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नैनों के दोहे 

नैनों के दोहे 

नैनों से जग देखते,नैन सदा वरदान।
नैनों में संवेदना,नैनों में अभिमान ।।

नैन अगर करुणा भरे,तब नैनों में नीर।
नैनों में अभिव्यक्त हो,औरों के हित पीर।।

नैनों में गंभीरता,और कुटिलता ख़ूब।
नैनों में उगती सतत, पावन-नेहिल दूब।।

नैन नैन से नित करें,चुपके से संवाद।
उर हो जाते उस घड़ी,सचमुच में आबाद।।

नैन सदा सच बोलते,बोलें सदाअसत्य।
नैनों के आवेग में,छिपा एक आदित्य।।

नैनों में रिश्ता दिखे,नैनों में अहसास।
नैनों में ही आस हो,नैनों में विश्वास।।

नैनों में संवेदना,नैनों में अनुबंध।
नैन नैन में नित बनें,नित नूतन संबंध।।

नैनों से ही क्रूरता,नैनों से अनुराग।
नैनों से अपनत्व के,गुंजित होते राग।।

नैन कभी जब दर्द के,गाते हैं मधु गीत।
अश्रु झलकते ,तब रचें,शोक भरा संगीत।।

नैन गढ़ें नित मान को,नैनों मेंअपमान ।
 की भाषा पढ़े,वह नर बहुत सुजान ।।

नैनों में छिपकर रहें,जाने कितने  राज़ ।
नैन अगर हैं ज्योति बिन,तो नर बिन सुर,साज़।।

नैनों में हो दिव्यता,दिखते तीनों काल।
नैन अगर देखें मलिन,जीवन बने बवाल।।

नैन अगर नैतिक रहें,तो मिलता उत्कर्ष।
नैनों में यदि नेह हो,तो जीवन में  हर्ष ।।
(लेखक- प्रो.शरद नारायण खरे )
 

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