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धार्मिक और स्वास्थ्य के लिए  बहुउपयोगी है पलाश- 

धार्मिक और स्वास्थ्य के लिए  बहुउपयोगी है पलाश- 

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    पलाश के फूल को टेसू का फूल भी कहा जाता है। पलाश वसंत ऋतु में खिलता है और ये तीन रंगों के होते है, सफेद, पीला और लाल-नांरगी। आयुर्वेद में पलाश के पेड़  को बहुत ही अहम् स्थान प्रदान किया गया है, क्योंकि पलाश के बहुगुणी होने के कारण इसको कई तरह के बीमारियों के लिए औषधि के रुप में प्रयोग किया जाता है।
     आयुर्वेद में पलाश के जड़, बीज,  तना, फूल और फल का इस्तेमाल बीमारियों के उपचार के लिए किया जाता है। पलाश के बहुत सारे पोषक तत्व हैं जो उसको अमूल्य बना देता है,
      वैदिक काल में पलाश का प्रमुख उपयोग यज्ञ कर्मों के लिए किया जाता था। कौशिकसूत्र में पलाश पेस्ट का प्रयोग जलोदर (पेट में सूजन) के लिए वर्णित है। बृहत्रयी में पलाश का प्रमुख रूप से प्रमेह या डायबिटीज, अपतानक  अर्श या पाइल्स, अतिसार या दस्त, रक्तपित्त (कान-नाक से खून बहना), कुष्ठ आदि की चिकित्सा में प्रयोग मिलता है।
     पलाश का टेढ़ा-मेढ़ा, 12-15 मी ऊँचा, मध्यम आकार का पर्णपाती वृक्ष होता है। इसके पत्ते बृहत्, त्रि-पत्रकयुक्त (बीच का पत्र बड़ा तथा किनारे के दोनों पत्ते छोटे होते हैं) तथा स्पष्ट शिरायुक्त होते हैं। इसके पत्तों का प्रयोग दोना तथा पत्तल बनाने के लिए किया जाता है। ग्रीष्म ऋतु में इसकी त्वचा को क्षत करने पर एक रस निकलता है, जो लाल रंग का होता है तथा सूखने पर कृष्णाभ-रक्तवर्ण-युक्त, भंगुर तथा चमकदार होता है।
     पलाश के फूल  प्यास को कम करने वाला, कफपित्त कम करने वाला, उत्तेजना बढ़ाने वाला, डायबिटीज नियंत्रित करने में मदद करता है। पलाश के फल स्तम्भक व प्रमेहघ्न होते हैं। पलाश की गोंद एसिडिटी कम करने में और शक्ति बढ़ाने में मदद करता है। यह  मुखरोग तथा खाँसी में फायदेमंद होता है। पत्ते सूजन कम करने में तथा वेदना को कम करने वाला होता है। पञ्चाङ्ग कफवात को कम करने वाला होता है। पलाश के जड़ का रस रतौंधी और नेत्र के सूजन को कम करता है। यह नेत्रों की ज्योति को भी बढ़ाता है।
     पलाश का तना काम शक्ति को बढ़ाने में मदद करता है।
     पलाश जड़ की छाल दर्दनिवारक, अर्श या बवासीर तथा व्रण या अल्सर में फायदेमंद होता है।
      पलाश का वानास्पतिक नाम ब्यूटिया मोनोस्पर्मा  होता है। टेसू के फूल का कुल : (फैबेसी) होता है। पलाश को अंग्रेजी में द फॉरेस्ट फ्लेम कहते हैं। लेकिन भिन्न-भिन्न भाषाओं में इसका नाम अलग है, जैसे-
     संस्कृत में  –पलाश, किंशुक, पर्ण, रक्तपुष्पक, क्षारश्रेष्ठ, वाततोय, ब्रह्मवृक्ष;
     हिंदी में -ढाक, पलाश, परास, टेसु;  
    इंग्लिश में -बास्टर्ड टीक
     पलाशो दीपनो वृषयः सरोषनो व्रणगुल्मजित .भगंसांधन करदोषय ग्रहनयाशरः कृमीन हरेत .
