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 वैज्ञानिकों ने खोजा फंगस जो मंगल पर भी रह सकता है जिंदा, मिशनों को कितना खतरा -धरती के वायुमंडल की परत पर ले जाकर मंगल जैसी कंडीशन्स में सूक्ष्मजीवियों को टेस्ट किया  -स्पेस मिशन्स के दौरान सूक्ष्मजीवियों से होने वाले खतरे को जानने में मिलेगी मदद

 वैज्ञानिकों ने खोजा फंगस जो मंगल पर भी रह सकता है जिंदा, मिशनों को कितना खतरा -धरती के वायुमंडल की परत पर ले जाकर मंगल जैसी कंडीशन्स में सूक्ष्मजीवियों को टेस्ट किया  -स्पेस मिशन्स के दौरान सूक्ष्मजीवियों से होने वाले खतरे को जानने में मिलेगी मदद

लंदन धरती पर पाए जाने वाले कुछ सूक्ष्मजीवी मंगल की सतह पर भी जीवित रह सकते हैं। एक स्टडी के मुताबिक आने वाले वक्त में मंगल पर भेजे जाने वाले मिशन्स के लिए यह खोज अहम हो सकती है। अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा और जर्मनी के एयरोस्पेस सेंटर ने धरती के वायुमंडल की परत पर ले जाकर मंगल जैसी कंडीशन्स में सूक्ष्मजीवियों को टेस्ट किया है। यहां पाया गया है कि ये कुछ देर के लिए मंगल पर जरूर जीवित रह सकते हैं। फ्रंटियर्स इन माइक्रोबायॉलजी जर्नल में छपी स्टडी से स्पेस मिशन्स के दौरान सूक्ष्मजीवियों से होने वाले खतरे को जानने में मदद मिलेगी। जीएसी से स्टडी की लीड रिसर्चर मार्टा फिलीपा कॉर्टेसाओ ने बताया है कि बैक्टीरिया और फंगस को मंगल जैसी कंडीशन्स में सफलतापूर्वक टेस्ट किया गया है। इसके लिए जरूरी एक्सपेरिमेंटल उपकरणों को साइंटिफिक बलून के सहारे धरती के वायुमंडल की स्टार्टोस्फेयर परत तक ले जाया गया। उन्होंने बताया कि कुछ सूक्ष्मजीवी, खासकर ब्लैक मोल्ड फंगस के स्पोर इस ट्रिप के दौरान जिंदा रहे। तेज अल्ट्रावॉइलेट रेडिएशन के असर के बावजूद यह नतीजे मिले।
  संयुक्त लीड रिसर्चर कैथरीना सीम्स ने बताया है कि दूसरे ग्रहों पर जीवन की खोज में वैज्ञानिकों के लिए यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि वहां जो उन्हें मिला है वह कहीं धरती से ही तो नहीं पहुंचा। भविष्य में लंबे वक्त के लिए ऐस्ट्रनॉट्स को मंगल पर भेजे जाने का प्लान है। इसलिए भी यह जानना जरूरी है कि कहीं किसी ऐसे सूक्ष्मजीव से उनकी सेहत को खतरा न हो जो मंगल पर भी जीवित रह सकता हो। उनका कहना है कि सूक्ष्मजीवियों की मदद खाना पैदा करने जैसे काम में भी आ सकती है जो धरती से दूर अहम होगा। मंगल की सतह के कई तत्व धरती पर मिलना मुश्किल है लेकिन धरती की सतह से 12 किमी ऊपर से शुरू होकर 50 किमी तक जाने वाली स्टार्टोस्फेयर की परत मंगल से काफी समान होती है। एक्सपेरिमेंट के दौरान यहां मंगल की तरह प्रेशर था। इस बॉक्स में दो सैंपल लेयर्स थीं जिसमें से नीचे की परत रेडिएशन से बची रही। इससे रेडिशन के असर को बाकी कंटीशन्स से अलग समझा जा सकता है। ऊपर की लेयर पर हजारों गुना ज्यादा यूवी रेडिएशन हो सकता है जिससे खाल जल सकती है।
 

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