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बच्चों को गर्मियों की छुट्टियां का आनंद उठाने दें   

बच्चों को गर्मियों की छुट्टियां का आनंद उठाने दें   

बच्चों की गर्मियों की की छुट्टियां शुरु हो गयी हैं। इनका उन्हें साल भर से इंतजार रहता है। इस दौरान अभिभावकों को चाहिये की बच्चों को खेलने और अपने अनुसार समय बिताने दें। छुट्टियों में बच्चों का समय प्रबंधन ऐसा रहे कि वे खूब आनंद उठा सकें, नई चीजें सीख सकें जिससे अभिभावकों और बच्चों के बीच मजबूत रिश्ता भी बनता 
वहीं कई बार अभिभावक इन छुट्टियों को लेकर संशय की स्थिति में रहते हैं। कुछ को डर होता है कि छुट्टियां बच्चों का अनुशासन खराब कर देती हैं तो कुछ को लगता है कि इस वक्त का जितना हो सके, बच्चे को पढ़ाने और सिखाने के लिए इस्तेमाल करें। ऐसे में वे कई बार बच्चों पर जरूरत से ज्यादा उम्मीदें लाद देते हैं और बच्चे छुट्टियों का आनंद नहीं ले पाते। दरअसल, इन दोनों अप्रोच के बीच तालमेल रखना जरूरी है, ताकि छुट्टियां बच्चों और अभिभावकों, दोनों के लिए मजेदार साबित हों।
अभिभावकों को समझना चाहिए कि छुट्टियां बच्चों के लिए रुटीन से ब्रेक हैं। ये छुट्टियां उन्हें फिर से तरोताजा करने और खराब मौसम की मार से बचाने के लिए होती हैं। पिछली क्लास और अगले सत्र के बीच का यह समय बच्चों के आराम का होता है, जबकि आमतौर पर अभिभावक सोचने लगते हैं कि छुट्टियों में कोर्स पूरा करा दें या ट्यूशन लगा दें। छुट्टियां वह समय है, जब 'बच्चा जो करना चाहता है, उस पर ध्यान दिया जाए। ध्यान रहे कि छुट्टियां बच्चे के लिए एक नई तरह की क्लासों का सेट न बन जाएं। छुट्टियों में बच्चों की पढ़ाई-लिखाई, खेल-कूद, यार-दोस्त, घूमने-फिरने और नई चीजें सीखने के बीच तालमेल बनाने की कोशिश करें।
टाइम-टेबल, हां या ना
इस बारे में विशेषज्ञों की अलग-अलग राय है। कुछ का मानना है कि छुट्टियों में टाइम-टेबल नहीं होना चाहिए, तो कुछ का मानना है कि टाइम-टेबल जरूर बनाएं, पर यह स्कूल के दिनों से अलग होगा और इसमें लचीलापन भी होना चाहिए। इसी तरह, अगर बच्चा कोई काम जल्दी निपटा लेता है या किसी में ज्यादा वक्त लगाता है तो उसी के मुताबिक अगले दिन के टाइम-टेबल में थोड़ा बदलाव करना चाहिए। टाइम-टेबल को पढ़ाई, खेल, जनरल नॉलेज और एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटी के बीच बांट सकते हैं। पूरे दिन में कम-से-कम एक-दो घंटे ऐसे जरूर हों, जिनमें बच्चा कुछ भी करने को फ्री हो। यह ऐसा टाइम होगा, जिसमें उसके लिए कुछ भी करने की मजबूरी न हो। यह समय  सबसे ज्यादा सिखाने वाला होता है। इसमें बच्चा छोटी-छोटी चीजों को गौर से देखने भर से काफी कुछ सीखता है, जैसे कि चीटियां, फूल-पत्ते, जानवर आदि से वह कई नई चीजें सीखता है। 9-10वीं या उससे बड़ी क्लास के बच्चे को इस वक्त का इस्तेमाल खुद के साथ बिताने के लिए करने दें यानी इस दौरान वह सोचे कि वह क्या करना चाहता है। इससे उनका मानसिक विकास होता है और आत्मविश्वास बढ़ता है। 
कितनी देर पढ़ें और क्या
