
सर्वोच्च न्यायालय ने एक अहम फैसले में व्यवस्था दी है कि एससी/एसटी ऐक्ट के तहत किसी को दंडित करने के लिए यह साबित करना जरूरी है कि पीड़ित के खिलाफ अपराध अनुसूचित जाति से होने के कारण किया है। इसमें कहा गया कि मामूली झगड़े और हत्या को एससी-एसटी ऐक्ट के तहत किया गया अपराध नहीं माना जा सकता। जस्टिस आर भानुमति और एएस बोपन्ना की पीठ ने बुधवार को यह फैसला देते हुए ठाकुर समुदाय के खुमन सिंह को एससी-एसटी ऐक्ट का दोषी ठहराने का आदेश रद्द कर दिया। पीठ ने कहा कि इसमें यह कहीं नहीं बताया गया है कि अभियुक्त ने अपराध इसलिए किया क्योंकि पीड़ित या मृतक खंगार (एससी) जाति का था। इस मामले में ट्रायल कोर्ट तथा मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने पाया था कि अभियुक्त ने पीड़ित को डांटा था कि खंगार जाति का होने के कारण उसकी हिम्मत कैसे हुई कि वह ठाकुर के पशुओं को अपने खेत से बाहर हांक दे। यह कहकर खुमन सिंह ने बीरसिंह पर कुल्हाड़ी से वार किए, जिससे उसकी मौत हो गई। इन दोनों अदालतों ने पाया कि यह अपराध एससी-एसटी ऐक्ट की धारा 3 (2)(चौथा) के तहत आएगा। उच्च न्यायालय ने खुमन को हत्या के आरोप में भी दोषी ठहराया था। पीठ ने कहा कि एससी एसटी ऐक्ट की धारा 3(2)(चौथा) में किसी को दोषी ठहराने के लिए यह सिद्ध करना जरूरी है कि उसे इसलिए मारा गया क्योंकि वह एससी एसटी जाति का था।