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(लघुकथा)“मुँह बोला रिश्ता”

(लघुकथा)“मुँह बोला रिश्ता”

            रामनिवास बहुत ही भावुक और दूसरों पर अत्यधिक अपनत्व लुटाने वाला और विश्वास करने वाला व्यक्ति था। नियति की विडम्बना ने उसकी बहन को बचपन में ही छीन लिया। रामनिवास की पत्नी हरिश्री अत्यधिक समझदार थी। वह अकसर रामनिवास को रिश्तों की गंभीरता को समझने पर बल देती थी, पर रामनिवास सारी दुनिया को निःस्वार्थ प्रेम लुटाने वाला ही समझता था। राखी वाला दिन था, रामनिवास बहन की यादों में डूबा था। अचानक उसके परममित्र के परिवार का आगमन हुआ और संयोगवश राखी-डोरे का संबंध स्थापित हुआ, पर हरिश्री जीवन की गहराइयों से भली-भाँति परिचित थी। वह जानती थी मुँह बोले रिश्तों की सच्चाई।
            इस नए रिश्ते में पूरा समर्पण रामनिवास का ही था। वह मामा बनने पर बच्चों पर अपनत्व और प्रेम लुटाया करता था। जब भी बहन की माँ रोगग्रस्त हुई तबभी रामनिवास ने पूरे समय दायित्व का निर्वहन किया। पारिवारिक शादियों में भी रामनिवास ने अपना भरपूर सहयोग प्रदान किया। रामनिवास निश्छल व्यक्तित्व का धनी था अतः उसने इस मुँह बोले रिश्ते को निभाने में कोई कमी नहीं छोड़ी। जरूरत के अनुसार बच्चों की देखरेख, बाहर से सामान लाना और जरूरत के हर समय वह खड़ा रहता था। रामनिवास पूर्ण तन्मयता से सब कुछ करता था। अबकी बार बारी थी रामनिवास के मुँह बोले रिश्ते की परीक्षा की, इस बार रामनिवास के बच्चों के जीवन पर संकट के काले बादल छा गए। अब रामनिवास को भी इसी सहयोग की जरूरत थी, पर उसके मुँह बोले रिश्ते ने दिखावे का मुखौटा धारण किया हुआ था, जिसमें ऊपरी दिखावा और अंदर भरपूर मनोरंजन समाहित था। उन्हें तो रामनिवास के दु:ख से कोई सरोकार नहीं था। हरिश्री ने रामनिवास का इस ओर ध्यान आकृष्ट भी किया, पर रामनिवास तो आँख मूंदकर बैठा था।
            कुछ समय पश्चात समय रामनिवास की आँखें खोलने आया। रामनिवास को विषम शारीरिक अस्वस्थता का सामना करना पड़ा। उसे ईलाज के लिए बाहर ले जाया गया। बच्चे और पत्नी सभी बेहद चिंतित और परेशान थे, पर परीक्षा की इस घड़ी में भी राखी वाला संबंध खरा न उतर सका और मुँह बोले रिश्ते ने अपनी सच्चाई दिखा दी। वह तो छोटी सोच वाला धराशायी रिश्ता था। इतनी बड़ी जरूरत में कैसे खड़ा हो सकता था। जब रामनिवास पूर्णतः स्वस्थ्य हुआ तो उसकी आँखें खुल गई और उसकी आँखों से अश्रु बह रहे थे और हरिश्री की हर चेतावनी उसे याद आ रही थी।
            इस लघुकथा से यह शिक्षा मिलती है की रिश्ते किसी भी मापदंड के भूखे नहीं होते और जो ऐसे होते है वह सच्चे रिश्ते नहीं कहलाते। रिश्तों में भावुकता, अपनत्व और प्रेम का निर्धारण सामने वाले को जानकर ही करना चाहिए। रामनिवास के निश्छल प्रेम का मुँह बोले रिश्ते ने कोई सम्मान नहीं किया। अतः अपना समय ऐसे रिश्तों में व्यतीत करें जो जरूरत के समय अविराम व अडिग खड़े रहें और बिना अपेक्षा के भी पूर्ण सहयोग और मदद को तत्पर रहें।      
(लेखिका- डॉ. रीना रवि मालपानी )
 

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