छुट्टियों के दौरान दिन में तीन से चार घंटे काफी हैं पढ़ाई के लिए। इस दौरान उसे छुट्टियों का होमवर्क और अगले सेशन की पढ़ाई करने को प्रेरित कर सकते हैं लेकिन ध्यान रखें कि बच्चे को कोर्स पूरा करने के लिए दबाव न डालें। थोड़ा-बहुत कोर्स करने को कहें ताकि सत्र शुरू होने पर उसे चीजें आसानी से समझ आ जाएं। हॉलिडे होमवर्क को छोटे-छोटे हिस्सों में बांट लें। पूरी छुट्टियों के दौरान बांट दें कि रोजाना कितना-कितना करना है, वरना बच्चे को समझ नहीं आता कि कितना होमवर्क हो गया और कितना रह गया? प्रॉजेक्ट बनाने में उसकी मदद करें पर खुद कभी प्रॉजेक्ट न बनाएं, न ही होमवर्क करें खासकर छुट्टियां खत्म होते वक्त कई अभिभावक होमवर्क करने बैठ जाते हैं। इससे बच्चा आलसी हो जाएगा और अपने काम की अहमियत कभी नहीं समझेगा। ध्यान रखें कि छुट्टियां खत्म होने से कुछ दिन पहले होमवर्क जरूर खत्म हो जाए।
कोर्स के अलावा छुट्टियों में बच्चे के कॉमिक्स, किस्से-कहानियों की किताबें और मैगजीन आदि पढ़ने पर ज्यादा ध्यान दें क्योंकि स्कूल के दिनों में इनके लिए वक्त नहीं मिलता। रोजाना डेढ़-दो घंटे जरूर इन बुक्स के लिए रखें। कहानियों की किताबों से बच्चों के नैतिक मूल्य मजबूत होते हैं और ईक्यू (इमोशनल कोशेंट) भी बढ़ता है। आसपास कोई लाइब्रेरी है तो बच्चे को जॉइन करा दें।
ज्यादा वर्कशॉप न करायें 
आजकल समर-कैंप या वर्कशॉप जॉइन करने का रिवाज-सा चल पड़ा है। कई अभिभावक तो दो-दो वर्कशॉप में दाखिला दिला देते हैं या फिर तौर-तरीके सीखने तक के लिए भी वर्कशॉप में भेज देते हैं, जोकि वे खुद भी सिखा सकते हैं। यह गलत है। बच्चे के लिए एक वर्कशॉप काफी है। इसमें किसी खेल की कोचिंग, डांस, म्यूजिक, पेंटिंग, कुकिंग आदि सीख सकते हैं। यह भी पूरे दो महीने के लिए नहीं होनी चाहिए। हालांकि ये वर्कशॉप बच्चों को ऐसी चीजें सीखने में मददगार हो सकती हैं, जो वह स्कूल जाते हुए नहीं सीख पाता। बच्चे को नए दोस्त बनाने का मौका मिलता है और उसका विकास भी होता है, लेकिन वर्कशॉप में दाखिला कराते वक्त सिखानेवाले की प्रामाणिकता जांच लें। आजकल बहुत-से लोग बिना प्रॉपर ट्रेनिंग या काबलियत के ऐसी वर्कशॉप खोल लेते हैं। वर्कशॉप बच्चे की दिलचस्पी की हो और हो सके तो उसमें दाखिला दिलाएं, जिसमें उसका दोस्त भी साथ जाए। इससे वह ज्यादा इंजॉय कर पाएगा। शहर से बाहर लगनेवाले समर-कैंप में भेजने से पहले सिक्युरिटी की पूरी जानकारी हासिल कर लें। निश्चित होने के बाद ही बच्चे को ऐसे किसी कैंप में भेजें।
रुटीन में बदलाव
छुट्टियों में आमतौर पर बच्चे का सोने और उठने का वक्त बिल्कुल बदल जाता है। यह सही नहीं है। उठने में एक-डेढ़ घंटे की राहत देनी चाहिए, उससे ज्यादा नहीं वरना बच्चा बाद में रुटीन फॉलो नहीं करने में परेशानी करता है। हां, यह कोशिश जरूर करें कि वह दिन में एक घंटे सो ले ताकि उसे स्कूल के दिनों से ज्यादा नींद और आराम मिल सके। बच्चे का सुबह वॉक का रुटीन बना दें तो बेहतर होगा। इसके अलावा रात में डिनर साथ करने की आदत जरूर डालें। स्कूल के दिनों में जल्दी सोने की वजह से कई बार रात में एक साथ डिनर मुमकिन नहीं होता पर छुट्टियों में यह जरूर करें।
पर्यटन पर जाएं
अगर संभव है तो बच्चों को लेकर किसी पर्यटन स्थल पर भी लेकर जा सकते हैं, इससे वे नई बातें सीखेंगे। रेल या बस की यात्रा के दौरान बच्चे कई नई बातें सीखेंगे। वहीं दादा-दादी, नाना-नानी अगर दूर रहते हैं तो कुछ दिनों के लिए उन्हें अपने पास बुला लें। बच्चे के हमउम्र कजंस को बुला सकते हैं या बच्चे को कुछ दिनों के लिए उनके पास भेज सकते हैं। इस बात का ध्यान रखें कि बच्चे का अकेलापन किसी इंसान से दूर हो, किसी चीज से नहीं। 
 

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