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रूस को कूटनीतिक मोर्चे पर लगा तगड़ा झटका, फिनलैंड व स्वीडन ने लिया नाटो में जाने का निर्णय

रूस को कूटनीतिक मोर्चे पर लगा तगड़ा झटका, फिनलैंड व स्वीडन ने लिया नाटो में जाने का निर्णय

कीव । पूर्वी यूक्रेन में रूसी सेना को यूक्रेनी सैनिकों के कड़े प्रतिरोध के साथ ही मॉस्को को बीते सप्ताहांत कूटनीतिक मोर्चे पर भी तगड़ा झटका लगा है। रूस के अनेक आश्वासनों और धमकियों के बाद भी दो और यूरोपीय देशों ने उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) में शामिल होने की दिशा में कदम बढ़ा दिए हैं। फिनलैंड ने रविवार को नाटो में शामिल होने की योजना का एलान करते हुए कहा कि करीब तीन महीने पहले यूक्रेन पर रूस के युद्ध ने यूरोप का सुरक्षा परिदृश्य बदल दिया है। 
इसके कुछ घंटों बाद स्वीडन ने भी कहा कि वह आने वाले दिनों में नाटो की सदस्यता के लिए आवेदन दे सकता है।  कदम रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के लिए झटका माने जा रहे हैं, जिन्होंने शीतयुद्ध के बाद पूर्वी यूरोप में नाटो के विस्तार को खतरा करार देते हुए यूक्रेन पर आक्रमण कर दिया था। वहीं, नाटो कहना है कि यह पूरी तरह से रक्षात्मक गठबंधन है।
नाटो के महासचिव जेन्स स्टोल्टेनबर्ग ने बर्लिन में शीर्ष राजनयिकों से मुलाकात करते हुए कहा कि युद्ध वैसा नहीं चल रहा है, जैसा कि मॉस्को ने योजना बनाई थी। यूक्रेन इस युद्ध को जीत सकता है। जानकारों के मुताबिक, रूस ने पूर्वी यूक्रेन में नुकसान जरूर पहुंचाया है, लेकिन वह क्षेत्र में बढ़त बनाने में नाकाम रहा है। रूस और यूक्रेन के लड़ाके यूक्रेन के पूर्वी औद्योगिक क्षेत्र डोनबास में एक-एक गांव के लिए लड़ रहे हैं। यूक्रेन की सेना ने कहा कि उसने डोनबास के दोनेत्स्क क्षेत्र में रूस के एक आक्रमण को रोक दिया है। 
वहीं, यूक्रेन ने पूर्वी लुहांस्क क्षेत्र में उन दो रेलवे पुलों को भी ध्वस्त कर दिया है, जिसे रूस की सेना ने अपने कब्जे में लिया था। साथ ही यूक्रेन की सेना ने पूर्वी लिजियम शहर के पास रूस की बढ़त को रोक दिया है। यूक्रेन के खारकीव क्षेत्र के गवर्नर ओलेह सिनेगुबोव ने यह जानकारी दी है। यूक्रेन के दावों की स्वतंत्र रूप से पुष्टि नहीं की जा सकी है, लेकिन पश्चिमी देशों के अधिकारियों ने भी रूस के लिए हालात चिंताजनक होने की ओर इशारा किया है। 
ब्रिटेन के रक्षा मंत्रालय ने अपने दैनिक खुफिया अपडेट में बताया है कि रूसी सेना फरवरी के अंत में यूक्रेन में युद्ध लड़ने के लिए तय युद्धक क्षमता का एक-तिहाई हिस्सा गंवा चुकी है और वह किसी भी क्षेत्र में खास बढ़त बनाने में नाकाम रही है।
 

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