
नई दिल्ली । कोरोना काल में बैंकों की मुसीबत बढ़ गई है। लॉकडाउन के बाद लोन मोराटोरियम की सुविधा के बाद अब बैंकों का दीवाला निकलने जा रहा है। लॉकडाउन में काम धंधा बंद होने के बाद सरकार ने जनता को राहत देने मोराटोरियम की सुविधा दी। नतीजा यह हुआ कि लोगों ने लोन की किस्त देनी बंद कर दी। अब रिजर्व बैंक ने खातों की वसूली करने और राजस्व बढ़ाने का निर्देश दिया है। मगर समस्या यह है कि लोगों के पास घर खर्च चलाना ही मुश्किल हो गया है। कारोबार अभी बंद हैं। नौकरी चली गई है। जिनकी नौकरी है उन्हें वेतन बहुत कम मिल रहा है। ऐसे में वे बैंक की किस्त कैसे चुकाएं। बैंक खुद मान रहे हैं कि इस स्थिति में 65 से 70 फीसदी खाते एनपीए में जा सकते हैं। बैंकों की पास जमा पूंजी बची नहीं है।
20 साल की ऊंचाई पर पहुंच सकता है डूबा कर्ज
भारतीय रिजर्व बैंक खुद मान रहा है कि बैंकों का एनपीए 20 साल में सबसे ज्यादा रह सकता है। मार्च 2020 में एनपीए 8.5 फीसदी पर पहुंच गया था। इसके मार्च 2021 तक 12.5 फीसदी पर पहुंच जाने का अनुमान है। आंकड़ों के अनुसार, मार्च 2018 में एनपीए 11.5 फीसदी से घटकर मार्च 2019 में 9.& फीसदी और मार्च 2020 में यह 8.5 फीसदी रह गया। बट्टे खाते को साफ करने के लिए बैंकों को काफी पूंजी निवेश करना पड़ा। इससे मार्च 2020 में पूंजी पर्याप्तता अनुपात घटकर 14.8 फीसदी हो गया, जो एक साल पहले 15 फीसदी था।
खाता कैसे होता है एनपीए
मौजूदा व्यवस्था के मुताबिक 90 दिन तक मूलधन या ब्याज का भुगतान नहीं होने पर आवंटित ऋण एनपीए बन जाता है। अब सरकार इस अवधि को बढ़ाकर 180 दिन करने पर विचार कर रही है। मगर साथ ही शर्त लगा रही है कि इस सुविधा का फायदा उठाने के लिए खाता नियमित होना चाहिए। इससे ऐसी स्थिति पैदा हो सकती है जिसमें कमजोर खातों की स्थिति और बदतर होगी। एक सूत्र ने कहा, इससे कमजोर खाते भुगतान में चूक होने पर मौजूदा नियमों के मुताबिक उन्हें एनपीए घोषित किया जा सकता है। इसकी वजह यह है कि ब्याज भुगतान में कोई छूट नहीं दी गई है। ये खाते ब्याज के भुगतान में सक्षम नहीं हैं।