
नई दिल्ली । इस साल की अंतिम तिमाही भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए काफी नुकसानदायक रही। जीडीपी के आंकड़े सामने आ चुके हैं। इस तिमाही में इकॉनमी का ग्रोथ रेट माइनस 7.5 फीसदी रहा। मतलब पिछले साल के मुकाबले आकार में 7.5 फीसदी की गिरावट आई है। पहली तिमाही (अप्रैल-जून) में जीडीपी ग्रोथ रेट माइनस 23.9 फीसदी रहा था। इस लिहाज से इकॉनमी में काफी सुधार आया है लेकिन आधिकारिक रूप से इकॉनमी मंदी में प्रवेश कर चुकी है। ताजा आंकड़ों से साफ पता चलता है कि इस तिमाही में भारत की इकॉनमी ने दुनिया की बड़ी इकनॉमिक देशों में ब्रिटेन के बाद सबसे बुरा प्रदर्शन किया है। पिछले 11 तिमाही से इसमें गिरावट का सिलसिला जारी है। सालाना आधार पर देखेंगें तो वित्त वर्ष 2017-18 में यह 7 फीसदी, 2018-19 में 6.1 फीसदी और 2019-20 में 4.2 फीसदी रहा। वित्त वर्ष 2020-21 में इसमें कम से कम 9-12 फीसदी की गिरावट का अनुमान तमाम एजेंसियों ने लगाया है। आरबीआई का अनुमान 9.5 फीसदी गिरावट का है।
जुलाई-सितंबर तिमाही में विनिर्माण क्षेत्र में 0.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। जबकि इससे पूर्व तिमाही में इसमें 39 प्रतिशत की गिरावट आयी थी। कृषि क्षेत्र का प्रदर्शन बेहतर बना हुआ है और इसमें दूसरी तिमाही में 3.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई। वहीं बिजली और गैस क्षेत्र में 4.4 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। वित्तीय और रीयल एस्टेट सेवा में चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में सालाना आधार पर 8.1 प्रतिशत की गिरावट आयी। वहीं व्यापार, होटल, परिवहन और संचार क्षेत्र में 15.6 प्रतिशत की गिरावट आयी। अर्थव्यवस्था में दूसरा सर्वाधिक रोजगार देने वाला निर्माण क्षेत्र में दूसरी तिमाही में केवल 8.6 प्रतिशत की गिरावट आयी जबकि पहली तिमाही में इसमें 50 प्रतिशत का संकुचन हुआ था। सार्वजनिक व्यय में इस दौरान 12 प्रतिशत की कमी आयी। वित्त वर्ष 2020-21 में बड़ी गिरावट का अनुमान जता रहे ज्यादातर विश्लेषकों और अर्थशास्त्रियों ने दूसरी तिमाही में भी बड़े संकुचन की आशंका जतायी थी। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय के अनुसार स्थिर मूल्य (2011-12) पर जीडीपी 2020-21 की दूसरी तिमाही में 33.14 लाख करोड़ रहा जो इससे पूर्व वित्त वर्ष 2019-20 की इसी तिमाही में 35.84 लाख करोड़ रुपये था।
केंद्र सरकार का राजकोषीय घाटा चालू वित्त वर्ष में अक्टूबर के अंत तक बढ़कर 9.53 लाख करोड़ रुपये पहुंच गया जो सालाना बजट अनुमान का करीब 120 प्रतिशत है। शुक्रवार को जारी आधिकारिक आंकड़े के अनुसार मुख्य रूप से राजस्व संग्रह कम रहने से घाटा बढ़ा है। कोरोना वायरस महामारी को फैलने से रोकने के लिये लगाये गये 'लॉकडाउन' के कारण कारोबारी गतिविधियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। इसका असर राजस्व संग्रह पर पड़ा है। इस साल सितंबर के अंत में राजकोषीय घाटा सालाना बजट अनुमान का 114.8 प्रतिशत था। महालेखा नियंत्रक (सीजीए) के आंकड़े के अनुसार निरपेक्ष रूप से देखा जाए तो राजकोषीय घाटा अक्टूबर, 2020 के अंत में 9,53,154 करोड़ रुपये रहा जो सालाना बजट अनुमान का 119.7 प्रतिशत है। पिछले वित्त वर्ष 2019-20 के पहले सात महीने में राजकोषीय घाटा सालाना लक्ष्य का 102.4 प्रतिशत था। राजस्व और व्यय के बीच अंतर को बताने वाला राजकोषीय घाटा इस साल जुलाई में ही सालाना लक्ष्य से ऊपर निकल गया था। चालू वित्त वर्ष के बजट में 2020-21 के लिये राजकोषीय घाटा 7.96 लाख करोड़ रुपये या जीडीपी का 3.5 प्रतिशत रहने का अनुमान रखा गया है। हालांकि कोरोना संकट को देखते हुए इन आंकड़ों में उल्लेखनीय सुधार की जरूरत पड़ सकती है। वित्त वर्ष 2019-20 में राजकोषीय घाटा सात साल के उच्च स्तर जीडीपी के 4.6 प्रतिशत पर पहुंच गया था। इसका मुख्य कारण राजस्व संग्रह में कमी थी।