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  कांग्रेस 'हॉर्स ट्रेडिंग' का दूसरा नाम है - कुमारस्वामी

  कांग्रेस 'हॉर्स ट्रेडिंग' का दूसरा नाम है - कुमारस्वामी

बेंगलुरु ।  कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री और जनता दल (सेक्युलर)- जेडीएस नेता एच डी कुमारस्वामी ने कहा है कि कांग्रेस 'हॉर्स ट्रेडिंग' का दूसरा नाम है।  कुमारस्वामी ने 'लोकतंत्र बचाओ' अभियान को लेकर आरोप लगाया कि कांग्रेस राजनीतिक पार्टियों को बांटने और विधायकों को खरीदने में माहिर है और उसकी वजह से ही ‘हॉर्स ट्रेडिंग’ शब्द इस्तेमाल में आया। कुमारस्वामी ने पूछा, ‘कांग्रेस ने बीजेपी के खिलाफ देशव्यापी लोकतंत्र बचाओ अभियान शुरू किया है, जो लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई सरकार को गिराने के लिए विधायकों की खरीद-फरोख्त कर रही है। कांग्रेस ने क्या किया? राजस्थान में सरकार बनाने कि लिए समर्थन देने वाली बीएसपी के विधायकों को फुसला नहीं लिया। क्या यह खरीदारी नहीं है?’ ज्ञात रहे कि कर्नाटक और मध्यप्रदेश के बाद राजस्थान में विधायकों की खरीद-फरोख्त के आरोपों के बीच कांग्रेस बीजेपी के खिलाफ 'लोकतंत्र बचाओ' अभियान चलाया हुआ है।
 कुमारस्वामी ने कहा कि दूसरी पार्टी के विधायकों को अपनी तरफ लुभाना राजनीतिक धोखाधड़ी नहीं है, जिस पार्टी ने उन्हें सरकार में समर्थन दिया। क्या यह लोकतांत्रिक व्यवहार है? उन्होंने कांग्रेस से पूछा, 'अगर आप समर्थन देने वाली एक जैसी विचार वाली पार्टी के विधायकों को छल से बांट रहे हैं तो आपको कौन समर्थन देगा? क्या यह गलतियां आपको नहीं दिख रही हैं?
कुमारस्वामी ने कांग्रेस को याद दिलाया कि पूर्व में कांग्रेस ने कर्नाटक में जेडीएस के विधायकों को भी बांटा है। उन्होंने कहा, ‘क्या उन्होंने बांटने की कोशिश नहीं की है? क्या यह वास्तविकता नहीं है कि सिर्फ एक राज्यसभा सीट के लिए कांग्रेस ने कर्नाटक में जेडीएस के आठ विधायकों को खरीदा? क्या यह लोकतंत्र है? उन्होंने कहा कि दोनों ही पार्टियां खरीद-फरोख्त के अपराधी हैं।
ज्ञात रहे कि कर्नाटक में 2016 में राज्यसभा की सीट पर जेडीएस के आठ विधायकों ने पार्टी के आधिकारिक उम्मीदवार के खिलाफ जाकर कांग्रेस को वोट दिया था। कुमारस्वामी ने कहा, ‘एस एम कृष्णा जब कर्नाटक के मुख्यमंत्री थे तो क्या कांग्रेस ने हमारे विधायकों को खरीदने की कोशिश नहीं की थी। क्या कांग्रेस ने 2018 के विधानसभा चुनाव में हमारे विधायकों को खरीद कर सरकार बनाने का षडयंत्र नहीं रचा था। क्या कांग्रेस के पास इन सवालों के जवाब देने का नैतिक साहस है?’
 

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