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नसों तक में दौड़ रही प्लास्टिक की धूल खून के साथ  -महासागरों की गहराइयों तक में पहुंचने लगे हैं प्लास्टिक के कण 

नसों तक में दौड़ रही प्लास्टिक की धूल खून के साथ  -महासागरों की गहराइयों तक में पहुंचने लगे हैं प्लास्टिक के कण 

लंदन । एक ताजा अध्ययन में जब यह जानने का प्रयास किया गया कि मानव ऊतकों में सूक्ष्म प्लास्टिक प्रदूषक कितने हैं तो जो नतीजे मिले तो वैज्ञानिकों हैरानी नहीं हुई।महासागरों की गहराइयों तक में प्लास्टिक के कण पहुंचने लगे हैं।यहां तक कि हममें से बहुत से लोगों नसों तक में प्लास्टिक की धूल खून के साथ दौड़ रही है। इस अध्ययन में खुलासा हुआ कि पृथ्वी में ऐसी कोई जगह नहीं है जो पॉलिमर कोहरे से मुक्त हो।इसमें ऊंचे पर्वतों से लेकर हमें सबसे आंतरिक अंग भी शामिल हैं।
हमारे खून में कितना सूक्ष्म प्लास्टिक है, यह जानकारी इस बारे में नई जागरूकता पैदा करती है कि प्लास्टिक का कचरा कितना बड़ा पारिस्थितिकी मुद्दा बनता जा रहा है।एम्स्टर्डम की यूनिवर्सिटी और द एम्सटर्डम यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर ने शोधकर्ताओं ने अज्ञात 22 स्वस्थ्य खून दानकर्ताओं ने खून के नमूनों का अध्ययन किया जिससे वे उनमें 700 नैनोमीटर से बड़े आम सिंथेटिक पॉलिमर्स के संकेतों की तलाश कर रहे थे.शोधकर्ताओं ने अपने जांच उपकरणों के संक्रमण रहित रखने की लंबी प्रक्रियाओं के बाद नमूनों में प्लास्टिक के कणों के रासायनिक विन्यास  और भार की पहचान के लिए दो अलग अलग पद्धतियों का उपयोग कर 17 नमूनों में प्लास्टिक के बहुत से नमूनों के प्रमाण उजागर किए।नमूनों में सटीक संयोजन की विभिन्नता थी।इन नमूनों में जो माइक्रोप्लास्टिक पाए गए उनमें पॉलीईथायलीन टैरेफ्थालेट भी शामिल था जो आमतौर पर कपड़ों से लेकर पीने की बोतलों में इस्तेमाल किया जाता है।इसके अलावा उनमें स्टायरीन के पॉलिमर भी पाए गए जो गाड़ियों के हिस्सों, कार्पेट, खाने के कंटेनर आदि में होते हैं।औसतन हर मिलीलीटर के खून में 1.6 माइक्रोग्राम का प्लास्टिक पदार्थ पाया गया जिसमें सबसे ज्यादा मात्रा 7 माइक्रोग्राम की थे।
शोधकर्ता जांच पद्धति की सीमाओं के कारण कणों के आकार का सटीक विवरण नहीं दे सके।लेकिन यह आसानी से माना जा सकता है कि 100 माइक्रोमीटर से बड़े कणों की तुलना में  विश्लेषण के 700 नौनोमीटर की सीमा के पास के छोटे कणों के लिए शरीर में प्रवेश पाना आसान था।इसके बावजूद भी अभी यह स्पष्ट रूप से नहीं बताया जा सका कि इसका हमारी सेहत के लिए क्या दूरगामी मतलब हो सकते हैं.एक तरफ हम यह नहीं जानते कि इन महीन प्लास्टिक कणों का हमारी कोशिकाओं पर क्या रासायनिक और भौतिक असर होता है, जानवरों पर हुए अध्ययन बताते हैं कि इसके गंभीर प्रभाव होता है लेकिन इससे सीधे तौर पर इंसानों की सेहत के लिए नतीजे नहीं निकाले जा सकते हैं।लेकिन समस्या बढ़ रही है यह साफ है।साल 2040 हमारे महासागरों में प्लास्टिक की मात्रा दो गुनी हो जाएगी।खारिज किए जूते स्टियरिंग व्हील, चॉकलेट रैपर, पैकेट आदि सभी धीरे धीरे हमारे खून में आने का रास्ता खोज लेंगे।
अगर यह ऐसी खुराक है जो जहर बनाती है तो संभव है कि हमें किसी बिंदु पर सीमा  पार कर जाएं जहां तुलनात्मक रूप से स्टायरीन और पेट के संकेत हम पर कुछ चेताने वाले असर दिखाना शुरू कर दें।ऐसा कोशिकाओं के विकास में हो सकता है।शोधकर्ताओं का कहना है की हम जानते हैं कि शिशु और तरुण बच्चे रासायनिक और कणों का समाना करने के लिहाज से कितने कमजोर हैं।जो कि चिंता की बात है। एक निष्कर्ष यह भी निकाला जा सकता है कि सिंथेटिक की दुनिया में बनने वाली धूल को हमारे फेफड़े, अंतड़ियां आदि पूरी तरह से नहीं छान पाते हैं।
 

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