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बच्चों की तुलना न करें 

बच्चों की तुलना न करें 

प्रतिस्पर्धा के इस दौर में सभी चाहते हैं कि उनके बच्चे सबसे आगे रहें पर ऐसा सबके साथ नहीं हो सकता। 
कई बार अभिभावक दूसरे बच्चों की प्रतिभा से प्रभावित होकर कभी-कभी अपने बच्चों की तुलना दूसरे बच्चों से कर बैठते हैं। उनको इसका भान नहीं होता कि उनके इस रवैये का प्रभाव आपके बेटी-बेटे के नाजुक मानस पटल पर कितना हानिकारक प्रभाव पड़ता है। वह हीनभावना का शिकार हो जाता है जिससे वह सारी जिंदगी उभर नहीं पाता।
पड़ोसी का बच्चा ज्यादा अंक ले आये तो अपने बच्चे को कम नहीं समझना चाहिए। अपने बच्चों को आगे बढऩे की प्रेरणा प्रोत्साहन जरूर दें लेकिन दूसरों से उनकी तुलना मत करें। हर व्यक्ति का आई क्यू, स्वभाव, रासायनिक एवं जैविक रचना अलग-अलग होती है। हर बच्चे का स्वभाव अलग होता है। दो व्यक्ति एक जैसे कभी नहीं हो सकते। सभी बच्चों का स्वभाव अलग होता है। बच्चों को समझ कर, उनकी प्रतिभा जिस क्षेत्र में है यह जानकर उसे उस क्षेत्र में मेहनत करने का प्रोत्साहन दें?
माता-पिता बच्चे के लिए भगवान से बढ़कर होते हैं। एक मां सौ शिक्षकों से बढ़कर होती है। जीवन का पहला संगीत मां की लोरी होती है। माता-पिता और बच्चों में पीढ़ी का अंतर तो होता ही है फिर भी समझदार मां-बाप को यथा समय इस अंतर को कम कर देना चाहिए। बच्चों से उनके जवान होने पर मित्रवत व्यवहार करें।
बच्चों के गुणों की प्रशंसा करें, उनकी कमियों को प्यार से उन्हें बताकर दूर करने का प्रयास करें। हर बच्चा प्रकृति का अनुपम प्रसाद है। माता-पिता और अध्यापकों का उसके व्यक्तित्व विकास में बहुत योगदान होता है। हर बच्चा अपना अलग स्वभाव रखता है। उसकी प्रतिभा पहचान कर उसे उसी रूप में ढालने का प्रयत्न करें। उसकी दूसरों के साथ तुलना मत करें। उसको डांट फटकार कर हतोत्साहित मत कर दें जिससे फिर वह जिंदगी में उठ ही न सके। इससे कई बार निराश हो कर बच्चे अवसाद का शिकार तक हो जाते हैं। यहां तक कि खुदकुशी तक कर लेते हैं, इसलिए हालत को समझकर ही उन्हें समझायें।
 

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