   कषायाः कुटुक स्तित्क्त स्निग्धो गुदाजरोगजीत.तत्पुष्पं स्वादु  पाके तू कटु तिक्तम कषायकम.(भाव प्रकाश )
    रासायनिक संगठन ---इसकी छालऔर गोंद में कैनोटांनिक एसिड तथा गैलिक एसिड ५०% ,पिच्छिल द्रव्य तथा क्षार २% होता हैं .बीजों में स्थिर तेल १८% होता हैं जिसे काइनो आयल कहते हैं .पत्र में ग्लूकोसाइड तथा पुष्प में एक पीत रंजक होता हैं .
    पलाश के स्वास्थ्यवर्द्धक गुणों के आधार पर आयुर्वेद में इसका प्रयोग किन-किन बीमारियों के लिए किया जाता है,
    मोतियाबिंद में
    उम्र के बढ़ने के साथ मोतियाबिंद के समस्या से सभी वयस्क परेशान होने लगते हैं। लेकिन पलाश का प्रयोग इस तरह से करने पर आँख की बीमारियों के कष्ट को कम किया जा सकता है। पलाश की ताजी जड़ों का अर्क निकालकर एक-एक बूँद आँखों में डालते रहने से मोतियाबिंद, रतौंधी इत्यादि सब प्रकार के आँख के रोगों से राहत मिलती है।
      नाक से खून बहने से दिलाये राहत
    आम तौर पर नाक से खून बहने के बहुत सारे कारण होते हैं, ज्यादा गर्मी, ज्यादा ठंड या किसी बीमारी के साइड इफेक्ट के तौर पर भी ऐसा होता है।रात भर 100 मिली ठंडे पानी में भीगे हुए 5-7 पलाश फूल को छानकर सुबह थोड़ी मिश्री मिलाकर पीने से नकसीर बंद हो जाती है।
   गलगंड या घेंघा में
     पलाश का औषधीय गुण घेंघा को ठीक करने में मदद करता है। पलाश के जड़ को घिसकर कान के नीचे लेप करने से गलगंड में लाभ होता है।
   भूख बढ़ाने में
     पलाश की ताजी जड़ का रस निकालकर अर्क की 4-5 बूँदें पान के पत्ते में रखकर खाने से भूख बढ़ती है।
    पेट दर्द से दिलाये राहत
    पलाश की छाल और शुंठी का काढ़ा या पलाश के पत्ते का काढ़ा बना लें। 30-40 मिली मात्रा में दिन में दो बार पिलाने से आध्मान (अफारा) तथा उदरशूल या पेट दर्द में आराम मिलता है।
   पेट में कीड़े को निकालने
   अक्सर बच्चे पेट में कीड़ा होने के कारण पेट दर्द से परेशान रहते हैं। पलाश का इस तरह से सेवन करने पर कीड़ा को मारने में मदद मिलती है।
    -एक चम्मच पलाश बीज चूर्ण को दिन में दो बार खाने से पेट के सब कीड़े मरकर बाहर आ जाते हैं।
     -पलाश के बीज, निशोथ, किरमानी अजवायन, कबीला तथा वायविडंग को समान मात्रा में मिलाकर 3 ग्राम की मात्रा में गुड़ के साथ देने से सब प्रकार के कृमि नष्ट हो जाती है।
    अतिसार या दस्त में
    अगर ज्यादा मसालेदार खाना, पैकेज़्ड फूड या बाहर का खाना खा लेने के कारण दस्त है कि रूकने का  नाम ही नहीं ले रहा तो पलाश का घरेलू उपाय बहुत काम आयेगा।
     1 चम्मच पलाश बीज के काढ़े में 1 चम्मच बकरी का दूध मिलाकर खाना खाने के बाद दिन में तीन बार सेवन करने से अतिसार में लाभ होता है। इस समय में बकरी का उबला हुआ ठंडा दूध और चावल ही लेना चाहिए।
      खूनी बवासीर
     अगर ज्यादा मसालेदार, तीखा खाने के आदि है तो पाइल्स के बीमारी होने की संभावना बढ़ जाती है और अगर इसको नजरअंदाज किया गया तो स्थिति और भी बदतर होकर बवासीर से खून निकलने लगता  है।  उसमें पलाश का घरेलू उपाय बहुत ही फायदेमंद साबित होता है।
