दूसरे विश्वयुद्ध के बाद यूथ लीडरशिप को बढ़ावा देने के उद्देश्य से 1948 में यूरोप में बनी आईसेक ने सात साल पहले जोधपुर में कदम रखा। आज शहर में इसके 100 वॉलंटियर्स हैं। इनकमिंग ग्लोबल टैलेंट प्रोजेक्ट के तहत विदेशों से एक्सपट्र्स जोधपुर आकर यहां के बच्चों को इंग्लिश स्पीकिंग और कॉम्यूनिकेशन स्किल्स की ट्रेनिंग दे रहे हैं तो आउटगोइंग ग्लोबल वॉलंटियर प्रोग्राम भी चलाता है जिसके तहत स्थानीय युवाओं को विदेशों में इंटर्नशिप करने का मौका मिलता है। जोधपुर से अभी तक 70 से ज्यादा युवा यह इंटर्नशिप कर चुके हैं। आईसेक जोधपुर प्रेजिडेंट कौस्तुभ गुप्ता और वाइस प्रेजिडेंट अमन मालवीय ने बताया कि इंटर्नशिप में उन्हें दूसरे देशों में रिफ्यूजी कैंप्स में पढ़ाने का मौका मिलता है तो मल्टीनेशनल कंपनीज के साथ जुड़ कर मार्केटिंग, बिजनेस डेवलपमेंट, हॉस्पिटेलिटी सेक्टर में काम करने का अनुभव भी होता है। इस प्रोजेक्ट में स्कूल ग्रेजुएट होने के बाद एप्लाई किया जा सकता है यानि कम उम्र में ही वे बहुत कुछ एक्स्प्लोर कर सकते हैं। इसी प्रोजेक्ट के तहत इजिप्त में मार्केटिंग सीख कर आए लक्ष्य खन्ना आज मार्केटिंग में अपना स्टार्टअप चला रहे हैं। 2016 में जोधपुर के तीन युवाओं ने रॉबिनहुड आर्मी शुरू की और इससे 900 यूथ जुड़े हैं। गरीब और जरूरतमंदों को खाना मुहैया करवाने के साथ ही ये युवा कच्ची बस्तियों में रहने वाले बच्चों को पढ़ाकर स्कूल में भर्ती करवा रहे हैं। अब तक 320 बच्चों को स्कूल में भर्ती कराया जा चुका है। शहर में पांच जगह पर आरएचसी एकेडमी बनाई है जहां रोजाना वॉलंटियर्स बच्चों को पढ़ाते हैं। आखलिया चौराहा, भास्कर नगर, एम्स, बनाड़ और महामंदिर की इन एकेडमीज में पढऩे वाले बच्चे पहले अपना नाम भी लिखना नहीं जानते थे लेकिन इन रॉबिन्स ने इन्हें पढ़ाकर सरकारी स्कूल में दाखिला करवाया ताकि ये आगे पढ़ाई कर सकें। ये दाखिले के बाद भी बच्चों से मिलते रहते हैं ताकि वे स्कूल ना छोड़ें और अपनी पढ़ाई पूरी करें। रॉबिन्स ही फंड इकट्?ठा कर बच्चों को स्टेशनरी का सामान भी दे रहे हैं। एकेडमी में पढ़ाने वाले कुछ युवा जॉब में हैं तो कुछ खुद अभी स्टूडेंट हैं। एकेडमी से जुड़ी टीना बताती हैं कि उन्होंने इन बच्चों में पढऩे की ललक देखी है, बस सहायता और सही दिशा की जरूरत है। स्कूलों में दाखिले के बाद ये बच्चे पढ़ाई ही नहीं स्पोट्र्स में भी बेहतरीन प्रदर्शन कर रहे हैं। क्या आप जानते हैं कि हिस्ट्री के पीरियड में हड़प्पा सभ्यता को पढ़ते हुए आप वहां की सैर कर उसे महसूस कर सकते हैं या साइंस के पीरियड में क्लासरूम में बैठे ही मार्स के सरफेस को करीब से देख सकते हैं। कल्पना से भी परे की ये बातें अब हकीकत में संभव है। जी हां, वर्चुअल रिएलिटी और ऑगमेंटेड रिएलिटी के जरिए। इंजीनियरिंग पोस्ट ग्रेजुएट विद्या चौधरी ने 2018 में एविडिया लैब की शुरूआत की जो शिक्षा के क्षेत्र में इन्हीं लेटेस्ट टैक्नोलॉजी के जरिए लर्निंग एक्सपीरियंस में नयापन लाने की कोशिश कर रही हैं। यह लैब साइंस के फिजिटल यानि फिजिकल प्लस डिजिटल प्रोडक्ट्स डेवलप करती है जो बोरिंग टॉपिक को भी इंटरेक्टिव बना कर इंटरेस्टिंग बना देते हैं। इन्हीं टैक्नोलॉजी से प्री स्कूल बच्चों के लिए डेवलप किया गया एवीआर मैजिकपीडिया ऐसा प्रोडक्ट है जो बच्चों में लॉजिकल, क्रिएटिव और क्रिटिकल थिंकिंग जैसी 20 तरह की अलग-अलग स्किल्स डेवलप कर रही है। विद्या ने बताया कि वे अपने नॉलेज को शिक्षा के क्षेत्र में कुछ नयापन लाना चाहती थीं और इसी आइडिया पर काम करने के लिए उन्होंने अपनी पीएचडी तक ड्राप कर दी थी और एविडिया की शुरूआत की।