
कच्चे तेल की कीमत बढने से भारत चिंतित
कच्चे तेल की कीमत लगातार बढने के कारण इसका असर रसोई गैस, रेल सफर और अब हवाई सफर पर भी होता दिख रहा है। कीमतों में पिछले कुछ महीनों में आए उछाल का आगे भी असर दिखाई देगा। कच्चे तेल की कीमत बढ़ना भारत के लिए चिंता की बात इसलिए है कि भारत जिस कीमत पर कच्चा तेल खरीदता है उसमें पिछले कुछ महीनों में तेजी आई है। अक्टूबर 2019 में यह 59.70 डॉलर प्रति बैरल था। फिर नवंबर में यह 62.54 डॉलर हो गया। फिर दिसंबर में यह 65 डॉलर प्रति बैरल पहुंच गया था। ट्रेन के किराये में बढ़ोतरी के तुरंत बाद तेल विक्रेताओं ने ऐविएशन टरब्यून फ्यूल की कीमत को 2.6 प्रतिशत बढ़ा दिया। अब तेल की कीमत बढ़ गई है। एयरलाइंस पहले से घाटे में हैं। ऐसे में हवाई सफर का किराया बढ़ना तय है।
भारत अपनी कुल जरूरत का 84 प्रतिशत तेल आयात करता है। कच्चे तेल की कीमत कम होगी तो हमें दूसरे देशों से इसे खरीदने पर खर्च कम करना होगा। इससे चालू खाता घाटा कम होगा। कीमत कम होगी तो रुपए पर भी दबाव कम रहेगा। क्योंकि ऐसे में हमें तेल खरीदने पर कम डॉलर खर्च करने होंगे। कच्चा तेल सस्ता आएगा तो थोड़ा सस्ता मिलेगा भी। ऐसे में सरकार को तेल की सब्सिडी पर ज्यादा खर्च नहीं करना होगा। तेल कंपनियों को भी पेट्रोल-डीजल की कीमत घटना पड़ेगी। इससे मुद्रास्फीति घटेगी क्योंकि अगर कच्चे तेल की कीमत में 10 प्रतिशत का उछाल आता है तो यह 0.2 प्रतिशत बढ़ जाती है। अब मुद्रास्फीति कम होगी तो रिजर्व बैंक पर प्रेशर कम रहेगा। ऐसे में वह ब्याज दर में कटौती कर सकता है।