   -1-2 ग्राम पलाश पञ्चाङ्ग की भस्म को गुनगुने घी के साथ पिलाने से रक्तार्श (खूनी बवासीर) में बहुत लाभ होता है। इसका कुछ दिन लगातार सेवन करने से मस्से सूख जाते हैं।
      पलाश के पत्रों में घी की छौंक लगाकर दही की मलाई के साथ सेवन करने से अर्श (बवासीर) में लाभ होता है।
    मूत्र संबंधी समस्या
     मूत्र संबंधी बीमारी में बहुत तरह की समस्याएं आती हैं, जैसे- मूत्र करते वक्त दर्द या जलन होना, मूत्र रुक-रुक कर आना, मूत्र कम होना आदि। पलाश इस बीमारी में बहुत ही लाभकारी साबित होता है।
   –पलाश के फूलों को उबालकर पीसकर सूखा कर पेडू पर बाँधने से मूत्रकृच्छ्र (मूत्र संबंधी समस्या) तथा सूजन में लाभकारी होता है।
   -20 ग्राम पलाश के पुष्पों को रात भर 200 मिली ठंडे पानी में भिगोकर सुबह थोड़ी मिश्री मिलाकर पिलाने से गुर्दे का दर्द तथा मूत्र के साथ रक्त का आना बंद हो जाता है।
    -पलाश की सूखी हुई कोपलें, गोंद, छाल और फूलों को मिलाकर चूर्ण बना लेना चाहिए। इस चूर्ण में समान मात्रा में मिश्री मिलाकर 2-4 ग्राम चूर्ण को प्रतिदिन दूध के साथ सुबह शाम सेवन करने से मूत्रकृच्छ्र (मूत्र त्याग में कठिनता) में लाभ होता है।
    मधुमेह या प्रमेह
     आजकल की भाग-दौड़ और तनाव भरी जिंदगी ऐसी हो गई है कि न खाने का नियम और न ही सोने  का। फल ये होता है कि लोग को मधुमेह या डायबिटीज की शिकार होते जा रहे हैं।
    –पलाश की कोंपलों को छाया में सुखाकर कूट-छानकर गुड़ मिलाकर, 9 ग्राम की मात्रा में सुबह सेवन करने से प्रमेह में लाभ होता है।
    -पलाश की जड़ों का रस निकालकर, उस रस में 3 दिन तक गेहूँ के दानों को भिगो दें। उसके बाद इन दानों को पीसकर हलवा बनाकर खाने से प्रमेह, शीघ्रपतन और कामेन्द्रियों का ढीला पड़ जाने उससे राहत दिलाने में मदद करता है।
    पलाश एवं कुसुम्भ के फूल तथा शैवाल को मिलाकर काढ़ा बनायें, ठंडा होने पर 10-20 मिली काढ़े में मिश्री मिलाकर पिलाने से पित्त प्रमेह में लाभ होता है।
     अंडकोष सूजन कम करे
    पलाश का औषधीय गुण अंडकोष के सूजन को कम करने में मदद करता है।
    –पलाश के फूलों की पुल्टिस बनाकर नाभि के नीचे बाँधने से मूत्राशय संबंधी रोग तथा अंडकोष में बाँधने से अंडकोष सूजन कम होता है।
    -पलाश की छाल को पीसकर 4 ग्राम की मात्रा में लेकर जल के साथ दिन में दो बार देने से अंडवृद्धि में लाभ होता है।
     गर्भनिरोधक
   पलाश का औषधीय गुण प्राकृतिक गर्भनिरोधक जैसा काम करता है। 10 ग्राम पलाश बीज, 20 ग्राम शहद और 10 ग्राम घी इन सबको घोटकर, इसमें रूई को भिगोकर बत्ती बनाकर त्री प्रंग से तीन घण्टे पहले योनि में रखने से गर्भधारण नही होता।
    जोड़ो का दर्द करे
     अक्सर उम्र बढ़ने के साथ जोड़ों में दर्द होने की परेशानी शुरू हो जाती है लेकिन पलाश का सेवन करने से इससे आराम मिलता है।
