
नई दिल्ली । कोविड-19 के बाद से बिहार सरकार अपने प्रदेश के मज़दूरों की वापसी को लेकर शुरू से ही बड़ी असमंजस्य की स्थिति में रही थी। मुख्यमंत्री नितीश कुमार पहले-पहल तरह-तरह के बयान दे रहे थे, कम्प्लीट लॉक डाउन की दुहाई दे रहे थे मगर राजनीतिक और श्रमिकों के दबाव में आकर आख़िरकार उन्हें अपने यहाँ के मज़दूरों को वापस लेने तैयार होना पड़ा। जिसका नतीजा यह हुआ कि देश के कोने-कोने से बिहार के प्रवासी श्रमिक दनादन लौटने लगे। भारी संख्या में लौट रहे मज़दूरों की जाँच और उन्हें एक निश्चित समय के लिए क्वारंटीन रखने की समस्या से बिहार सरकार को जूझना पड़ा। कई सेंटर्स पर खाने, पीने और रहने को लेकर बवाल भी मचा। लाखों की तादाद में लौटे मज़दूर बिहार सरकार के लिए नई मुसीबत बन गए हैं। यूँ तो बिहार सरकार कई तरह की समस्याओं में पहले से उलझी हुई है। अब उसके सामने यह समस्या आन पड़ी है कि लाखों की संख्या में लौटे मज़दूरों को संभाला कैसे जाएगा, रोज़गार, संसाधन और सुविधाएँ कैसे मुहैया कराई जाएगी। बिहार सरकार को इससे भी बड़ा ख़तरा आबादी बढ़ने का है। आबादी को लेकर सरकार अत्याधिक चिंतित है। सरकार ने जनसंख्या नियंत्रण के लिए नायाब तरीक़ा निकाल है। कोरेंटीन किए गए श्रमिकों को छुट्टी के बाद जब घर जाने दिया जाता है उन्हें कंडोम और गर्भ निरोधक दवाई का एक पैकेट बतौर गिफ़्ट दिया जा रहा है। इस बात से समझा जा सकता है कि मज़दूरों की घर वापसी से सरकार को आबादी तेज़ी से बढ़ने का अंदेशा है।