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गुरू कौन?   

गुरू कौन?   


गुरू कौन? बहुत अनमोल प्रश्न है। उत्तर बहुमूल्य है इसलिए विस्तार आवश्यक है। जब मानव योनी में बच्चा गर्भ में आता है तो उसके सभी संबंध तैयार रहते है जैसे माता, पिता, चाचा, मामा, दादा, दादी एवं और भी बहुत सारे, किंतु गुरु?
गुरु जन्म से नही मिलते। गुरु मिलते हैं पूर्वजन्मों के प्रताप से। गुरु मिलते है,जीवन के सात्विक विचारों से, गुरु मिलते है शुद्ध कर्मो से। गुरु सिर्फ प्रवचनकार नहीं होते, वे संपूर्ण समाज को दिशा देते है, संपूर्ण संप्रदाय का मार्गदर्षन कर उन्नति की राह प्रदान करते है। ‘ गुरु प्रताप ’ देखते ही बनता है। 
प्रत्येक धर्म में गुरुओं का अति विशिष्ठ स्थान है, उन्हें देवतुल्य माना जाता है। उन्होंने धर्म की उचित व्याख्या कर उसके अनुयायियों को अनुकूल मार्गदर्षन कर कभी न समाप्त होने वाले अदभूत व आलोकिक संस्कार प्रदान किए। हजारों वर्षो के धर्म इतिहास व पुराणों में प्रमुख रुप से गुरुओं का उल्लेख पढ़ने में आता है फिर वो गुरु बृहस्पति हो या गुरु शुक्राचार्य या गुरु द्रोणाचार्य और यह भी सत्य है कि गुरु आज्ञा का पालन नहीं करने पर अपयश भी झेलना पड़ता है, फिर वो देवताओं के राजा इंद्र ही क्यों न हो। 
गुरु गोविंदसिंह जी ने सिख संप्रदाय के गुरु बनकर संपूर्ण सिख समाज को गौरवपूर्ण प्रतिष्ठा प्रदान की। श्री जिनदत्तसूरी जी, श्री जिनकुशलसूरी जी एवं श्री हीरविजयसूरी जी ने जैन धर्मविलंबियों को गुरु ज्ञान प्रदानकर सात्विक जीवन का ज्ञान कराया, साईबाबा के गुरुत्व ने सभी धर्मो को समानता का अहसास कराया, तात्पर्य यह है कि हजारों वर्षो से और आने वाले हजारों वर्षो तक गुरुओं का प्रताप अनमोल ही बना रहेगा। 
आपने ऊपर के शब्दों में गुरु की महिमा को तो समझा किंतु आज के समाज में, आज के जीवन में गुरु कौन? मूल प्रश्न का उत्तर ढूंढना अभी बाकी है। आप जिन्हें गुरु मानते है क्या वो वाकई में गुरु कहलाने की योग्यताओं को रखते है? स्वयं के गुरु का आकलन आप नहीं कर सकते क्योकि आप मानव योनि का साधन मात्र हैं किंतु स्वविवेक से, अपनी मानसिक शक्ति से, अपने खुले नेत्रों से इतना तो अवश्य ही देख सकते है कि आपके द्वारा ‘ गुरु ’ की पूजा, उनके प्रति आपका मान-सम्मान, आपकी श्रद्धा आपको उनके कितना समीप ले जा पाता है?
क्या वस्त्रों का रंग बदल लेने से या फिर पुराणों की कथा को सुना देने से या फिर थोड़ा सा भक्ति संगीत कर लेने से व्यक्ति गुरु हो सकता है ? शास्त्रानुसार भी जन्म, विवाह, मृत्यु आदि संस्कार कराने वाले पंडित जी कहलाते है। पौराणिक कथाओं को सुनाने वाले ‘कथा वाचक’ कहलाते है। अच्छी और ज्ञान की बातों को मधुर वाणी में सार्वजनिक रुप से कहने वाले प्रवचनकार कहलाते हैं, मंदिर में भगवान का श्रंगार करने, पूजा, आरती करने वाले पुजारी कहे जाते है तो मूल प्रश्न फिर वहीं है, कि आपके लिए, आपके जीवन के व्यक्तिगत ‘ गुरु ’ कौन? क्या जिसे आप गुरु मानते है वही गुरु है? चलिए, देखते है कि गुरु में अतिविशिष्ट गुण कौन-कौन से होने चाहिए?
1 व्यक्तिगत स्तर पर उचित मार्गदर्षन।
2 आध्यात्मिक ज्ञान का विकास करना। 
3 समय-समय पर सही गलत के बारे में मार्गदर्षन करना। 
4 सुखःदुख में आपका सहभागी बनकर आपको स्थिती- परिस्थितियों में ढालना अथवा उनसे निकलने/सुलझने के उपाय बताना। 
5 धार्मिक एवं आध्यात्मिक स्तर पर गुरु मंत्र अथवा आवश्यकतानुसार मंत्रों का ज्ञान देकर आपके व्यक्तित्व का उचित विकास कर कीर्ति व मान सम्मान की रक्शा करना।
शिष्य को गुरु का स्नेह, कृपा व मार्ग दर्षन प्राप्त करना चाहिए तभी गुरु विपरित परिस्थितियों में भी शिष्य का पतन नहीं होने देंगे। 
गुरु का ज्ञान असीमित होता है जिसे प्रकट करने की आवश्यकता नहीं होती, गुरु का आशिर्वाद नेत्रों से होता है जो उनके मनोभावों में झलकता है। श्रद्धा, विश्वास आपको रखना है, पहचान आपको करना है फिर भाग्य में क्षमता होगी और ईश्वर में आपकी सच्ची आस्था होगी तो गुरु अवश्य मिलेंगे और यदि आपको गुरु मिलते है तो आप भाग्यशाली होंगे लेकिन आवश्यक यह भी है कि आप गुरु ज्ञान का अर्जन करें, गुरु आज्ञा का पालन करे, उनके कड़वे बोल का भी मर्म समझे, सुख हो या दुख उनकी सलाह का मान रखें। 
उनके स्नेह का आनंद ले। गुरु की अवहेलना कभी न करे अन्यथा जीवन में कही न कही, कभी न कभी उसका दंड अवश्य ही भुगतना पड़ता है। 
सार है, गुरु वो जो आपके जीवन को सुखमय बनाने में योगदान दें, वो नहीं जो घर आकर भोग प्राप्त कर, अथवा चंद उपदेश देकर चले जाऐं। 
 

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