YUV News Logo
YuvNews
Open in the YuvNews app
OPEN

फ़्लैश न्यूज़

आर्टिकल

(चिंतन-मनन) चिंतन सही हो 

(चिंतन-मनन) चिंतन सही हो 

एक व्यक्ति ने अपने मित्र से साठ रूपए उधार लिए। कुछ दिनों बाद वह आया और बीस रूपए देकर बोला, 'सारे रूपए आ गए?' मित्र ने कहा, 'साठ दिए थे और तुम बीस लौटा रहे हो, तो अभी चालीस रूपए बाकी रहेंगे। तीस और तीस साठ होते हैं।' उसने कहा, 'नहीं, दस और दस साठ होते हैं। मैंने साठ रूपए लौटा दिए हैं।' मित्र ने कहा, 'भोले आदमी! दस और दस बीस ही होते हैं। तीस और तीस साठ होते हैं।' उसने कहा, 'मैं इस बात को नहीं मानता। मैं तो यही मानता हूं कि दस और दस साठ होते हैं। मेरी मान्यता मेरे पास और तुम्हारी मान्यता तुम्हारे पास।'  
ऍसे मानने वाले को विधाता भी नहीं समझा सकता। गणित का नियम -दस और दस बीस होते हैं। कोई व्यक्ति इस गणित के नियम को जानने की बात छोड़कर मानने की बात को ही पकड़ बैठता है तो उसका कोई इलाज नहीं है। हम मानने की बात को छोड़ दें और जानें। सदा जानने का प्रयत्न करें। सदा जानें। हम विशिष्ट उपलब्धियों के लिए प्रयत्न करें। वे प्राप्त हों तो ठीक है, न हों तो कोई बात नहीं। पुरूषार्थ को सही दिशा में लगाएं। पुरूषार्थ निरंतर हमारा साथ दे। हम प्रयत्न को बंद न करें।  
पुरूषार्थ को साथ लेकर चलें। मन और शरीर को विशेष आदेश दें। मन जो भटकता रहता है, अनेक प्रवृत्तियों में संलग्न रहता है, बहुत अधिक सक्रिय और गतिशील है, उस पर हम कुछ नियंत्रण करें। मन की सक्रियता को कम करें।  
 

Related Posts