांधी और कांग्रेस के बयान से स्पष्ट हो रहा है ,पर स्वाधीनता के अमृत महोत्सव पर अमर जवान ज्योति को हुतात्माओं के नाम और विवरण के साथ युद्ध स्मारक पर प्रज्ज्वलित करना तथा सुभाष चन्द्र बोस को अंग्रेजी गुलामी की निशानी की छाती पर खड़ा करना एक श्रेष्ठ कार्य है । भारत के सैनिक परिवार और आम जनता मोदी सरकार के इस कार्य की प्रशंसा कर रही है ।
(लेखक- डॉ विश्वास चौहान)

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