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(चिंतन-मनन) दौलत की चाह

(चिंतन-मनन) दौलत की चाह

संत जुनैद की एक झलक पाने और उनसे ज्ञान की बातें सुनने के लिए लोग बेकरार रहते थे। पर जुनैद दुनियावी चीजों से तटस्थ और निर्लिप्त रहते थे। वह खाने-पीने और अपने कपड़े से भी बेपरवाह रहते थे। वह हर समय घूमते रहते थे। जहां भी रात होती वह वहीं टिक जाते। एक बार वह एक बड़े शहर के बाहर रुके तो शहर के जाने-माने एक सेठ उनके दर्शन के लिए आ पहुंचे। वह अपने साथ ढेर सारी स्वर्ण मुद्राएं लेकर आए थे।  
उन्होंने उसकी थैली जुनैद के चरणों में रख दी और हाथ जोड़कर खड़े हो गए। जुनैद ने थैली पर नजर डाली, फिर मुस्कराते हुए पूछा-क्या इसके अलावा भी आपके पास और दौलत है? सेठ जी ने प्रसन्न होकर सोचा कि जुनैद को और भी धन चाहिए। सेठ ने कहा-मेरे पास तो इससे कई गुना धन-संपत्ति और है। सेठ ने पूछा-क्या आप और दौलत पाने की ख्वाहिश रखते हैं? सेठ ने कहा- हां, हां क्यों नहीं, अब इतने से क्या होता है। थोड़ी और दौलत मिल जाए तो जिंदगी बेहतर हो जाएगी।  
जुनैद ने कहा- तब तो ये दौलत भी आप ही रख लीजिए। इसकी असल जरूरत तो आपको ही है। आपको और धन-संपत्ति चाहिए। इतना आप मुझे ही दे देंगे तो आपका खजाना थोड़ा खाली हो जाएगा। जिसके पास सब कुछ हो लेकिन और पाने की चाह हो, उसके दान का भी कोई अर्थ नहीं है। यह सुनकर सेठ जी लज्जित हो गए। उन्होंने जुनैद से वादा किया कि वह अब और दौलत के पीछे नहीं भागेंगे  
 

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