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(चिंतन-मनन) सच्चा मित्र संजीवनी की तरह 

(चिंतन-मनन) सच्चा मित्र संजीवनी की तरह 

हम सभी के परिचित और दोस्त होते हैं। भले ही बचपन के, स्कूल, कॉलेज, ऑफिस या आस-पास कॉलोनी में रहने वाले हों, मित्र तो सभी के होते हैं। सच्चा मित्र बनना और बनाना हर इंसान की इच्छा होती है। लेकिन, सच्चे मित्र बहुत कम मिल पाते हैं। ऐसा मित्र, जिस पर हम भरोसा कर सकें, जिसके साथ अपनी हर बाते शेयर कर सकें। धर्मशास्त्रों  में सच्चा मित्र उसे कहा गया है, जो सुख-दुख में साथ दे। ऐसे दोस्त से कभी भी डर नहीं लगता। ये सही रास्ते पर चलने में हमारे मददगार होते हैं। लेकिन, ऐसा दोस्त कौन है? क्या वह जो सिर्फ परिचित है? सच्ची दोस्ती प्रेम, विश्वास व भरोसा, एक-दूसरे का ख्याल रखने और चिंताओं पर ही आधारित होती है। क्या, कभी इस प्रश्न का उत्तर आपने खुद से पूछा है?  
प्रिय शब्दों से मित्रों की संख्या बढ़ती है और मधुर वाणी से मैत्रीपूर्ण व्यवहार। हमारे परिचित अनेक हों, किंतु परामर्शदाता ईश्वर एक ही है। ईश्वर ही सच्चा दोस्त है, जो जीवन के हर पल में हमारी परछाई बनकर साथ रहता है। उस पर अपनी आंखें बंद कर, विश्वास व भरोसा करते हैं। जब सुखी या दुखी होते हैं, ईश्वर से प्रार्थना करते हैं और प्रार्थना के रूप में उससे बातें करते हैं। जीवन की हर बात उससे साझा करते हैं और फिर खुद को हल्का महसूस करते हैं। किसी भी कार्य की शुरुआत हम ईश्वर से आशीर्वाद लेकर ही करते हुए कहते हैं-'हे मेरे मालिक, मुझ पर अपनी छत्र-छाया बनाए रख, मेरा मार्गदर्शन कर और मुझे सफलता प्रदान कर।'  
कोई मित्र अवसरवादी होता है, वह विपत्ति में साथ नहीं देगा। कोई मित्र शत्रु बन जाता है और अलगाव का दोष भी हमें ही देता है। कोई मित्र हमारे यहां खाता-पीता है, किंतु विपत्ति के वक्ति दिखाई नहीं देता। समृद्धि के दिनों में वह हमारा अंतरंग बन कर रौब जमाता है, किंतु दुर्दिन आते ही शत्रु बनकर मुंह फेर लेता है। परीक्षा लेने के बाद किसी को मित्र बना लो, लेकिन उस पर तुरंत विश्वास मत करो। अपमान, अहंकार और विश्वासघात के कारण मित्रता टूट जाती है। कभी ऐसा भी होता है, जिस दोस्त पर हम सबसे ज्यादा विश्वास व भरोसा करते हैं, वही विश्वासघात करता है और हृदय पर चोट लगने पर मित्रता टूट जाती है।  
अगर, हम संकट और दरिद्रता में मित्र का साथ दें तो उसकी समृद्धि और विरासत के साझेदार बन सकते हैं। सच्चा दोस्त जीवन में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। उससे घर-परिवार व समाज में पहचान बनती है। सच्चा मित्र प्रबल सहायक है। जिसे मिल जाता है, समझो उसे खजाना मिल गया। ऐसे मित्र की कीमत धन से नहीं चुकाई जा सकती। सच्चा मित्र असल में संजीवनी है। इंसान जैसा है, उसका मित्र भी वैसा ही होगा। 
 

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