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बुजुर्गों के नजदीक रहना फायदेमंद 

बुजुर्गों के नजदीक रहना फायदेमंद 

संसार मेँ प्रत्येक वस्तु औषधि हैं इसके सिवाय कुछ नहीं .ाआजकल फिर से एकल परिवार के स्थान पर संयुक्त परिवार की प्रथा पर विश्वास और भरोसा होने लगा हैं .पुराने समय मेँ संयुक्त परिवार और बड़े परिवार होने से बच्चों का लालन पालन के साथ बौद्धिक विकास कितना हो जाता था पता नहीं चलता था .मानव एक सामाजिक प्राणी हैं .कुछ नौकरी पेशा मेँ रहते हैं तो निश्चित अवधि के बाद सेवा निवृत्त होने पर एकाकी जीवन यापन करते हैं कारण उनके द्वारा बच्चों को शिक्षित कर नौकरी मेँ लगाकर घर से बाहर या विदेश भेज या चले जाते हैं और व्यापारी वर्ग ताजिंदगी अपने व्यवसाय मेँ व्यस्त रहते हैं .आजकल शिक्षित होने पर अलग थलग रहना पसंद  करते हैं पर यहाँ इस बात को समझना भी जरुरी हैं की दोनों के व्यस्त होने पर उनकी संतानों का लालन पालन की जिम्मेदारी को अच्छे से उठा सकता हैं ?
दादा-दादी और नाना-नानी के साथ बिताया हुआ समय हर बच्चे के लिए खास होता है। इस समय को वह उम्रभर नहीं भूल पाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि साथ में बिताए गए इस समय का लम्बे समय तक में काफी सकारात्मक  असर होता है।
माता-पिता बनने के बाद जब लोग दादा-दादी और नाना-नानी बन जाते हैं, तो बच्चों को लेकर उनका लाड और भी ज्यादा बढ़ जाता है। अक्सर देखा जाता है कि दादा-दादी या नाना-नानी से मिलने की बात से ही बच्चा भी चहक सा जाता है और उसकी खुशी ही बताती है कि उसके लिए उसके दादा-दादी और नाना-नानी  कितने मायने रखते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि आपके माता पिता की बच्चों से नजदीकी उन्हें ज्यादा खुश रखने के साथ ही उनकी उम्र को बढ़ाने में भी मदद कर सकती है?
याददाश्त  तेज करने में मदद
साल 2016 में ऑस्ट्रेलिया में हुई एक स्टडी में सामने आया था कि जो दादा-दादीसप्ताह में कम से कम एक बार अपने  नाती नातिन  के साथ समय बिताते  हैं, उन्हें अल्जाइमर का खतरा कम होता है। साथ ही में यह याद्दाश्त को बरकरार रखने में भी मदद करता है। दरअसल, बच्चों के साथ खेलने के दौरान उनके द्वारा पूछे जाने वाले सवालों के कारण  दादा-दादीचीजें याद रखने की कोशिश करते हैं, इससे उन्हें याददाश्त बढ़ने  में मदद मिलती है।

भावनातमकस्वास्थ्य
बच्चों के साथ खेलने या उनको देखकर ही मिलने वाली खुशी  दादा-दादीको भावनातमक  जुड़ाव स्वस्थ्य रहने में मदद करती है। बढ़ती उम्र के कारण लोगों से होती दूरी और बच्चों के व्यस्त शेड्यूल के कारण माता-पिता को अकेलापन महसूस होने लगता है, जो उन्हें डिप्रेशन का शिकार भी बना सकता है। वहीं अगर वे अपने ग्रैंडकिड्स के साथ रहें, तो उन्हें इस दूरी का उतना पता नहीं चलता है।

बढ़ती है उम्र
ऐवोलुशन  एंड  ह्यूमन  बिहेवियर जर्नल में पब्लिश स्टडी के लिए की गई रिसर्च में सामने आया था कि जो दादा-दादी अपने  नाती नातिन  के साथ समय बिताते हैं, वे उन लोगों को मुकाबले ज्यादा जीते हैं, जो अपने पोते-पोती या नाती-नातिन के साथ समय नहीं बिता पाते। हालांकि, इसी अध्ययन  में इस बात पर भी जोर दिया गया था कि दादा-दादी पर नाती नातिनको संभालने के लिए जोर नहीं डालना चाहिए, नहीं तो यहसुखमय समयउनके लिए तनाव  की वजह बन सकता है।
अपने माँ बाप  के माता-पिता के साथ समय बिताना बच्चों के लिए भी अच्छा होता है। बोस्टन  यूनिवर्सिटी  द्वारा करवाई गई अध्ययन  में सामने आया था कि दादा-दादी के साथ समय बिताने वाले बच्चे इमोशनलीभावनातमक ज्यादा  स्थायी   होते हैं। साथ ही यह उन्हें ज्यादा समझदार व बेहतर स्पीकर बनने में भी मदद करता है। अध्ययन में यह भी सामने आया कि दादा-दादी या नाना-नानी के साथ समय बिताने वाले बच्चों में डिप्रेशन होने की आशंका भी कम रहती है।
वृद्ध हुए दादा दादी या नाना नानी अनुभव के खजाना होते हैं और वृद्धावस्था मेँ अधिकतर निस्प्रह होकर लालन पालन के साथ देखरेख कर ज्ञान देकर उनको बौद्धिक विकास मेँ सहायक होते हैं .साथ ही वे अपने अनुभवों को बाटना चाहते हैं पर युवा वर्ग उनको नजरअंदाज कर कभी कभी त्रिस्कृत करते हैं जबकि उनका भाव सबके प्रति नरम होता हैं .

कहावत भी हैं की मूल से ज्यादा ब्याज प्यारा होता हैं .
हम बहुत ही पुण्यशाली हैं
जिन्हे मिले दादा दादी नाना नानी
जब आज एक दो संतान से
सम्बन्ध सिमटते जा रहे
आने वाले वक्त मेँ
कौन किसी चाचा बुआ मौसी मामी कहेगा
दादा दादी नाना नानी तो होंगे
कोई हो या न हो
इन्हे अपनी विरासत समझो
जब तक रहे वे जीवित
(लेखक- विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन )
 

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