
केंद्र सरकार ने एक न्यायाधिकरण की स्थापना की है। जो कि इस बात का फैसला करेगा कि खालिस्तान समर्थक समूह ‘‘सिख्स फॉर जस्टिस’’पर प्रतिबंध लगाने के लिए पर्याप्त कारण हैं या नहीं। पिछले महीने इस संगठन को गैर-कानूनी घोषित किया गया था। प्रतिबंध लगाते समय गृह मंत्रालय ने कहा था कि समूह का प्राथमिक उद्देश्य पंजाब में एक ‘‘स्वतंत्र और संप्रभु देश की स्थापना करना है और यह खुले आम खालिस्तान के विचार का समर्थन करता है तथा इस प्रक्रिया में, भारत की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता को चुनौती देता है। गृह मंत्रालय द्वारा एक अधिसूचना के अनुसार गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) कानून 1967 की धारा 5 की उप-धारा (1) द्वारा प्रदत्त शक्तियों के तहत केंद्र सरकार गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) न्यायाधिकरण का गठन करती है। इसमें दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति डीएन पटेल को प्रमुख बनाया गया है। इस तरह के न्यायाधिकरण का गठन गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) कानून के तहत किया जाता है ताकि प्रतिबंधित इकाई को अपना पक्ष रखने के लिए एक मौका दिया जा सके। अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन आदि देशों में विदेशी राष्ट्रीयता वाले कुछ कट्टरपंथी सिखों द्वारा संचालित इस संगठन को गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) कानून 1967 की धारा 3 (1) के प्रावधानों के तहत गैरकानूनी घोषित किया गया था।