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जा कि रहीं भावना जेसी , वैसे उसके परिणाम - आचार्य श्री आरजव सागर महाराज

जा कि रहीं भावना जेसी , वैसे उसके परिणाम - आचार्य श्री आरजव सागर महाराज

क्या आप चहाते हैं कि मेरा जन्म सुधर जाए, दभविष्य उज्जवल हो जाए ,संसार चक्र से छुटकारा मिल जाए, तब इन सब का तरीका क्या है इसके लिए सदभावना का होना जरूरी है। शुभ भावना प्राप्त करने का तरीका धर्म की शरण है। अशोका गार्डन जैन मंदिर में चल रहे ससंध चतुर्मास में आचार्य श्री आरजव सागर महाराज ने व्यक्त किये।
महाराज जी ने बात को स्पष्ट करते हुए कहा की जैसी जिसकी भावना होती है उसे वेसे ही अच्छे बुरे परिणाम मिलते हैं भावनाओं से ही संसार कि वृद्धि होती है और शुभ भावना से मोक्ष तक हासिल हो जाता है। भावना ही आदमी को इंसान और शैतान वना देती है। संसार में यदि आज कोइ दुख का कारण है तो वह शुभ भावनाओं का आभाव होना है। उस आभाव के कारण ही पाप की प्रवृतियां निरंतर बढ़ रही है। भावना को शुद्ध पावन व पवित्र बनाने का जो मूल हे उससे हम दूर होते जा रहे है जिसके परिणाम स्वरूप पापाचार व मिथ्याचार इस चरम सीमा पर बढ़ रही है कि संसार के सुखो को ही सुख मान बैठे है जबकि वह सुख नहीं हें बल्कि वह सुखाभास है।
उन्होंने आगे बताते हुए कहा कि सुख तो आत्मा का होता है और वह बहार नहीं, अंतर में है। उसके लिए हमें पहले भावना को शुद्ध बनाना होगा।
।प्रवक्ता अंकित कंट्रोल ने बताया कि  धर्म सभा में आज अशोका गार्डन जैन मंदिर कमेटी के अध्यक्ष सुनील जैन, जयदीप दिवाकर, रानू दिवाकर,पवन जैन,राजकुमार सूर्या,अंकित कंट्रोल,सुमत जैन,चिन्मय जैन,संकेत जैन, संजय वेलडिंग आदी पदाधिकारी भी उपस्थित थे।

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