    -पलाश के बीजों को महीन पीसकर मधु के साथ मिलाकर दर्द वाले स्थान पर लेप करने से संधिवात या  अर्थराइटिस में लाभ होता है।
     -ढाक के पत्तों की पुल्टिस बाँधने से 3-5 ग्राम पलाश जड़ के छाल का चूर्ण बनाकर उसको दूध के साथ पीने से बंदगाँठ में लाभ होता है।
    हाथीपांव
     100 मिली पलाश के जड़ के रस में समान मात्रा में सफेद सरसों का तेल मिलाकर दो चम्मच सुबह-शाम पीने से श्लीपद रोग या हाथीपाँव  में लाभ होता है।
      घाव ठीक करने में
     अगर घाव सूख नहीं रहा है तो पलाश का इस तरह से प्रयोग करने पर जल्दी आराम मिलता है। घावों पर पलाश के गोंद का चूर्ण छिड़कने से जल्दी ठीक होता है।
     कुष्ठ
      कुष्ठ के घाव को सूखाने में पलाश मदद करता है।
     -पलाश बीज से बने तेल को लगाने से कुष्ठ में लाभ होता है।
     -दूध में उबाले हुए पलाश बीज, गंधक तथा चित्रक को सूखा कर, सूक्ष्म चूर्ण बनाकर, 2 ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन, 1 मास तक जल के साथ लेने से मण्डल कुष्ठ में अतिशय लाभ होता है।
    दाद
ढाक के बीजों  को नींबू के रस के साथ पीसकर लगाने से दाद और खुजली को ठीक करने में मदद मिलता है।
     मिर्गी
    पलाश की जड़ों को पीसकर 4-5 बूँद नाक में टपकाने से मिर्गी का दौरा बंद हो जाता है।
    बुखार के लक्षणों को करे कम
     अम्ल द्रव से पलाश-पत्तों को पीस कर लेप करने से दाह तथा जलन में लाभ होता है।
     सूजन कम करने में सहायक
     शरीर के किसी अंग में सूजन होने पर उसको कम करने में पलाश का औषधीय गुण मदद करता है।
     -ठंडे जल में पिसे हुए पलाश बीज का लेप करने से सूजन कम होता है।
      –पलाश के फूलों की पुल्टिस बनाकर बाँधने से सूजन कम जाता है।
      कामशक्ति बढ़ाने में
     आजकल की भाग-दौड़ और तनाव भरी जिंदगी ऐसी हो गई है कि न खाने का नियम और न ही सोने  का, जिसका सीधा असर कामशक्ति पर पड़ता है।
      –5-6 बूँद पलाश मूल अर्क को दिन में दो बार सेवन करने से अनैच्छिक वीर्यस्राव रुकता है और कामशक्ति प्रबल होती है।
      -2-4 बूँद पलाश बीज तेल को कामेन्द्रिय के ऊपर (सीवन सुपारी छोड़कर) मालिश करने से कुछ ही दिनों में सब प्रकार की नपुंसकता दूर होती है और प्रबल कामशक्ति जागृत होती है।
    बिच्छू के काटने पर
     पलाशबीज का रस दूध के साथ पीसकर बिच्छू ने जहां पर काटा है उस पर लेप करने से  दर्द के साथ विष का प्रभाव कम होता है।
      पलाश का उपयोगी भाग
    पलाश के छाल, पत्ता, फूल, बीज, गोंद एवं जड़ का प्रयोग औषधि के रुप में आयुर्वेद में किया जाता है।
  -2-3 ग्राम चूर्ण,
   -10-40 मिली काढ़े का सेवन कर सकते हैं।
    स्वरस-- १० से २० मिलीमीटर
   विशिष्ठ योग ---पलाशबीजादि  चूर्ण ,पलाशक्षारघृत
(लेखक- वाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन )
 

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