कृत्रिम मेधा जैसी नई तकनीकों को अपनाने की आवश्यकता : मुख्य सांख्यिकीविद
विकेंद्रीकृत अर्थव्यवस्था में कृषि आंकड़ों को जुटाना एक बड़ी चुनौती है तथा नीति निर्माण के लिए वृहद आंकडे एवं कृत्रिम मेधा जैसी नई तकनीकों को अपनाने की आवश्यकता है। यह बात देश के मुख्य सांख्यिकीविद प्रवीण श्रीवास्तव ने सोमवार को कही है। उन्होंने कहा कि गुणवत्ता वाले आंकड़ों को पेश करने के लिए, यह देखने की जरुरत है कि आंकड़े कैसे एकत्र किए गए है।
श्रीवास्तव ने कृषि संबंधी आंकड़ों पर वैश्विक सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा, भले ही देश की जीडीपी में कृषि का योगदान लगभग 17 प्रतिशत है, लेकिन देश का लगभग 50 प्रतिशत श्रमबल कृषि पर ही निर्भर है हमारे पास बड़ी अनौपचारिक अर्थव्यवस्था है और एक अनौपचारिक अर्थव्यवस्था को मापना एक बड़ी चुनौती होती है जो सांख्यिकीय प्रणाली को सामना करना पड़ता है। देश की विकेंद्रीकृत अर्थव्यवस्था और सांख्यिकीय ढांचा, आंकड़ों के विकास और संग्रहण में चुनौती पेश करते हैं। उन्होंने कहा कि राज्य और केंद्र सरकार की मशीनरी दिन-प्रतिदिन इन चुनौतियों का सामना कर रही है। पारंपरिक आंकड़ों की मांग में बढ़ोतरी जारी होने की बात रखते हुए श्रीवास्तव ने कहा कि गुणवत्ता वाले आंकड़ों की आवश्यकता है क्योंकि निर्णय उस जानकारी के आधार पर लिए जाते हैं।
सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के सचिव श्रीवास्तव ने आगे कहा, यदि आप जलवायु परिवर्तन और कृषि और किसानों पर इसके प्रभाव को देखना चाहते हैं, तो हमें वास्तव में वृहद आंकड़े, कृत्रिम मेधा अथवा जो भी नया और समीचीन तकनीक का इस्तेमाल करते हुए गैर-समावेशी तरीकों से आंकड़ों को जुटाने की आवश्यकता है। आप उन्हें अपनाएं तो हम नीति निर्माण के लिए अधिक वैज्ञानिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद ने कहा कि भारत ने कुछ विश्व स्तर पर प्रतिष्ठित सांख्यिकीविदों को तैयार किया है और इसके परिणामस्वरूप सांख्यिकीय प्रणाली का एक पूरा सेट तैयार किया जा सका है।
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