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दान से होता है भाग्योदय  

दान से होता है भाग्योदय  

भारतीय संस्कृति में दान का इतिहास काफी पुराना है। दान करने से न केवल आत्मसंतुष्टि व किसी जरूरतमंद की आवश्यकता की पूरी होती है, अपितु आपके जीवन से अशुभता भी घटने लगती है। जानिए कैसे दें दान क्या है इसकी विधि व महत्त्व।
सुखमय जीवन व्यतीत करने के लिए हर मनुष्य प्रयत्नशील रहता है। ऐसे में वह व्यवसाय, नौकरी आदि करता है। लेकिन जब इससे भी उसकी आकांक्षाओं की पूर्ति नहीं हो पाती तो वह अन्य उपायों को अपनाता है। इसका कारण यह है कि सुख-समृद्धि से ही व्यक्ति की पहचान होती है और समाज में मान-सम्मान मिलता है। सुख-समृद्धि प्राप्त करने के लिए दान का विशेष महत्त्व है। दान से जहां दूसरों का हित साधन होता है, वहीं स्वयं का भी भाग्योदय हो जाता है। यदि आप खुशहाल जिंदगी जीने के इच्छुक हैं तो दान करने के निम्नलिखित उपायों को अपना सकते हैं -
शिवरात्रि व्रत वाले दिन लाल धागे में पिरोए पंचमुखी रुद्राक्ष की माला शिव मंदिर में दान करने से शिव जी प्रसन्न होते हैं। इससे व्यक्ति सदैव खुशहाल रहता है।
प्रात:काल स्नान आदि करने के पश्चात् किसी पंडित से मस्तक पर चंदन का तिलक कराएं और कुछ धन दान में देकर अपने काम-धंधे में लगें। इससे भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है और समृद्धि बढ़ती है।
किसी शुभ दिन प्रात:काल बारह अंगुल की पलाश की लकड़ी ले आएं। फिर किसी विद्वान पंडित को बुलाकर उसका शुद्धिकरण कराएं और पूजादि कराकर उसे घर में कहीं ब्राह्मïण के हाथों गड़वा दें। इसके बाद पंडित को मीठा भोजन कराकर एवं कुछ दान-दक्षिणा देकर विदा करें। इसके प्रभाव से घर में सुख-समृद्धि का वातावरण बना रहता है।
यदि घर से निकलते ही मार्ग में कोई सफाई कर्मचारी सफाई करता दिखाई दे जाए, तो उसे कुछ दान-दक्षिणा अवश्य दें। इससे परिवार में सुख-समृद्धि बढ़ती है। अपने भोजन में से कुछ भाग पहले निकाल लें तथा भोजन के पश्चात् उसे गाय, भैंस आदि को दे दें। इस उपाय से भी सुख-समृद्धि बनी रहती है।
एक कटोरी में जल लेकर उसमें गुलाब का पुष्प, कुमकुम एवं थोड़े से चावल डालकर रात को घर में रखें और सुबह स्नान आदि से निवृत्त होकर उसे किसी मंदिर के पुजारी को दान कर आएं। दक्षिणा के रूप में पांच-दस रुपए भी दें। इस क्रिया से घर में सुख-समृद्धि बढ़ती है।
यदि प्रात:काल दुकान आदि पर जाते समय रास्ते में कोई ब्राह्मïण, भिखारी या हिजड़ा दिखाई दे, तो उसे कुछ दान अवश्य दें। इससे दुकान का कारोबार बढ़ता है और घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है।
गुरुवार और शनिवार को गरीबों को कुछ दान करके पीपल के वृक्ष में जल चढ़ाएं। इससे भी परिवार में सुख-समृद्धि की वृद्धि होती है।
यदि गुरुवार को दुकान आदि में कोई फकीर लोबान की धूनी देने आए तो उसे कुछ दान-दक्षिणा देने से सुख, शांति और समृद्धि का आगमन होता है।
शनिवार के दिन विधारा की जड़ को कपड़े में सिलकर गले अथवा दाएं बाजू पर बांधें और छोटा सा निर्दोष नीलम रत्न दान करें। शनि के कारण उत्पन्न कष्ट दूर होकर सुख-समृद्धि प्राप्त होगी।
किसी शुभ समय में बछड़े सहित गाय का दान गौशाला में करें। इससे सुख-समृद्धि तथा मान-सम्मान की वृद्धि होती है।
घर में किसी बच्चे के जन्मदिन अथवा किसी अन्य उत्सव पर किसी आश्रम में जाकर कुछ दान करने से व्यक्ति सदैव खुशहाल रहता है।
प्रात:काल एक सूखे नारियल पर काला सूती धागा लपेटकर पूजा स्थान पर रख दें। सायंकाल उसे किसी बर्तन में डालकर धागे सहित जला दें। दूसरे दिन उसकी भस्म एक कागज में रखकर किसी वृक्ष की जड़ में डाल आएं। यह क्रिया नित्य आठ दिन करें। नौवें दिन पानी वाला नारियल लाएं और उस पर कलावा लपेट दें। संध्या समय उस नारियल के साथ थोड़ा सा मिष्ठान और ग्यारह रुपए रखकर किसी ब्राह्मण को दान कर दें। इससे घर में खुशहाली आ जाएगी और सुख-समृद्धि का वातावरण व्याप्त हो जाएगा।
किसी भी दिन सूर्यास्त के समय एक सिला हुआ कुर्ता-पायजामा, एक पानी वाला नारियल, पंचमेल मिठाई, एक कच्चे दूध की थैली तथा एक शहद की शीशी ब्राह्मण को दान कर दें। फिर उसे कुछ रुपए देकर उससे थोड़ा दूध और शहद ले लें। फिर दूध और शहद को मिलाकर उसके छींटे घर में चारों ओर दें तथा पात्र को किसी चौराहे पर रख आएं। इससे ग्रहों का कुप्रभाव नष्ट होकर भौतिक सुखों की प्राप्ति तथा वृद्धि होती है।
नित्य प्रात:काल अपने भोजन में से थोड़ा सा भाग निकालकर कौओं को देने से घर में सुख-शांति बनी रहती है।
सात गोमती चक्र और काली हल्दी को पीले कपड़े में बांधकर किसी धर्म स्थान पर देने से मनुष्य खुशहाल हो जाता है।
रात्रिकाल स्नान आदि करके अपने सामने चौकी पर एक लाल वस्त्र बिछाएं। फिर उस पर पीतल का कलश रखें। कलश पर शुद्ध केसर से स्वस्तिक का चिह्न बनाकर उसमें जल भर दें। इसके पश्चात् उसमें चावल के कुछ दाने, दूर्वा और एक रुपया रख दें। तत्पश्चात् पीतल की छोटी सी प्लेट को चावलों से भरकर कलश के ऊपर रख दें। उसके ऊपर श्रीयंत्र की स्थापना करें। तदनंतर उसके निकट घी का चौमुखा दीपक जलाकर उसका कुमकुम और अक्षत से पूजन करें। इसके बाद दस मिनट तक भगवती लक्ष्मी का ध्यान करें। प्रात:काल ब्राह्मण को बुलाकर श्रीयंत्र का पूजन करवाकर, यंत्र को पूजा ग्रह में स्थापित करें तथा कलश आदि ब्राह्मïण को कुछ दक्षिणा सहित दान कर दें। 
 

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